यद्यपि शीत ऋतु अच्छे स्वास्थ्य की ऋतु मानी जाती है, परंतु जब शीत ऋतु में बरसात होती है, तब भी शरीर में वात बढ़ जाता है। इसी प्रकार वर्षा ऋतु में भी धरती पर वर्षा की बूंदे पड़ने पर वात बढ़ता है। इसलिए यह वात संबंधी रोगों बढ़ाएगा, साथ ही रोग को एक अंग से दूसरे अंग में भेजने का काम भी करेगा। इसलिए ऐसी ऋतु में कोई भी वात बढ़ाने वाली चूक न करें। जिन्हे कैंसर, पुराना मधुमेह, अस्थमा, एलर्जी, स्नायु तंत्र, किडनी, रूखी त्वचा, दुबलापन, गठिया, जोड़ों में दर्द, पाइल्स, गैस, कब्ज, अधीरता, भुलक्कड़ पन, आदि वात संबंधी समस्याएं हैं, उन्हेंवात नाशक वस्तुओं का सेवन करना चाहिए और वात वर्धक वस्तुओं को भोजन से हटाना चाहिए। इसी प्रकार कुछ क्रियाएं भी वात वर्धक होती हैं, जिनसे बचना चाहिए यह निम्नलिखित हैं-
अति व्यायाम, अति मैथुन, अति अध्ययन, अग्नि और सूर्य के ताप का अधिक सेवन, उछल कूद, दौड़ना, देह को अत्यधिक कष्ट पहुंचाना, घाव या चोट लगना, उपवास, तैरना, रात्रि जागरण, अधिक बोझ उठाना, अति प्रवास करना, अति वमन, शरीर से अत्यधिक रक्त निकलना, अधोवायु, मल, मूत्र, शुक्र, वमन, डकार, आँसू आदि वेगों को रोकना, चरपरे, कसैले और कड़वे रस वाले पदार्थ अधिक खाना, शुष्क, लघु और शीत वीर्य गुण वाले पदार्थों का अति सेवन, सूखे साग, सूखा माँस, मूंग, मसूर, अरहर, काला मटर, चौलाई, चना, बाजरा, ज्वार, मोठ, गवार फली, कच्चा कटहल, ताड़फल, मकई, फूलगोभी, पत्तागोभी, तुरई, लौकी, ककड़ी, तरबूज, मूंगफली, केला, अमरूद, सीताफल, रामफल, खसखस, बड़ी इलायची, सिंघाड़ा, अंगूर, मखाना, पलाश, पालक, बड़ा कुल्फा, चने का साग, सरसों का साग, ईसबगोल, आलू, कमल कंद दूध और मूली का एक साथ सेवन।
लाभकारी वात नाशक पदार्थ-
सोंठ, कालीमिर्च, अजवाइन, काला जीरा, सफेद जीरा, मेथी, हालो, हींग, चोपचीनी, वायविरंग, मुलेठी, प्याज, जायफल, जावित्री, छोटी इलायची, दालचीनी, तेजपत्ता, पान, बेल, गोखरू, लहसुन, अरंडी, शतावर, अश्वगंधा, अपामार्ग, ग्वारपाठा, पुनर्नवा, भृंगराज, भुई आंवला, तुलसी, सब्जा, आम, पका कटहल, खरबूज, पका खीरा, कैथा, संतरा, खजूर, बादाम, सेब, सहीजन, चिरौंजी, फालसा, अंगूर, नाशपाती, नींबू, इमली, गेहूं, पोई, छोटा कुल्फा, पका कद्दू, तुरई, हरी सेम, काली सेम, गाजर, दूध, सरसों का तेल, अरंडी का तेल।