बालों की सुरक्षा
Hair care
श्वेता भालेकर जी,
आप प्रतिदिन नारियल और आंवला अवश्य खाएं।
वट जटा तेल एवं केश वर्धक हमारे पास उपलब्ध है। केश वर्धक से सिर धोने के बाद वट जटा तेल लगाया करें।
रात्रि जागरण न करें।
Self management of excessive tension (SMET):
A course specially designed by Swami Vivekananda Yog Anusandhan Samsthan to deal with tension and stress. Which mount up & come in the way of our day to day work schedule. Steps of this meditation are given bellow. First read all the instructions carefully. Read all the steps of meditation in next. An audio of yoga class of Cyclic meditation taught by Dr. Purnima Datey is available on the link given bellow.
Instructions:
Hari om
According to the modern science, stress is a reflex to a demanding situation. We encounter a large number of demanding situations in our day to day life. Our system continuously took off the situation by raising itself to a heightened activity. Bring up a series of activity changes starting from cortex down to each & every part of the body. That makes many changes in the body. Increase blood circulation, heartbeat, breathing rate, BP etc. At the conclusion of the demanding situation body comes to the normalcy. Though it is a normal process, it can collapse if it is repeated number of times. But however modern life continuously simulates us. It results so many diseases like BP, Sugar, Back pain, ulcer etc. In the accompanying link, an audio conversion of this yoga class is being given. You can easily practice this exercise by following it. This recording is taken from a yoga meditation class taken by Dr. Purnima Datey. h
अत्यधिक तनाव पूर्ण स्थिति का स्वप्रबंधन, यह विशिष्ट योगाभ्यास स्वामी विवेकानंद योग अनुसंधान संस्थान बेंगलुरु द्वारा तैयार किया गया है। इसमें तनाव की स्थिति से स्वयं को बाहर निकालने का प्रयास किया जाता है। जब तनाव अत्यधिक बढ़ जाता है, तो वह हमारे दैनिक कार्यों को प्रभावित करता है। इस अभ्यास को बिंदुवार रूप से नीचे दिया जा रहा है। कृपया सबसे पहले यह योगाभ्यास करने के पूर्व ध्यान देने योग्य बातों को ध्यानपूर्वक पढ़ें। उसके बाद एक-एक स्थिति को क्रमशः पढ़ें। साथ में दिए गए लिंक में इस योगाभ्यास की कक्षा का श्रव्य रूपांतरण दिया जा रहा है। उसे सुनकर आप यह अभ्यास सरलता पूर्वक कर सकते हैं। यह रिकॉर्डिंग डॉक्टर पूर्णिमा दाते द्वारा ली गई आवर्तन ध्यान की योग कक्षा से ली गई है।
योगाभ्यास कक्षा के पूर्व निर्देश
योगाभ्यास का नियत समय 60 मिनट है।
साधक को योगाभ्यास करने से कम से कम 1 घंटा पूर्व ही आहार लेना चाहिए।
साधक को योगाभ्यास के समय ढीले कपड़े पहनने चाहिए।
प्रत्येक साधक का अपना एक अलग आसन होना चाहिए, जो लगभग 6 फीट लंबा और 3 फीट चौड़ा होना चाहिए।
योगाभ्यास पूर्ण होने के पश्चात साधक को शांति पूर्वक वापस जाना चाहिए, ताकि इस अभ्यास का अधिक से अधिक लाभ मिल सके।
इस अभ्यास के आधे घंटे बाद ही कोई आहार लिया जा सकता है। हरि ओम।
