


Aapki rasoi aapka Doctor

Gharelu chikitsa

Qualitative plantation

कैंसर दिवस 04-02-14 पर
वयोवृद्ध














कैंसर दिवस पर कार्यक्रम
कैंसर दिवस के अवसर पर टॉप-एन-टाउन चौराहा न्यू मार्केट भोपाल में आयोजित कार्यक्रम में 750 लोगों ने निःशुल्क गेहूं के जवारे के रस का सेवन किया और उनके स्वास्थ्य वर्धक तथा रोग निवारक गुणों को जाना। टीम रसाहार ने इस जनजागरण अभियान में बढ़ चढ़ कर भाग लिया। स्थानीय व्यवसाइयों ने भी पूर्ण सहयोग किया। राजनैतिक नेतृत्व ने कार्यक्रम में सम्मिलित हो कर कार्यक्रम को गरिमा प्रदान की. सभी को बधाई एवं आभार. फोटो देखना न भूलें।

शीत ऋतु में स्वस्थ रहने के उपाय
शीत ऋतु
ऐसी हो दिनचर्या
मानव शरीर में वात पित्त कफ तीनों सही मात्रा में हो तो मानव स्वस्थ रहता है। यद्यपि स्वस्थ रहने का केवल यही मानदंड़ नहीं है, फिर भी यह एक महत्वपूर्ण पक्ष है। ऋतु के अनुसार शरीर में वात-पित्त-कफ कम या अधिक होते रहते हैं। अतः भोजन में परिवर्तन करके हमें इनकी मात्रा को सही करते रहना पड़ता है। प्रकृति हमें इस कार्य में सहायक है। जिस ऋतु में जो दोष बढ़ जाता है, प्रकृति उस दोष को कम करने वाले खाद्य पदार्थ और वनौषधियां उसी ऋतु में हमें प्रदान करती है। एक और महत्वपूर्ण पक्ष जानने योग्य है। शरीर में प्रत्येक दोष के प्रशम, प्रकोप और संचय का काल भी अलग-अलग होता है।
प्रशम- किसी दोष के शमन अर्थात् कम होने का काल। संचय- किसी दोष का शरीर में संचित होने का काल। प्रकोप- किसी दोष का शरीर में संचित होने के बाद अपने प्रभाव दिखाने का काल। यदि अगहन और पौष माह पर दृष्टि डाली जाए तो यह ऋतु वात के प्रकोप और कफ के संचय की होती है। अर्थात् आषाढ़ और श्रावण या 15 जुलाई से 15 सितम्बर के बीच हमारे शरीर में जिस वात का संचय होता है, 3 माह बाद अर्थात 15 नवम्बर से 15 जनवरी के बीच वह वात हमें परेशान करने लगता है। या यंू कहें कि उसका प्रकोप होता है। 15 नवम्बर से 15 जनवरी के बीच हमारे शरीर का कफ को संचित करने का काल है। अर्थात् इस ऋतु में की जाने वाली भूलों के कारण हम अपने शरीर में कफ जमा कर लेते हैं। जो आने वाले 3 माह बाद हमें कष्ट देने वाला है। वसन्त ऋतु अर्थात् 15 जनवरी से 15 फरवरी मंे यह संचित कफ धीरे-धीरे पिघलना प्रारम्भ होता है। ऐसी स्थिति में वमन जैसे शोधन कर्म करके कफ को निकाल देना चाहिए। अन्यथा कफ रोगों की उत्पत्ति होने लगती है। वर्षा काल में शरीर की पाचन शक्ति बिलकुल कम हो चुकी होती है, अतः शरद् ऋतु मंे वात और भी अधिक कष्ट देता है।
