अनुचित रसाहार एवं खाद्य पदार्थ
यूँ तो सभी रस अच्छे, पोषक और शक्ति वर्धक होते हैं इसलिये ऐसा नहीं है कि किसी रोग विशेष में कोई रस अत्यंत घातक हो जाए। फिर भी आयुर्वेदानुसार विभिन्न कारणों से कभी-कभी कुछ रस लेना अनुचित भी माना जाता है।
कुछ खाद्य पदार्थ भी आयुर्वेदानुसार अनुचित माने जाते हैं। ये निम्न लिखित हैं।
1 पर्णबीज के पत्तों का अधिक मात्रा में सेवन करने से नशा हो जाता है।
2 पवांड़ के बीज आँतो के लिये हानिकारक होते हैं। अतः इनका उपयोग करते समय नियमित रूप से दही, दूध अथवा अर्क गुलाब का सेवन करना चाहिये।
3 पिप्पली का उपयोग करते समय यह ध्यान रखना चाहिये कि पुरानी और सूखी पिप्पली के औषधीय लाभ अधिक होते हैं। साथ ही बाजार में दो प्रकार पिप्पली मिलती है। बारीक और छोटे आकार की पिप्पली अधिक गुणकारी होती है।
4 अधिक समय तक गर्भवती स्त्री को शर्बत आदि के रूप में पोदीना देने से गर्भपात का डर रहता है।
5 पोदीना का अत्यधिक सेवन आंतो और किडनी के लिये हानिकारक हो सकता है ऐसे में मुलेठी के साथ देना चाहिए।
6 राई का लेप हमेशा ठंडे पानी में बनाना चाहिये क्योंकी उसके गुण ठन्डे पानी में ही उतरते हैं।
7 राई के लेप में हमेषा फुन्सी फफोले उठने का भय रहता है। अतः यह लेप लगाने से पूर्व या तो घी या नारियल तेल शरीर पर लगा लें, अथवा महीन कपड़े में रख कर उस कपड़े को ही शरीर के अंगों पर रखें।
8 राई का खाने के लिये प्रयोग करना हो तो उसका छिलका उतार कर ही प्रयोग करें। इसके लिये राई को पानी में थोडी देर भिगो कर छिलका अलग कर लें बाकी बची राई का पीस कर बारीक आटा बना कर बोतल में भर कर सुरक्षित रख लें।
9 मस्तिष्क, आँखां आदि शरीर के कोमल अंगों पर राई का प्रयोग न करें।
10 बच्चों के लिये एक भाग राई चूर्ण के साथ 10-15 भाग अलसी चूर्ण लें।
11 गर्म प्रकृति वालों को सौंफ का सेवन धनिया अथवा चन्दन के साथ करना चाहिये।
12 अलसी का सेवन दृष्टि तथा अंडकोष के लिये हानिकारक है। किन्तु अलसी का सेवन धनिया और शहद के साथ करने से इस हानि से बचा जा सकता है।
13 बथुए को आवश्यकता से अधिक खाने पर वात विकार होने की सम्भावना रहती है। अतः इसमें गरम मसाला डाल कर खाना चाहिये।
14 दूर्वा वीर्य को कम करके काम शक्ति को घटाता है।
15 दूधी का रस पीने से कभी-कभी आमाशय के भीतर कुछ भाग में जलन होती है और जम्हाई आती है। ऐसा कुछ होने पर इसे भोजन के बाद कुछ अधिक पानी मिला कर लेना चाहिये।
16 मधुमेह, अत्यधिक सर्दी-जुकाम, कफ अथवा श्वास के रोगियों को गन्ने के रस का सेवन नहीं करना चाहिये। बुखार की अवस्था में, अत्यन्त कमजोर पाचन तन्त्र वालों को, त्वचा अथवा कृमि रोग वालों को अथवा बहुत छोटे बच्चों को भी गन्ने के रस का सेवन हितकर नहीं है।
17 वसन्त ऋतु में गुड़ का सेवन नहीं करना चाहिये। चर्मरोग, कृमि, दाँतों के रोग, आँखों के रोग, मेदवृद्धि, ज्वर आदि में गुड़ का सेवन उचित नहीं। मधुमेह के रोगी को षक्कर अथवा गुड़ में से कोई एक चुनना हो तो वे गुड़ को चुन सकते हैं। फल, उड़द या दूध के साथ गुड़ नहीं खाना चाहिये।
