अब कड़ाके की ठंड पड़ने की ऋतु है। ऐसे में हमारी शारीरिक हलचल कम होने के कारण शरीर में कहीं-कहीं अकड़न हो जाती है। हम इस ऋतु में सिंकाई अलाव तापना या रूम हीटर, गर्म गद्दे आदि अनेक प्रकार से गर्माहट पाना चाहते हैं, परंतु इन सब से अकड़न ठीक नहीं होती उसके लिए तो शरीर की हलचल ही आवश्यक है इसलिए सूक्ष्म व्यायाम अवश्य करें। एक स्थान पर अधिक देर बैठे या पड़े न रहें।
वर्षा ऋतु में शरीर में वात बढ़ जाता है एवं शीत ऋतु में भी वात के कारण शरीर दर्द, जोड़ों में अकड़न आदि की समस्याएं होती हैं। अतः हमें नियमित रूप से वात नाशक खाद्य लेने चाहिए। भोजन के अंत में भी शरीर में वात बढ़ जाता है। अतः भोजन के अंत में सोंठ का सेवन अत्यंत लाभकारी है। दोनों ही ऋतुओं में दोपहर एवं रात्रि भोजन के बाद सोंठ, गुड और घी का मिश्रण अत्यंत लाभकारी है। इसे स्वीट डिश की तरह प्रतिदिन एक चम्मच खाया जा सकता है। सामग्री सतवा सोंठ 250 ग्राम या 3 कटोरी, गुड 1 किलो या 6 कटोरी और घी 250 ग्राम या 3 कटोरी
शुद्ध देसी गाय का घी पिघला कर सतवा सोंठ में उँडेल दें। इसे अच्छी तरह मिलाकर बारीक कटा हुआ मुलायम देसी गुड़ भी इसमें अच्छी तरह मिला लें और बंद डिब्बे में रख लें। यह मिला हुआ मिश्रण भोजन के उपरांत प्रतिदिन एक चम्मच लिया करें। रसाहार केंद्र में यह ₹600 में प्रति किलो उपलब्ध है।
शीत ऋतु में गर्म बैठक या कटि स्नान एक अच्छा उपचार है। इसी तरह कुकर में पाइप लगाकर दर्द के स्थान पर भाप देना भी अच्छा उपचार है। किंतु इस पानी में कुछ वनस्पतियों के पत्ते डाल देने से यह अत्यंत लाभदायक वात नाशक उपचार हो जाता है। इसे ध्यान में रखते हुए शीत ऋतु में रसाहार केंद्र में आप लोगों के लिए पांच प्रकार के पत्तों का एक पैकेट भी उपलब्ध होगा, जिसे वातहारि कहेंगे। इसमें अरंडी, आक, निर्गुंडी, इमली और कटहल के पत्ते रहेंगे। आपको बस इन्हें 15-20 मिनट तक थोड़े से पानी में उबालना है और भाप लेने के या कटी स्नान या गर्म बैठक स्नान के पानी छानकर में मिला देना है। रसाहार केंद्र में यह ₹10 में उपलब्ध है।
इस ऋतु में त्वचा रूखी ही होती है, अतः सरसों के तेल से मालिश अवश्य करें। जहां पर अधिक रूखापन है वहां बार-बार गाय का घी या घर का बना घी लगाएं। आहार में भी घी और मक्खन का उपयोग भरपूर करें ताकि शरीर में अंदर से भी स्नेहन हो सके स्नायु तंत्र को अच्छा बनाए रखने के लिए स्नेहन आवश्यक है। शीत ऋतु प्रारंभ होने से पूर्व शरद ऋतु में आपसे कहा गया था कि सिर में तेल मालिश अभी नहीं करना है। क्योंकि उस ऋतु में बालों की जड़ों में पसीना अधिक रहता है, जो उस ऋतु में सूखता नहीं है। परंतु शीत ऋतु में अन्य स्थानों की त्वचा के समान ही सिर की त्वचा भी रूखी हो जाती है। इसलिए रूसी होने की संभावना रहती है। इस ऋतु में सिर में अंगुलियों से अच्छी तरह तेल मालिश करना चाहिए। ताकि बालों की जड़ों को पोषण मिले और त्वचा भी रूखी न रहे।
अपने यहां उपलब्ध वट जटा तेल को धीमी आंच पर बहुत देर उबाला जाता है। जिसके कारण उसकी जड़ों की गहराई तक पहुंचने की शक्ति अच्छी होती है। बड़ की जटाओं के साथ ही उस में डाली गई अन्य वनौषधियों कपूर कचरी, नागर मोथा, जटामासी, मेहंदी आदि का लाभ भी मिलता है। अपना रसाहार केंद्र होने के कारण आंवला भी ताजे रस के रूप में ही उसमें डालकर पकाया जाता है। यह एक अतिरिक्त लाभ है।