आयुर्वेद के अनुसार बताए गए छः रसों में से मधुर, तिक्त अर्थात् तीखा रस लेना इस ऋतु में अधिक योग्य होता है अतः गाजर, दूध के बने पदार्थ, हरीमिर्च, हरे साग, चुकन्दर, शलजम, आलू, गुड, तिल, उड़द, गेहूँ, गन्ने और गुड़ से बने पदार्थ, नया अन्न उत्तम केशर, गरम मसाले आदि खाद्य पदार्थ उचित हैं। प्रातः काल अर्थात् सुबह 10 बजे के आस-पास भोजन करना उचित होगा। इस ऋतु में तेल मालिश करके धूप में बैठना लाभदायक होता है। खूब परिश्रम भी करना चाहिये। यूँ तो योग ग्रन्थों में आग तापना योगियों के लिये वर्जित बताया गया है, किन्तु इस ऋतु में आग तापना सामान्य जन के लिये उचित बताया जाता है। स्निग्ध भोजन इस ऋतु में लाभदायक है। भारी तथा उष्ण वस्त्र जैसे सिल्क, कोसा, ऊनी कपड़े इस ऋतु में पहने जाने चाहिए। वसन्त आते आते ऋतु में होने वाले परिवर्तन के अनुरूप वमन, नेति आदि शोधन कर्म करना चाहिए। इस ऋतु में रूखा और कटु रस योग्य होता है। मूंग की दाल, जौ, साठी चावल आदि ऊष्ण व हल्का भोजन करें। शहद के साथ हर्रे का सेवन इस ऋतु में बड़ा लाभदायक होता है। इस ऋतु में प्रतिदिन उबटन लगाकर स्नान करना चाहिए और भरपूर व्यायाम करना चाहिए। गरिष्ठ भोजन, मधुर तथा अम्ल रस प्रधान खाद्य, दही आदि त्याग देना चाहिए। ओस में बैठना और दिन में सोना भी इस ऋतु में हानिकारक है।

Diabetes survey
Aarogya yoga evam rasahar shodh samiti
286/2A, Saket Nagar, Bhopal Ph. 2452186
Diabetes is a growing epidemic all over the world, particularly in India. According to the World health Organisation, India had over 61 million diabetes patients in 2010. The expected figure for 2030 is 80 million.
Swami Vivekananda Yoga Anusandhana Samsthana, Bangalore, started a nationwide ‘Stop Diabetes movement’ to eliminate diabetes. To support it, Arogya Yoga evam Rasahar Shodha Samiti, Bhopal has started a survey of diabetics. We hope that people will support this program. The form provided is an obesity survey. In the coming months we will provide Yoga & Rasahar to those in need who participate in this survey. So those suffering from multiple problems associated with diabetes, will get relief, and in future will not be dependent on medicines.
Purnima Datey Parul Kekre
9425027273 8989096659
Survey for Diabetes patients
Name ____________________________________________________
Address______________________________________________________
Mo. E-mail
Weight____ Height______Age_______Gender______ Marital status______
Family History- Mother/Father/Siblings Education___________
Latest report FBS ______ PPBS________ Existing Medicine________
Alchohol/Smoking/Tobacco/Veg/non Veg
Other associated problems – BP/ Heart/Eyes/Ears/Limbs/Digestion/Skin/
Others_____________________ Income group- Higher /Middle /Low Occupation– Service/Self/Retired/HW/Farmer/Student/Other____________
Food time –Morning_____, Afternoon______, Evening_____, Night_____
Date________ Signature________

वर्षा ॠतु में स्वास्थ्य रक्षा Health care in Rainy season