18 ग्वारपाठे का सेवन करते समय यह ध्यान रखना चाहिये कि बवासीर रोग की अवस्था में यदि रक्त निकल रहा हो तो, ग्वारपाठा के सेवन से मलाशय और मलद्वार की रक्त नलिकाओं में रक्त संचार बढ़ जाता है और रक्त अधिक आने लगता है। अतः उस समय ग्वारपाठे का सेवन रोक देना चाहिये बदले में ऊपर से लेप लगाना चाहिये।
19 ग्वारपाठा आर्तव जनक और गर्भ शोधक होने के कारण गर्भावस्था में इसका सेवन नहीं करना चाहिये।
20 त्वचा रोग, कफ रोग तथा मासिक स्त्राव के समय इमली का सेवन नहीं करना चाहिये।
21 आयुर्वेद के अनुसार इमली की छाया प्रसूता या रोगी के लिये हानिकारक मानी गई है। इसका कारण यह कि इमली रक्त को दूषित करने वाली व कफ को बढ़ाने वाली होती है। इसके अधिक मात्र में सेवन से खटाई और ठंडाई के कारण जोड़ जकड़ जाते है। खांसी या दमा का उपद्रव होता है।
22 विद्रधि अर्थात फोड़े और अधिक पक जाते है। कोढ़ और किडनी सम्बन्धी उन रोगों जिनमें किडनी से सही तरीके से विजातीय पदार्थों का निष्कासन न होता हो, उनमें इमली का उपयोग हानिकारक है।
23 कच्ची इमली हानिकारक होती है। अतः सदैव पकी इमली का ही औषधीय उपयोग किया जाता है।
24 इमली का उपयोग पेट के अन्दर लेने के लिये कभी भी दूध के साथ नहीं करना चाहिये।
25 जामुन खाली पेट खा लेने से वात की वृद्धि या अफरा हो जाता है।
26 जायफल की अधिक मात्रा लेना हानिकारक है। इससे मस्तिष्क पर मादक प्रभाव पड़ता है। सिर चकराता है, प्रलाप मूढ़ता की स्थिति उत्पन्न होती है।
27 जायफल का 15 ग्राम चूर्ण एक साथ ले लेने पर भ्रम और बेहोशी आने लगती है।
28 बार-बार अधिक मात्रा में जायफल लेना पुरूषों के लिये हानिकारक हो सकता है।
29 उच्च रक्तचाप की अवस्था में अथवा ज्वर या दाह होने पर जायफल, जावित्री या उसके तेलों का उपयोग नहीं करना चाहिए।
30 कालीमिर्च का अधिक मात्रा में सेवन करने से पेट आँतो मूत्राशय व मूत्रमार्ग पर जलन हो सकती है। ऐसा कुछ होता हो तो कालीमिर्च का सेवन न करें।
31 कपूर का सेवन करते समय मात्रा का बहुत ध्यान रखना चाहिये। कपूर का अधिक सेवन करने से पहले स्नायुमंडल एवं वात नाड़ियों में उत्तेजना अत्यधिक बढ़ती है। फिर शैथिल्य आलस्य और अत्यन्त थकावट आती है। मुँह और गले में दाह युक्त वेदना के साथ जी मचलता है। कभी-कभी उल्टी चक्कर आँखों में जलन आँखों का फैल जाना, बेहोशी (प्रायः अन्तिम लक्षण) हाथ-पांव ठंडे होना, सर्वांग में झुनझुनी नाड़ी क्षीण होना, कमर में पीड़ा, मूत्रावरोध, हाथों की माँसपेशियों में जकड़न, ओंठ काले पड़ना श्वास लेने व छोड़ने में कष्ट तथा मूर्च्छा और फिर मृत्यु तक हो सकती है। उक्त प्रकार की मृत्यु लाखों में एक ही हो सकती है अन्यथा यथायोग्य उपचार से रोगी शीघ्र सुधार जाता है।
32 कपूर की अधिकता अर्थात बड़ा के लिये 10 ग्राम से अधिक और छोटे बच्चों के लिये 15
