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नीम  (Azadirachta gndica)

आप सभी ने नववर्ष का स्वागत नीम की कोपलें एक दूसरे को खिला कर किया होगा। भारत वर्ष में यह परम्परा हजारों वर्ष पुरानी है। भारत में किसी पेड़ पौधे का महत्व इस बात से जाना जा सकता है, कि वह कितनी प्रचलित परम्पराओं से जुड़ा हुआ है। बिना किसी बोझिल पढ़ाई के सामाजिक स्वास्थ्य शिक्षा का यह अनूठा तरीका हमारे पूर्वजों ने बड़ी अच्छी तरह समझ लिया था नीम को मृत्युलोक का कल्प वृक्ष कहा जाता है। क्योंकि इसकी जड़ से ले कर शिखा तक एक-एक अंग औषधी युक्त है। यह सर्व रोग नाशक है। प्रति दिन 4-5 नीम की कोमल पत्तियां खाते रहना अच्छी बात किन्तु वर्षो तक लगातार बिना कारण अधिक मात्रा में नीम पत्र खाना उचित नहीं है।

1-        यह वृक्ष प्रायः सभी पठारी भागों में पाया जाता है। किन्तु पंजाब में कम होता है। यह उष्ण प्रकृति का होता है। अरूचि और मंदाग्नि को दूर करता है। इसके कुछ महत्वपूर्ण प्रयोग निम्न लिखित है।

2-  उपद्रव रहित सामानय चेचक हो तो नीम पत्र के सिवा किसी भी औषधी का प्रयोग नहीं करना चाहिये। रोग के समय बिछौने और कमरे में चारों और नीम पत्र बिछा कर नीम पत्र के चंवर से ही रोगी को लगातार हवा करनी चाहिये। साथ ही ताजे कोमल पत्ते मुलेठी चूर्ण के साथ गोलियां बना कर खाने को देना चाहिये। ऐसा करने से ज्वर और प्यास नहीं बढ़ती। साथ ही चेचक का विष गहराई तक नहीं जाता।

3-  चेचक के फोड़े सूख जाने के बाद नीम पत्र पीस कर सोते समय लगाएं और नीम के पानी से ही रोगी को स्नान कराएं तो चेचक के दाग मिट जाते हैं।

4-  फोड़े की प्रारम्भिक अवस्था में नीम पत्र का लेप लगाने से फोड़ा सूखा जाता है। फोड़ा अधिक पक गया हो तो नीम पत्र को पीस कर उसका लेप शहद के साथ मिला कर लगाने से फोड़ा पक कर फूट जाता है। फोड़ा फूट कर सूख जाने के बाद नीम पत्र को घी के साथ लेप बना कर गर्म करने से घाव सूख जाता है।

5-  कुछ लोगों को शरीर पर हमेशा फोड़े होते रहते हैं। कुछ लोगों को मुँहासे अधिक होते हैं। ये दोनों ही रक्त दूषित होने के परिणाम हैं। ऐसे में प्रतिदिन नीम की 40-50 पत्तियां का रस पीना चाहिये। साथ ही स्नान करने के जल में नीम की पत्तियां  उबालकर डालना चाहिये।

6-  सिर अथवा पलकों के बाल झड़ते हों तो नीम के ताजे पत्तों का रस निचोड़ कर लगाना चाहिये।

7-  दाद, खाज, खुजली में भी नीम पत्र का लेप बार-बार लगाना चाहिये।

8-  मलेरिया होने पर 60 नीम पत्र और 4 कालीमिर्च के दाने एक कप पानी में पीस कर छान कर शबर्त की तरह पीने से मलेरिया ठीक हो जाती है।

9-  पथरी होने पर नीम पत्र की राख एक चम्मच में ले कर दिन में तीन बार ठंडे पानी के साथ फांक लेना चाहिये। पथरी गलकर निकल जाती है।

10-          विषैले सांप काटने पर नीम की पत्तियां चबाई जाएं तो कड़वी नही लगती। उन्हें तब तक चबाना चाहिये। जब तक कड़वापन न लगने लगे। ऐसा होने पर समझ लीजिये कि सांप का विष उतर गया।