मालवा में एक कहावत प्रचलित है।
सावन साग और भादो दही
मरिहो नहीं तो पडि़हो सही
अर्थात् सावन में हरी साग और भादो माह में दही का सेवन करोगे तो मर भले ही न जाओ, बीमार अवश्य पड़ाेगे। कहावत बड़ी वैज्ञानिक है। सावन में पानी प्रदूषण युक्त होता है। कृमि कीटों की भरमार होती है। बाजार में मिलने वाले हरे साग प्रदूषित पानी कीटों इल्लियों आदि से युक्त होते हैं। इन्हें खाने पर थोड़ी भी लापरवाही हमें रोगी बना सकती है। दही अभिष्यंदी होता है। अर्थात् हमारे शरीर की रसवाही शिराओं में अवरोध करके रोग पैदा करता है। वर्षा ॠतु मेंं यूं ही पाचन शक्ति अपने न्यूनतम स्तर में रहती है। ऐसे में रक्त या रसों का संचार धीमा होने पर हम अवश्य रोगग्रस्त हो जाएंगे। वर्षा ॠतु में हमारे शरीर के अन्दर पहले से बढ़ चुका वात अपने प्रभाव दिखाना प्रारम्भ करता है। शरीर मे पित्त और कफ का संचय भी इसी ॠतु में होता है। जो ॠतु बदलने पर आने वाले समय में अपना प्रभाव दिखाते है। जैसे ठंड में कफ और गर्मियों में पित्त। इसका अर्थ यह है कि हम अपने शरीर में रोग होने का वातावरण कम से कम 3 माह पूर्व ही तैयार कर लेते है। जब रोग होता है तो वह रोग विशेष का उभार ही होता है। तीव्र रोगों के उभार अचानक बढ़ते हैं और विकार शरीर से बाहर निकलने पर तुरन्त समाप्त हो जाते हैं। जीर्ण रोगों के उभार वास्तव में शरीर के किसी अंग की विकृति या निष्यक्रियता के कारण होते हैं। जैसे मधुमेह होने पर पेनक्रियास की निष्यक्रियता के कारण शरीर में ग्लूकोज का उपयोग कोशिकाएं नहीं कर पातीं और शरीर में कमजोरी आती है। जीर्ण रोग मनुष्य की वर्षों पुरानी भूलों का परिणाम हैं। ये तीव्र रोगों को दबाने के कारण भी हो जाते हैं।
आहार नियमों का पालन ॠतुओं को ध्यान में रख कर किया जाना चाहिए इसलिये हमें यह जानना आवश्यक है कि किस ॠतु कौन से रोग हो सकते हैं और कौन से खाद्य पदार्थ हमें उन रोगों से बचा सकते हैं। वर्षा ॠतु में वात की प्रबलता होती है। अत: मधुर अम्ल और लवण रसों का सेवन सीमित मात्रा में करना चाहिए। मधुर और अम्ल रस का सेवन आवश्यकता से अधिक करने पर कफ संचय होगा और शीत ॠतु में कफ विकार बढ़ने की सम्भावनाएं रहेंगी। लवण रस यद्यपि अग्निवर्धक होता है, परन्तु अधिक मात्रा में इसका सेवन करने से बल का ह्सा होने लगता है।
वर्षा ॠतु में पसीना अधिक आता है जिससे पसीने के साथ शरीर के कुछ खनिज लवण भी निकल जाते हैं इन सभी की पूर्ति के लिये विटामिन सी युक्त पदार्थ, अंकुरित अनाज का सेवन करना चाहिए। नींबू, मौसम्बी, अनार, जामुन इस मौसम के योग्य फल हैं। शरीर में अग्नि मन्द होने के कारण पेट सम्बन्धी रोग होने की सम्भावनाएं अधिक रहती हैं। अत: अदरक या सोंठ का सेवन नियमित रूप से करना चाहिए। गिलेाए, गेहू¡ के जवारे का रस, पोदीना, भुई आँवला, ग्वारपाठा आदि वनौषधियों का रस इस ॠतु में लाभदायक है। पानी सम्भवत: उबाल कर पियें और यदि आपके आस-पास मौसमी