ग्राम से अधिक मात्रा घातक होती है। इसके उपचार हेतु पहले वमन करा देना ठीक रहता है। वमन तब तक कराते हैं जब तक वमन में कपूर की गन्ध आना बन्द न हो जाए। बीच-बीच में 1-1 रत्ती शुद्ध भुनी हुई हींग खिलाते रहते हैं। सिर पर बर्फ रखना चाहिये। उत्तेजना बढ़ाने के लिये काली चाय या कॉफी देना लाभदायक होता है। उत्तेजना बढ़ाने के लिये छोटी पिप्पली में खांड मिला कर खिलाने तथा ऊपर से खूब पान खिलाने से भी लाभ मिलता है।
33 इस बात का ध्यान रखना चाहिये कि केले के अत्यधिक सेवन से पाचन शक्ति कमजोर हो जाती है। कफकारक और शीतल होने के कारण केला, निमोनिया अस्थमा अथवा किसी अन्य कफ जनित रोग में नहीं दिया जाना चाहिये।
34 खजूर अग्निमांद्य करने वाला होता है। अतः रोगी का अग्निबल देख कर ही उसे उचित मात्रा में खजूर देना चाहिये। एक बार में सीमित मात्रा में ही खजूर का सेवन करना चाहिये । अत्यधिक खजूर एक साथ खा लेने से गुदाद्वार के अवयव फूल जाते हैं।
35 खरबूजा खाने के पूर्व कुछ देर शीत जल में भिगो कर रखना चाहिये। भोजन के कुछ देर बाद ही इसका सेवन करना चाहिये। खाली पेट या भोजन के पूर्व खाने से शरीर में पित्त प्रकोप की सम्भावनाएं रहती हैं। कभी-कभी पित्तज्वर भी हो जाता है। इसके खाने के बाद दुग्ध सेवन करना भी हानिकारक होता है। इससे हैजा या अतिसार हो सकता है। अतः हैजा फैला हो तो खरबूज नहीं खाना चाहिये।
36 प्रतिदिन दिये जाने वाले लहसुन की मात्रा का निर्णय आयु के अनुसार होना चाहिए। 3 वर्ष या उससे कम आयु के बच्चों को 1-2 कली प्रतिदिन अत्यधिक छोटे बच्चों को उतना भी नहीं, 16 वर्ष से अधिक आयु के अथवा वयस्क व्यक्तियों को 3 से 5 लहसुन प्रतिदिन दिये जा सकते हैं। शक्तिशाली ऊंचे पूरे लोगों को इससे अधिक भी दिये जा सकते हैं।
37 मद्य, माँस, खटाई ये लहसुन के साथ मेल वाले पदार्थ हैं। जबकि व्यायाम, धूप, क्रोध, अत्यधिक जल, दूध और गुड़ इन पदार्थो को लहसुन खाने वालों को छोड़ देना चाहिए। योग ग्रन्थों में लहसुन को तमोगुण बढ़ाने वाला खाद्य माना गया है।
38 चरक सूत्र (26.19.22) के अनुसार काकमाची मधु व मरणाय अर्थात मकोय और मधु मिला कर लेने से विष हो कर मरण की आशंका रहती है। आयुर्वेद की इस जानी मानी हस्ती के द्वारा लिखे गए इस सूत्र का ध्यान पाठक जन अवश्य रखें। इसी तरह चरक के ही मतानुसार मकोय का बासी शाक खाना निषेध है।
बहुत बहुत बधाई एवं ढेरों शुभकामनाएँ आपको डाक्टर पूर्णिमा दाते जी। भारत की इस प्राचीन रसाहार आरोग्य पद्धति को पुनर्जीवित करने हेतु आपके भागीरथी प्रयास को नमन्। बरसों से शाक व वनस्पतियो की यह प्रभावी रसाहार पद्धति कहीं दब छुप गई थी पर अब आपके प्रयास से यह आम जन के बीच पुनः प्रतिष्ठित हुई है अतः सभी आम देशवासियों को इसे अपने आरोग्य के लिये अपनाना समग्र हित में है । मैंने भी स्वयं एवं अपने परिवार केलिये आपके मार्गदर्शन मे रसाहार से लाभ उठाया है।जिसका विस्तार से उल्लेख मे प्रथक से करूँगी ।
पुनःआपको बहुत बहुत बधाई ।
वर्षा शुक्ल पाठक
धन्यवाद।