ऋतु अनुसार होने वाले रोगों, रसाहार में परिवर्तन और पथ्य अपथ्य की जानकारी मैं आप सभी को नियमित रूप से देना चाहती हूं। यह सब पुस्तक में भी लिखा है, आप सभी को अपने घरों में ध्यान भी रखना चाहिए। रसोई में खाना बनाते समय किसी खाने की फरमाइश करते समय और किसी को खिलाने के लिए आग्रह करते समय भी इन बातों का ध्यान रखें। आप क्या बना रहे हैं, किस बात का आग्रह कर रहे हैं और क्या खाना चाहते हैं, तीनों पर आपका और आपके प्रिय जनों का स्वास्थ्य निर्भर है। इस तारतम्य में अब आपको पित्त की जानकारी दे रही हूं।
पित्त पांच प्रकार के होते हैं- पाचक, रंजक, साधक, आलोचक, और भ्राजक पित्त।
इनका उभार शरद ऋतु में होता है इस वर्ष शरद ऋतु 15 सितंबर से 15 नवम्बर 2022 तक है आपको ज्ञात होना चाहिए कि इन सभी पांचों पित्त का संबंध शरीर के किन-किन अंगों से होता है, पित्त के उभार से कौन कौन से रोग होते हैं और यह रोग क्या करने से ठीक हो सकते हैं।
पाचक पित्त का संबंध पक्वाशय अर्थात पेनक्रियाज ग्रहणी अर्थात गॉलब्लेडर और शरीर की विभिन्न धातुओं से होता है। जहां मूत्र पसीना लिंफ तथा हमारी विवेक बुद्धि को दूषित करते हैं। भूख, प्यास और अन्न में रुचि उत्पन्न करने के कारण होते हैं।
रंजक पित्त का संबंध यकृत अर्थात लिवर, प्लीहा अर्थात स्प्लीन और आमाशय अर्थात पेट जिसमें खाना जाता है, उससे होता है। आहार रसों को रक्त ओज और वीर्य में परिवर्तित करने का कार्य यह करते हैं। इनके विकृत होने से खाए हुए अन्न से शरीर में निर्माण का कार्य नहीं होता।
साधक पित्त का स्थान ह्रदय होता है। इसका कार्य मनोरथ पूर्ति का प्रयास, बुद्धि का उपयोग, बुद्धिमत्ता उत्पन्न करना हर्ष, शौर्य, तेज और अभिलाषा, निरोगी रहने की इच्छा उत्पन्न करना होता है। इसके विकृत होने से मन में दुर्भावनाएं पनपती हैं, जीवन से अरुचि होती है और स्वयं को ठीक होने के प्रयास करने की इच्छा नहीं होती।
आलोचक पित्त का संबंध दृष्टि से होता है यह देखने और देखी हुई चीजों का विश्लेषण करने के काम आता है। इसके विकृत होने से आंखों के रोग उत्पन्न होते हैं, साथ ही विश्लेषण की समझ भी कम या विकृत होती है।
भ्राजक पित्त का काम त्वचा के रोम छिद्रों से पोषण ग्रहण करना और पसीने के रूप में विकार बाहर निकालना होता है। इसका संबंध त्वचा से होता है। इसके विकृत होने पर पसीने और त्वचा संबंधी रोग होते हैं।
शरद ऋतु में गर्म उपचार जैसे स्टीम बाथ पसीना बहाने वाले व्यायाम आदि नहीं करना चाहिए।
पित्त वर्धक खाद्य पदार्थ जैसे अजवाइन, कालाजीरा, सौंफ, अदरक, हींग, बावची, लहसुन, पान, बेल, अरंडी के पत्ते, सब्जा, चिया सीड अर्थात सब्जा के बीज, पका खीरा, बेलफल, शहतूत, उड़द, कच्चा मूली का शाक, पकी ककड़ी, काली सेम, बैंगन, दही, आइसक्रीम, बर्फ, सरसों का साग, चर्बी, तेल, सरसों तेल, अलसी तेल, काजू, पिस्ता का सेवन न करें। धूप, ओस, पूर्व से चलने वाली हवाएं, गर्म पानी आदि का सेवन नहीं करना चाहिए।
कुछ पित्तनाशक पदार्थ जिनका सेवन करना चाहिए वह निम्नलिखित हैं-
बहेड़ा, धनिया, मेथी, वंशलोचन, मुलेठी, अमलतास, कालमेघ, हल्दी, आमा हल्दी, लोध्र, पवाँड, सेंधा नमक, लौंग, बड़ी इलायची, दूब, शतावर, कड़वी नीम, छुई मुई, आम, नारियल पानी, तरबूज, खरबूज, कच्चा खीरा, कैथा, सिंघाड़ा, अनार, खजूर, बादाम, सेब, चिरौंजी, खिरनी, मखाना, आलू बुखारा, अखरोट, अंजीर, मुनक्का, किसमिस, नारियल, बादाम, फालसा, लिसोड़ा, गूलर, अडूसा, पिप्पली, कत्था, पलाश, जौ, चावल, गेहूं, मूंग दाल, मोठ, अरहर, ज्वार, भुट्टा, बथुआ, पोई, पालक, भुना हुआ मूली का साग, चने का साग, कच्चा कद्दू, कच्ची ककड़ी, लौकी, करेला, परवल, हरी सेम, सहीजन फल्ली, कमलकंद, ईसबगोल, दूध, गाय का घी, शहद, तिल, नाशपाती, गुलाब, पका कटहल, इन पदार्थों का सेवन अवश्य करें।