आधुनिक विज्ञान के अनुसार तनाव हमारे सामने उत्पन्न विपरीत परिस्थिति का परिणाम है। हमारे अंदर स्थित प्रबंधन प्रणालियां सतत इन विपरीत परिस्थितियों का प्रबंधन करती रहती हैं इस हेतु हमारे द्वारा कोई न कोई प्रतिक्रिया होती है। यह प्रतिक्रिया श्रृंखलाबद्ध रूप से हमारे मस्तिष्क में कॉर्टेक्स नाम की ग्रंथि से प्रारंभ होकर नीचे शरीर के विभिन्न अंगों को प्रभावित करती है। इसके कारण हमारे शरीर में अनेक भौतिक परिवर्तन होते हैं। जैसे हमारे रक्त का संचार तीव्र होना, ह्रदय गति बढ़ना, श्वास गति तथा रक्तचाप बढ़ना इत्यादि। तत्कालीन विपरीत परिस्थिति के समाप्त हो जाने के बाद हमारा शरीर सामान्य हो जाता है। यद्यपि यह एक सामान्य प्रक्रिया है, किंतु इसके बार-बार जल्दी-जल्दी दोहराए जाने पर हमें अनेक रोग घेर लेते हैं। जैसे, उच्च रक्तचाप, मधुमेह, पीठ दर्द, अल्सर आदि।
The SMET is based on Upanishadik principle of stimulation & relaxation. In Mandukya Upanishad, there is a beautiful ‘karika’ –
Laye Sambodhayet Chittam Vikshiptam shamayet punah, Sakashayam vijaniyat samah praptam na chalayet
आवर्तन ध्यान का यह योगाभ्यास एक श्लोक से प्रारंभ होता है। जिसे आदि शंकराचार्य द्वारा लिखी गई मांडूक्य उपनिषद् की टीका में लिखित एक कारिका से लिया गया है-
लये संबोधयेत् चित्तं विक्षिप्तं शमयेत् पुनः।
सकषायं विजानीयात् समः प्राप्तं न चालयेत्।।
That means- In the state of oblivion, awaken the mind. When agitated, pacify it; in between the mind. If the mind has reached the state of perfect equilibrium, then do not disturb it again.
अर्थ – शरीर की संपूर्ण स्थिर अवस्था में, जब चित्त की की गहराइयों में पड़े विकार बाहर आकर हमें विचलित करने का प्रयास करते हैं। तब ईश्वर से प्रार्थना है कि, ऐसी स्थिति में हम उन विकारों को समझ कर शांत कर सकें। ताकि वह हमें पुनः विचलित न करें।
Mind goes into a state of stagnation. Then address it, stimulate in & bring it to activity. When we bring it to activity, it becomes hyper active. Mind has to be calm down again & again. It has to be done. This is the essence of the entire SMET program. This two fold approach of stimulating & relaxing has been actualize in to a package by using the different yoga techniques. For stimulate we use Aasanas, the breathing, the blood circulations, the nerves & pulses, by relaxation, by let go, by calming down, we relive the stresses intensions. The set of 35 minutes yoga practices is given bellow.
SMET Practice: (self management of excessive tension*Cyclic meditation)- 35 MINUTES
Prayer: Om Sahanavavatu, Sahanau bhunaktu, Sahaviryam karavavahai, Tejasvinavadhitamastumavidvishavahai, Om shantihi! shantihi! shantihi!
ॐ सह नाववतु ।
सह नौ भुनक्तु ।
सह वीर्यं करवावहै ।
तेजस्वि नावधीतमस्तु मा विद्विषावहै ।
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥
परमेश्वर हम शिष्य और आचार्य दोनों की साथ-साथ रक्षा करें, हम दोनों को साथ-साथ विद्या के फल का भोग कराए, हम दोनों एकसाथ मिलकर विद्या प्राप्ति का सामर्थ्य प्राप्त करें, हम दोनों का पढ़ा हुआ तेजस्वी हो, हम दोनों परस्पर द्वेष न करें।
5. QUICK RELAXATION TECHNIQUE (QRT) – Done in 3 phases (3 minutes).
6. Siting Postures – Sthiti: Dandaasana a. ARDHAUSTRASANA/ USTRASANA b. SHASHANKASAN
7. DEEP RELAXATION TECHNIQUE (DRT) – 6 MINUTES- part by part
8. PRANAYAMA – Anulom-Vilom, Bhramari (10-10 round), Nadanusandhan
9. CLOSING PRAYER : Sarve bhavantu sukhinah, Sarve santu niramayah, Sarve bhadrani pashyantu, Makashchit dukha bhagbhavet.