बुखार का जोर अधिक हो तो पानी उबालते समय एक मुठ्ठी अजवाईन 1 लीटर पानी में डालकर उबालें। दही और छाछ इस ॠतु में पूर्णत: वर्ज्य रखें। बाजार से पत्तेदार सब्जियां न खरीदें। कटहल बैंगन, फूलगोभी, भिंडी आदि वात वर्धक सब्जियों से भी इस ॠतु में बचें। लौकी, परवल, टिंडे, ककोरे, बरबट्टी, गिलकी, तुरई शलजम, चुकन्दर आदि सब्जियां इस ॠतु में खाई जा सकती हैं। दालों में भी मूंग की दाल का प्रयोग इस ॠतु में अधिक करें। हिन्दू परम्पराओं के अनुसार सावन से चातुर्मास प्रारम्भ होता है। इन चार माह में ही अधिकांश उपवास होते हैं। उपवास से हमारे अन्दर आकाश तत्व की वृद्धि होती है। आंतों की सिकुड़ने और फैलने की प्रक्रिया में वृद्धि हो कर खाए हुए भोजन का पाचन आसानी से होता है और मल भी बाहर निकलना सहज हो जाता है। इससे पाचन तंत्र सही बना रहता है। चातुर्मास में एक समय भोजन की भी परम्परा है। चातुर्मास में भोजन का हल्का और सुपाच्य रखने के लिए प्याज लहसुन बैंगन को वर्जित कर दिया गया है। इसके पीछे उद्देश्य यही है कि हल्का भोजन किया जाए। जैन परम्परा के अनुसार चार माह तक प्रवास भी वर्जित होता है। इसके पीछे कारण यह है कि मनुष्य अत्यधिक श्रम साध्य कार्य इन चार माह में न करें। इस वर्ष चातुर्मास 17 जुलाई 2024 को देवशयनी एकादशी से 12 नवंबर 2024 तक रहेगा।
वर्षा ॠतु में भाप स्नान अवश्य करना चाहिए ताकि त्वचा के रोमछिद्र खुल जाएं और पसीने के साथ विजातीय द्रव्य शरीर से बाहर निकल जाएं। इसी तरह मालिश भी इस ॠतु में प्रभावी है। मालिश से शरीर में रक्त संचार की गति मिलती है और आन्तरिक र्जा में वृद्धि होती है। वर्षा ॠतु में कुछ निषिद्ध कर्म भी है। जैसे पूर्व से आई हुई हवा का सेवन नहीं करना चाहिए इससे वात वृद्धि की सम्भावनाए बढ़ती है। वर्षा ॠतु में अधिक धूप अथवा ओस का सेवन न करें। प्रतिदिन मैथुन भी इस ॠतु में वर्जित है। नदी के जल का उपयोग न करें क्योकि वातावरण में प्रदूषण अधिक होता है। दिन में सोना इस ॠतु में अहितकर माना जाता है। रूखा भोजन न करें।
नववर्ष की नीम

नीम (Azadirachta gndica)
आप सभी ने नववर्ष का स्वागत नीम की कोपलें एक दूसरे को खिला कर किया होगा। भारत वर्ष में यह परम्परा हजारों वर्ष पुरानी है। भारत में किसी पेड़ पौधे का महत्व इस बात से जाना जा सकता है, कि वह कितनी प्रचलित परम्पराओं से जुड़ा हुआ है। बिना किसी बोझिल पढ़ाई के सामाजिक स्वास्थ्य शिक्षा का यह अनूठा तरीका हमारे पूर्वजों ने बड़ी अच्छी तरह समझ लिया था नीम को मृत्युलोक का कल्प वृक्ष कहा जाता है। क्योंकि इसकी जड़ से ले कर शिखा तक एक-एक अंग औषधी युक्त है। यह सर्व रोग नाशक है। प्रति दिन 4-5 नीम की कोमल पत्तियां खाते रहना अच्छी बात किन्तु वर्षो तक लगातार बिना कारण अधिक मात्रा में नीम पत्र खाना उचित नहीं है।
1- यह वृक्ष प्रायः सभी पठारी भागों में पाया जाता है। किन्तु पंजाब में कम होता है। यह उष्ण प्रकृति का होता है। अरूचि और मंदाग्नि को दूर करता है। इसके कुछ महत्वपूर्ण प्रयोग निम्न लिखित है।