11-          गठिया में जब जोड़ों पर सूजन भी रहती है, तो नीम की पत्तियों को उबालकर उसकी भाप से सिंकाई करने से बड़ा आराम मिलता है।

12-          उल्टी आने पर 10-20 नीम पत्र का रस छान कर पीने से किसी भी प्रकार की उल्टी थम जाती है।

13-          उच्च रक्तचाप के रोगी को नित्यप्रति लगभग 25 पत्तियों का रस खाली पेट लना चाहिये।

14-          बवासीर या अर्श होने पर प्रतिदिन नीम पत्र 21 नग लेकर मूंग की भिगोई हुई धोई हुई दाल के साथ कोई भी मसाला न मिलाते हुए पीस कर घी में तलकर खाएं। इस प्रकार 2 दिन तक इन पकौडियों को खाने से सब प्रकार के अर्शांकुर निर्बल हो कर गिर जाते हैं। ध्यान रहे कि दौरान केवल ताजा मठ्‌ठा पीकर ही रहना है।

15-          नीम पत्र के साथ कनेर के पत्तों को पीस कर मस्सों पर लेप करने से कुछ हीदिों में मस्से झड़ का गिर जाते हैं।

16-          बर्र या बिच्छु के दंश पर नीम पत्र मसल कर लगाने से शांती प्राप्त होती है।

17-          योनी में दुर्गन्ध अथवा खुजली होने पर नीम पत्र का धुंआ लेना चाहिये। थोड़े दिनों में ही योनि के अन्दर का चिपचिपापन, खुजली या दुर्गन्ध दूर हो जाती है।

18-          स्तनों से दूध निकलना बन्द करने के लिये निबौली की गिरी पीस कर स्तनों पर उसका लेप करना चाहिये

19-          कभी-कभी स्तनों में पस होकर घाव हो जाते है। ऐसे में नीम पत्र की काली राख बना कर उसमें बराबरी से सरसों का तेल मिला कर नीम की डंडी से हिलाते हुए गर्म करना चाहिये। नीम पत्र उबाले हुए पानी से स्तनों को धोकर यह तेल मिश्रित राख लगा कर ऊपर से नीम पत्र की राख बुरक दें और पट्‌टी बांध दें। घाव शीघ्र भरकर सूख जाता है।

20-          नकसीर फूटने पर नीम पत्र के साथ अजवायन मिला कर कनपटियों पर लेप करते है।

नीम के पत्तों की धूम्र रहित सफेद राख बना कर शरीर पर ऐसे स्थान पर लेप किया जहां पर स्पर्श का अनुभव न होता हो, तो पुनः स्पर्श का अनुभव होने लगता है। इस तरह राख लगाने पर से पूर्व यदि नीम के पत्तों के गर्म लेप से वहां पर सिंकाई की जाए और नीम के पानी से ही स्नान किया जाए तो अधिक लाभ मिलता है।

नीम पत्र के समान नीम की निबौली, जड़ एवं छाल के भी अनेक उपयोग हैं। किन्तु यहां आपकी जानकारी के लिये केवल नीम पत्र के उपयोग ही दिये गए है। क्योंकि नीम पत्र का उपयोग अपेक्षाकृत सरल है। इसी प्रकार नीम के फूल, नीम की गिरी और नीम का गोंद भी अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान रखता है। नीम की दातून का महत्व तो सर्व विदित है ही। औषधीय उपयोग के लिये नीम का अर्क एवं घी भी बना बनाया जाता है। नीम फूलों का गुलकन्द और नीम की ताड़ी बनाने के प्रयोग भी पा्रचीन ग्रन्थों में उपलब्ध हैं।

कड़वी नीम से एक दुर्लभ औषधि भी प्राप्त होती है। जिसके बारे में बहुत कम लोग जानते है। इसके बड़े पेड़ में प्रत्येक 3-4 वर्ष में एक बार नियमित रूप से एक सप्ताह भर कुछ जल टपकता है। इसे कड़वी नीम की गंगा कहते हैं।

      नीम का वृक्ष जहां लगा हो वहां आस-पास का वातावरण स्वच्छ शुद्ध और ताजा रहता है। नीम को कीटनाशक के रूप में फसलों पर भी प्रयोग में लाया जाता है।

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