प्राणायाम – अनुलोम-विलोम, भ्रामरी, 10-10 चक्र,
ध्यान- नादानुसंधान- 2 चक्र
समापन प्रार्थना-
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वेसन्तु निरामयाः । सर्वेभद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुःखभाग्भवेत् ॥
Let all be happy, let all be without disease, let all realize the self, let non be miserable, om peace peace peace.
अर्थ – सभी सुखी होवें, सभी रोगमुक्त रहें, सभी मंगलमय घटनाओं के साक्षी बनें और किसी को भी दुःख का भागी न बनना पड़े।
कोरोना वायरस कोई जीव नहीं है जिसे किसी एंटीबायोटिक से मारा जाए। यह एक प्रकार का प्रोटीन है, जो स्वयं को वसा की परत से ढ़ंक कर सुरक्षित रखता है। यह मुंह और नाक के माध्यम से हमारी श्वास नली और फेफड़ों में जाकर कोशिकाओं से क्रिया करके उन्हें प्रभावित करता है। जिसके कारण फेफड़ों का गंभीर संक्रमण होता है। आयुर्वेद में किसी भी रोग का उपचार रोग के लक्षण देखकर या हमला करने वाले वायरस और बैक्टीरिया देखकर नहीं होता। वरन् व्यक्ति की जीवन शक्ति को बढ़ा कर, संक्रमित अंगों को शुद्ध करके होता है। इसमें दिनचर्या नियमित करना, योग के माध्यम से मन बुद्धि पर नियंत्रण एवं चित्त का आनंद प्राप्त करने के साथ पथ्य अपथ्य का पालन करना एक महत्वपूर्ण भाग है।
The corona virus is not an organism that is killed by an antibiotic. It is a type of protein, which protects itself by covering itself with a layer of fat. It affects cells by going through our mouth and nose into our respiratory tract and lungs by acting on them. Ayurveda principle says, treatment of any disease is not symptomatic. The treatment actually done by purifying the infected organs by increasing the vitality of the person. So that, regularization of body flows, control of mind, improving intelligence and relaxation of mind through yoga, and following dietary principles of Ayurveda is an important part.
एक शोध अध्ययन के अनुसार कोरोना वायरस जैसा ही एक वायरस सार्स था। उस समय यह सऊदी अरब एवं मध्य एशिया में फैला था। इसके सभी लक्षण वर्तमान कोरोना वायरस जैसे ही थे। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार यह 5 जुलाई 2003 को पहली बार विस्फोटक रूप से सार्स संसार के सामने आया। उस समय इसके कारण 8096 लोग प्रभावित हुए और 774 लोगों की मृत्यु हुई। आगे कोरोना वायरस फरवरी माह 2020 में चीन में फैला।
जिसमें 74675 ज्ञात प्रकरणों में से 2121 लोगों की मृत्यु हुई। अब तो पूरा विश्व इसकी चपेट में है और लाखों लोग अपनी जान गँवा चुके हैं।
The World Health Organization (WHO) declared the SARS outbreak contained on July 5, 2003. A total of 8096 SARS cases and 774 deaths were registered. At that time it was spread in Saudi Arabia. Its symptoms were same as Corona.
COVID-19 has led to more total deaths due to the large number of cases. As of the end of February 20, 2020, China has reported 74675 confirmed cases and 2121 deaths from Corona virus. Now the whole world is in its grip and millions of people have lost their lives.
Ref. संदर्भ: Wu, Zunyou, and Jennifer M. McGoogan. “Characteristics of and important lessons from the coronavirus disease 2019 (COVID-19) outbreak in China: summary of a report of 72 314 cases from the Chinese Center for Disease Control and Prevention.” Jama (2020).