2- उपद्रव रहित सामानय चेचक हो तो नीम पत्र के सिवा किसी भी औषधी का प्रयोग नहीं करना चाहिये। रोग के समय बिछौने और कमरे में चारों और नीम पत्र बिछा कर नीम पत्र के चंवर से ही रोगी को लगातार हवा करनी चाहिये। साथ ही ताजे कोमल पत्ते मुलेठी चूर्ण के साथ गोलियां बना कर खाने को देना चाहिये। ऐसा करने से ज्वर और प्यास नहीं बढ़ती। साथ ही चेचक का विष गहराई तक नहीं जाता।
3- चेचक के फोड़े सूख जाने के बाद नीम पत्र पीस कर सोते समय लगाएं और नीम के पानी से ही रोगी को स्नान कराएं तो चेचक के दाग मिट जाते हैं।
4- फोड़े की प्रारम्भिक अवस्था में नीम पत्र का लेप लगाने से फोड़ा सूखा जाता है। फोड़ा अधिक पक गया हो तो नीम पत्र को पीस कर उसका लेप शहद के साथ मिला कर लगाने से फोड़ा पक कर फूट जाता है। फोड़ा फूट कर सूख जाने के बाद नीम पत्र को घी के साथ लेप बना कर गर्म करने से घाव सूख जाता है।
5- कुछ लोगों को शरीर पर हमेशा फोड़े होते रहते हैं। कुछ लोगों को मुँहासे अधिक होते हैं। ये दोनों ही रक्त दूषित होने के परिणाम हैं। ऐसे में प्रतिदिन नीम की 40-50 पत्तियां का रस पीना चाहिये। साथ ही स्नान करने के जल में नीम की पत्तियां उबालकर डालना चाहिये।
6- सिर अथवा पलकों के बाल झड़ते हों तो नीम के ताजे पत्तों का रस निचोड़ कर लगाना चाहिये।
7- दाद, खाज, खुजली में भी नीम पत्र का लेप बार-बार लगाना चाहिये।
8- मलेरिया होने पर 60 नीम पत्र और 4 कालीमिर्च के दाने एक कप पानी में पीस कर छान कर शबर्त की तरह पीने से मलेरिया ठीक हो जाती है।
9- पथरी होने पर नीम पत्र की राख एक चम्मच में ले कर दिन में तीन बार ठंडे पानी के साथ फांक लेना चाहिये। पथरी गलकर निकल जाती है।
10- विषैले सांप काटने पर नीम की पत्तियां चबाई जाएं तो कड़वी नही लगती। उन्हें तब तक चबाना चाहिये। जब तक कड़वापन न लगने लगे। ऐसा होने पर समझ लीजिये कि सांप का विष उतर गया।
11- गठिया में जब जोड़ों पर सूजन भी रहती है, तो नीम की पत्तियों को उबालकर उसकी भाप से सिंकाई करने से बड़ा आराम मिलता है।
12- उल्टी आने पर 10-20 नीम पत्र का रस छान कर पीने से किसी भी प्रकार की उल्टी थम जाती है।
13- उच्च रक्तचाप के रोगी को नित्यप्रति लगभग 25 पत्तियों का रस खाली पेट लना चाहिये।
14- बवासीर या अर्श होने पर प्रतिदिन नीम पत्र 21 नग लेकर मूंग की भिगोई हुई धोई हुई दाल के साथ कोई भी मसाला न मिलाते हुए पीस कर घी में तलकर खाएं। इस प्रकार 2 दिन तक इन पकौडियों को खाने से सब प्रकार के अर्शांकुर निर्बल हो कर गिर जाते हैं। ध्यान रहे कि दौरान केवल ताजा मठ्ठा पीकर ही रहना है।
15- नीम पत्र के साथ कनेर के पत्तों को पीस कर मस्सों पर लेप करने से कुछ हीदिों में मस्से झड़ का गिर जाते हैं।
16- बर्र या बिच्छु के दंश पर नीम पत्र मसल कर लगाने से शांती प्राप्त होती है।
17- योनी में दुर्गन्ध अथवा खुजली होने पर नीम पत्र का धुंआ लेना चाहिये। थोड़े दिनों में ही योनि के अन्दर का चिपचिपापन, खुजली या दुर्गन्ध दूर हो जाती है।
18- स्तनों से दूध निकलना बन्द करने के लिये निबौली की गिरी पीस कर स्तनों पर उसका लेप करना चाहिये
19- कभी-कभी स्तनों में पस होकर घाव हो जाते है। ऐसे में नीम पत्र की काली राख बना कर उसमें बराबरी से सरसों का तेल मिला कर नीम की डंडी से हिलाते हुए गर्म करना चाहिये। नीम पत्र उबाले हुए पानी से स्तनों को धोकर यह तेल मिश्रित राख लगा कर ऊपर से नीम पत्र की राख बुरक दें और पट्टी बांध दें। घाव शीघ्र भरकर सूख जाता है।
20- नकसीर फूटने पर नीम पत्र के साथ अजवायन मिला कर कनपटियों पर लेप करते है।
नीम के पत्तों की धूम्र रहित सफेद राख बना कर शरीर पर ऐसे स्थान पर लेप किया जहां पर स्पर्श का अनुभव न होता हो, तो पुनः स्पर्श का अनुभव होने लगता है। इस तरह राख लगाने पर से पूर्व यदि नीम के पत्तों के गर्म लेप से वहां पर सिंकाई की जाए और नीम के पानी से ही स्नान किया जाए तो अधिक लाभ मिलता है।
नीम पत्र के समान नीम की निबौली, जड़ एवं छाल के भी अनेक उपयोग हैं। किन्तु यहां आपकी जानकारी के लिये केवल नीम पत्र के उपयोग ही दिये गए है। क्योंकि नीम पत्र का उपयोग अपेक्षाकृत सरल है। इसी प्रकार नीम के फूल, नीम की गिरी और नीम का गोंद भी अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान रखता है। नीम की दातून का महत्व तो सर्व विदित है ही। औषधीय उपयोग के लिये नीम का अर्क एवं घी भी बना बनाया जाता है। नीम फूलों का गुलकन्द और नीम की ताड़ी बनाने के प्रयोग भी पा्रचीन ग्रन्थों में उपलब्ध हैं।
कड़वी नीम से एक दुर्लभ औषधि भी प्राप्त होती है। जिसके बारे में बहुत कम लोग जानते है। इसके बड़े पेड़ में प्रत्येक 3-4 वर्ष में एक बार नियमित रूप से एक सप्ताह भर कुछ जल टपकता है। इसे कड़वी नीम की गंगा कहते हैं।
नीम का वृक्ष जहां लगा हो वहां आस-पास का वातावरण स्वच्छ शुद्ध और ताजा रहता है। नीम को कीटनाशक के रूप में फसलों पर भी प्रयोग में लाया जाता है।
You all must have welcomed the New Year by feeding each other tender neem leaves. This tradition in India is thousands of years old. The significance of a tree or plant in India can be understood by how deeply it is connected to prevalent traditions. Our ancestors had wisely devised this unique method of social health education without any burdensome studies. Neem is called the “Kalpavriksha” (wish-fulfilling tree) of the mortal world because every part of it, from its roots to its leaves, is medicinal. It is a universal disease healer. Consuming 4-5 tender neem leaves daily is beneficial, but consuming them in large quantities continuously for years without any reason is not advisable.