स्वयं के प्रति हमारा सबसे महत्वपूर्ण कर्तव्य यह है कि, हम अपनी इम्यूनिटी अथवा जीवन शक्ति को इतना बढ़ाएं कि कोरोना वायरस हमारे श्वास नली और फेफड़ों को प्रभावित ही न कर सके।
इसके लिए हमें हमारे इन दोनों अंगों को आयुर्वेद में बताए गए पथ्य अपथ्य तथा सही दिनचर्या का पालन करके स्वच्छ एवं शुद्ध रखना होगा।
समाज के प्रति हमारा सबसे महत्वपूर्ण कर्तव्य यह है कि, हम स्वयं कोरोना वायरस से प्रभावित लोगों से तथा स्थानों से दूरी बनाए रखें।
यदि हम ऐसे स्थानों पर जाते भी हैं, तो समाज के अन्य लोगों और स्थानों से स्वयं को दूर कर लें।
क्योंकि भले ही हम अपनी अच्छी जीवन शक्ति के कारण कोरोना वायरस से प्रभावित न हों, परंतु हम इस वायरस के वाहक आवश्यक हो सकते हैं। कोरोना वायरस से हम प्रभावित न हों इसका सबसे आवश्यक उपाय यह है कि, हम कोरोना प्रभावित व्यक्ति के संपर्क में न आएं। किसी से बात करते समय कम से कम 1 मीटर की दूरी बनाए रखें। सार्वजनिक स्थानों को स्पर्श न करें। यदि हमें यह संदेह है कि किसी कारणवश हमारे शरीर पर वायरस आ गया है, तो निम्नलिखित बातों का ध्यान रखें-
अपने मुंह और नाक को स्पर्श न करें। सबसे पहले अपने हाथ पाँव साबुन से कम से कम 20 सेकंड तक धोएं। संदेहास्पद स्थान से वापस आने के बाद घर पर कहीं भी स्पर्श न करते हुए सीधे हाथ पैर धोकर कपड़े भी बदल लें।
साबुन न हो तो कम से कम 25 डिग्री तापमान के पानी से हाथ पैर धोएं।
अल्कोहल मिले पानी से हाथ धोना है, तो उसमें को अल्कोहल की मात्रा 65% से अधिक होनी चाहिए। ब्लीच किये हुए पानी से धोना है, तो उसमें ब्लीच की मात्रा 20% से अधिक होनी चाहिए।
Our most important duty to ourselves is that we should increase our immunity or vitality so much that the corona virus cannot affect our respiratory tract and lungs. For this, we should have to keep our two organs clean and pure by following the dietary anorexia and the right routine mentioned in Ayurveda. Our most important duty towards society is, we should keep distance from people and places affected by the corona virus. Even though we are not affected by the corona virus due to our good vitality, but we can become the carriers of this virus. When talking to someone, maintain a distance of at least 1 meter. Do not touch public places. If we suspect that due to some reason virus has come on our body, then keep the following precautions- Do not touch your mouth and nose. First wash your hands and feet with soap for at least 20 seconds. After coming back from the suspicious place do not touch anywhere at home and go straight to bathroom, wash clothes, take bath, wear fresh clothes. If there is no soap, wash hands and feet with water of at least 25 degree temperature. If you want to wash your hands with alcohol, then the amount of alcohol in it should be more than 65%. If you want to wash with bleached water, then the amount of bleach in it should be more than 20%.
कोरोना वायरस की आयु अलग-अलग स्थानों पर अलग-अलग होती है।
The life of the corona virus varies at different places.
कपड़ों पर : तीन घण्टे तक
तांबा पर : चार घण्टे तक
कार्डबोर्ड पर : चौबीस घण्टे तक
अन्य धातुओं पर : 42 घण्टे तक
प्लास्टिक पर : 72 घण्टे तक
On clothes: up to three hours On copper: up to four hours On cardboard: up to twenty four hours On other metals: up to 42 hours On plastics: up to 72 hours
इस समयावधि के पश्चात कोरोना वायरस स्वयं ही विघटित हो जाता है। किंतु इस समयावधि के भीतर यदि किसी व्यक्ति ने उन संक्रमित वस्तुओं को हाथ लगाया और अपने हाथों को अच्छी तरह धोये बिना नाक, आँख या मुंह को छू लिया तो वायरस शरीर में प्रवेश कर जाएगा और सक्रिय हो जाएगा।
After this time period, the corona virus itself disintegrates. But within this time period, if someone touches those infected objects and touches the nose, eyes or mouth without washing their hands properly, the virus will enter the body and become active.
आयुर्वेद के अनुसार किसी भी रोग के कारण यह हैं-
अनुचित ऋतु में, अनुचित समय, अनुचित पद्धति से, अनुचित स्थितियों में, अनुचित स्रोत से प्राप्त खान-पान, अपनी इंद्रियों का अनुचित उपयोग तथा मन वचन और शारीरिक कर्मों के अनुचित प्रयोग हैं।
इन सभी कारणों के अतिरिक्त कुछ बाय्ह कारण भी हैं। वातावरण का प्रदूषण, प्राकृतिक आपदा एवं वायरस/बैक्टीरिया का संक्रमण इसी के अंतर्गत आता है। परंतु बाय्ह कारण तब अधिक प्रभावित करते हैं, जब आंतरिक कारणों की अधिकता हो। वर्तमान परिस्थिति में वातावरण का प्रदूषण एक ऐसा कारण है, जिससे मानव के फेफड़े प्रदूषित हुए और वायरस को अधिक पोषण मिला।
कोरोना या सार्स दोनों वायरस फेफड़ों पर ही हमला करते हैं। यही कारण है कि, आयुर्वेद अनुसार इन दोनों का उपचार समान होगाऔर इनसे बचने के उपाय भी समान हैं-
फेफड़ों का शोधन
इस हेतु जिस पथ्य-अपथ्य, जिस दिनचर्या, जिस आहार नियम और जिन वनस्पतियों की आवश्यकता है, उनका पालन अथवा सेवन ही उपचार और सुरक्षा दोनों है।
According to Ayurveda, the reasons for any disease are- Any food taken the inappropriate season, improper timing, improper method, improper situations, food derived from improper source, improper use of our senses and improper use of words and physical actions. Apart from all these reasons, there are some more reasons. Pollution of the environment, natural disaster and infection of virus / bacteria comes under this. But outer causes affect more when there are more internal causes. In the present situation, pollution of the environment is one of the reasons for human lungs to be polluted and the virus got more positive environment. Both corona or SARS viruses attack the lungs. According to Ayurveda, the treatment of these two will be the same and the measures to avoid them are also the same- Cleansing of Lungs. One should follow daily routine according to Ayurveda, the dietary rules, uses of herb, to keep lungs clean and healthy.
काढ़ा बनाने की विधि-
20 ग्राम अजवाइन 10 ग्राम बड़ी इलायची 10 ग्राम दालचीनी और 9 छोटी पिप्पली को चूर्ण बनाकर रखें। इतनी मात्रा में 20 कप काढ़ा बन सकता है। काढ़ा बनाने हेतु उपरोक्त मिश्रण आधा चम्मच चूर्ण को चाय पत्ती के स्थान पर पानी में उबालें, गुड डालें और छानकर पी लें। दिन में दो-तीन से लेकर छह-सात बार ले सकते हैं। बुखार हो तो इसे गर्म ही पीकर ओढ़ कर सोएं। अन्य जड़ी बूटियों के गर्म प्रभाव से बचने के लिए शरद ऋतु और गर्मियों में इसमें 10 ग्राम मुलेठी और 9 छोटी इलायची डालें।
Take 20 grams celery, 10 grams large cardamom, 10 grams cinnamon and 9 small pieces of peppali. In such an amount 20 cups of decoction can be made. To make the decoction, boil the above mixture half a teaspoon of powder in place of tea leaf, add Jaggry, filter and drink. One can take two-three to six-seven times a day. If you have fever, drink it warmly and sleep covered. Add 10 gm Mulethi and 9 small cardamom in it in The autumn and summers to avoid hot effect of other herbs.