- This tree is commonly found in almost all plateau regions, but it is rare in Punjab. It has a warm nature and helps to alleviate loss of appetite and weak digestion. Some of its important uses are listed below.
- If a person suffers from mild, uncomplicated chickenpox, no other medicine should be used except neem leaves. During the illness, neem leaves should be spread around the bed and room, and the patient should be continuously fanned using neem leaves. Additionally, fresh tender neem leaves should be made into tablets with licorice powder and given to the patient. This prevents fever and excessive thirst while also stopping the spread of the chickenpox virus.
- After the chickenpox sores dry up, applying a neem leaf paste before sleeping and bathing the patient with neem-infused water helps remove scars.
- In the early stages of a boil, applying a neem leaf paste dries it up. If the boil is more severe, applying a paste of neem leaves mixed with honey helps it mature and burst. After the boil has burst and dried, applying a paste of neem leaves with ghee and warming it helps heal the wound quickly.
- Some people frequently suffer from boils, while others have severe acne due to impure blood. In such cases, drinking the juice of 40-50 neem leaves daily and bathing with neem-infused water helps purify the blood.
- If hairs from the scalp or eyelashes are falling, applying the juice of fresh neem leaves helps prevent hair loss.
- For ringworm, scabies, and itching, applying neem leaf paste frequently provides relief.
- For malaria, grinding 60 neem leaves with four black peppercorns in a cup of water and drinking it like a sherbet cures malaria.
- For kidney stones, consuming one teaspoon of neem leaf ash with cold water three times a day helps dissolve and expel the stones.
- If a venomous snake bites a person and he/she chew neem leaves, the leaves will not taste bitter. The person should continue chewing until the bitterness returns, indicating that the venom has been neutralized.
- For arthritis with swollen joints, steaming the affected area with boiled neem leaves provides relief.
- For vomiting, drinking the filtered juice of 10-20 neem leaves stops vomiting of any kind.
- Patients with high blood pressure should drink the juice of about 25 neem leaves on an empty stomach daily.
- For piles (hemorrhoids), grind 21 neem leaves with soaked and cleaned moong dal, fry in ghee without adding any spices, and eat these fritters for two days. This weakens and eliminates hemorrhoids. During this treatment, only fresh buttermilk should be consumed.
- For warts, applying a paste of neem leaves mixed with oleander leaves makes them fall off in a few days.
- For wasp or scorpion stings, crushing neem leaves and applying them to the affected area provides relief.
- For vaginal odor or itching, inhaling the smoke of burnt neem leaves through vegina helps remove stickiness, itching, or foul odor in a few days.
- To stop breast milk secretion, grinding neem seeds into a paste and applying it to the breasts helps.
- Sometimes, pus accumulates in the breasts, leading to wounds. In such cases, prepare black ash from neem leaves, mix it equally with mustard oil, heat it while stirring with a neem twig, and apply it after washing the breasts with neem-infused water. Sprinkle neem ash on top and bandage the area. This helps heal the wound quickly.
- For nosebleeds, applying a paste of neem leaves mixed with ajwain (carom seeds) on the temples helps stop the bleeding.
Neem leaf ash, when applied to numb body parts, restores sensation. For better results, warm compressing with neem leaf paste before application and bathing with neem-infused water is recommended.
Similar to neem leaves, neem seeds, roots, and bark also have multiple uses. However, this list includes only neem leaf applications for easier understanding. Neem flowers, neem seeds, and neem gum are also highly valuable. The benefits of neem twigs for oral hygiene are widely known. Neem extracts and neem-based ghee are also prepared for medicinal use. Ancient texts even mention making neem flower preserves and neem toddy.
A rare medicinal substance is obtained from bitter neem trees, which very few people know about. Every 3-4 years, large neem trees naturally secrete a liquid for about a week, known as the “Ganga of Bitter Neem.”
Neem trees purify and freshen the surrounding environment. Neem is also used as an insecticide in agriculture.