पिप्पली चटनी बनाने की विधि-
5 ग्राम पिप्पली चूर्ण 5 ग्राम काली मिर्च चूर्ण 50 ग्राम मुलेठी और 100 ग्राम शहद मिलाकर अच्छी तरह फेंट कर रख लें। दिन में तीन चार बार चौथाई चम्मच चाट कर खाएं।
How to make Pippali Chutney- Mix 5 grams of Pippali powder, 5 grams of black pepper powder, 50 grams of liquorice and 100 grams of honey and whisk well. Lick three to four teaspoons a day and eat it.
उपरोक्त सारी वस्तुएं कफ को काटती हैं। पिछले 14 वर्ष से मेरा बिना किसी एलोपैथिक औषधि के इन्फ्लूएंजा जैसे वायरल रोग ठीक करने का अनुभव है। इस आधार पर यह विचार किया जा सकता है कि यह कोरोना वायरस की वसा की सुरक्षा परत को हटाएगी। इस विषय पर गहन शोध अध्ययन एवं प्रयोग करने की आवश्यकता है
All the above items remove the phlegm. For the past 14 years, I have experience of curing viral diseases like influenza without any allopathic medicine. It can be considered on this basis that it will remove the fat layer of the corona virus. There is a need for intensive research study and experiment on this subject.
।https://rasahara.com/wp-content/uploads/2020/05/WhatsApp-Ptt-2020-05-17-at-1.37.08-PM.ogg
Since one and half decade, I was getting amazed many times looking at the patient whom I felt, would be suffering badly due to their worse condition of disease. But opposite to that they were living comfortably, without any complaint despite of their aggravated pathological parameters. I always found that the YOGA is only reason behind this. Yoga, that is not only Asanas and Pranayama, but the life they live like Yogees. I desperately wanted to publish this experience through scientific way.
Here my dream came true in this paper. That is published in European Journal of Pharmaceutcal and Medical Research on 17th Jan 2019.
Ayurveda and Yoga Medicine Patients Presenting Unusual Medical Cases
http://www.ejpmr.com/home/abstract_id/4868
Fasting is a scientific treatment method. Actually, people can eat fruits for nine days to purify and purify their body. But in case of disease, it can be made more beneficial by taking appropriate diet related to the disease. I am giving special diet for some diseases. During the Navaratra fasting, you can get maximum benefits of fasting by eating the same diet along with your regular fruits for the rest of the day.
Asthma, Thyroid- Pomegranate and Honey black pepper, Rock salt.
Diabetes – Apple, papaya, banana, sweet lime, orange.
Creatinine, Acidity- Soaking paddy or sorghum lye in water.
Cysts- Tulsi juice, honey, fenugreek, bathua, chaulai, Drumstick leaves soup or juice.
Obesity, weakness, indigestion- seasonal fruits, orange, Mausambi honey black pepper, Rock salt.
Skin diseases and cancer- pomegranate, beetroot
High blood pressure, cholesterol – all fresh fruits except pineapple, salt free soup of sweet neem, Drumstick leaves soup, cumin, celery
Excessive menstruation, anemia, weakness- Coconut Milk Mishri with Kokam
Delayed Menses- Alovera juice, Pineapple juice followed by Ragi roti
Colitis- Fresh curd, cumin, black pepper and honey rock salt.
Arthritis- Ragi roti and methi bhaji, cumin, celery soup.
उपवास एक वैज्ञानिक उपचार पद्धति है। वैसे तो लोग अपने शरीर को निर्मल और शुद्ध करने हेतु नवरात्र उपवास के नौ दिन फल खा कर रह सकते हैं। परंतु रोग की अवस्था में इसे अपने रोग से सम्बंधित उपयुक्त आहार ले कर अधिक लाभकारी बनाया जा सकता है। कुछ रोगों हेतु विशिष्ट आहार दे रही हूँ। आप अपने नियमित फलों के साथ बाकी दिन भर यही आहार ले कर उपवास का अधिकधिक लाभ ले सकते हैं।
अस्थमा, थाइराइड- अनार और शहद
मधुमेह – सेब, पपीता, केला, मौसमी, संतरा।
क्रियटिनीन, अम्लता- धान या ज्वार की लाई पानी में भिगोकर
गांठे- तुलसी रस, शहद, मेथी, बथुआ, चैलाई, सहिजन के सूप या रस
मोटापा, कमजोरी, अपचन- मौसमी, संतरा, शहद, सेंधा नमक काली मिर्च
त्वचा रोग व कैंसर- अनार, चुकन्दर
उच्च रक्तचाप, कोलेस्ट्रोल – अनन्नास को छोड़ कर सभी ताजे फल, मीठी नीम, सहिजन, जीरा, अजवाईन का नमक रहित सूप
अधिक मासिक, रक्तालपता, कमजोरी- नारियल दूध मिश्री कोकम
कम या देर से मासिक- खाली पेट ग्वारपाठा रस, रागी रोटी के आहार के बाद अनन्नास रस
कोलाइटिस- ताजा दही, जीरा, काली मिर्च और शहद सेंधा नमक काली मिर्च
गठिया- रागी की रोटी और मेथी भाजी, जीरा, अजवाईन का सूप
Meal time is as important as meal ingredients to keep a person healthy with normal weight and a good immune system. There was a time when dietitians were prescribing to eat short and divided meal for whole day. But scenario is slowly shifting towards Yoga and Ayurveda knowledge. Scientific studies done in this field also suggesting two meals per day instead of four or six small meals every day.
Ayurveda emphasizes on lifestyle in a particular manner to maintain good health. Various texts of Ayurveda contain verses regarding to appropriate meal time. Here we present the collection of those verses with meaning.
सायं प्रातर्मनुष्याणामषनं श्रुतिचोदितम्। नान्तरा भोजनं कुर्यादग्निहोत्रसमो विधिः।
याममध्ये न भोक्तव्यं यामयुग्मं नलंघयेत्। याममध्ये रसोत्पतिर्यामयुग्माद्बलक्षयः।
योग रत्नाकर के अनुसार भोजन का योग्य समय- मनुष्यों के लिये सायंकाल तथा प्रातःकाल भोजन करना शास्त्र विहित है। बीच बीच में भोजन न करें। भोजन करना अग्निहोत्र के समान विधि है। एक पहर के पहले भोजन न करें और भोजन के लिये दोपहर न बीतने दें। एक पहर के अन्दर भोजन करने से आम रस की उत्पत्ति होती है और दोपहर बीतने के बाद भोजन करने से बल का क्षय होता है।
(Tripathi I, Tripathi D, Yoga Ratnakara: Nitya Pravritti Prakaramah p54, v108-109, Chowkamba Krishnadas Academy, Varanasi, 1998. )
जीर्णेंऽष्नीयात्, अजीर्णे हि भुञ्जाजानस्याभ्यवहृतमाहारजातं पूर्वस्याहारस्य रसमपरिणतमुत्तरेणाहाररसेनोपसृजत् सर्वान्ं दोषान् प्रकोपयत्याषु] ] जीर्णे तु भुञ्जाजानस्य स्वस्थानस्थेषु दोषेष्वग्नौ चोदीर्णे जातायां च बुभुक्षायां विवृतेषु च स्रोतसां मुखेषु चोद्गारे विषुद्धे, विषुद्धे च हृदये वातानुलोम्ये विसृष्टेषु च वातमूत्रपुरीषवेगेष्वभ्यवहृतमाहारजातं सर्वशरीरधातूनप्रदूषयदायुरेवाभिवर्धयति केवलं, तस्माज्जीर्णेऽष्नीयात्।।
चरक संहिता के अनुसार भोजन पच जाने पर भोजन करने से लाभः- पहले किये हुए भोजन के पच जाने पर फिर भोजन करना चाहिए, क्योंकि अजीर्ण की स्थिति में किये गये भोजन का सब भाग] पूर्व के आहार के न पचे हुए रस को बाद के आहार रस के साथ मिलाते हुए सभी दोषों को शीघ्र ही प्रकुपित कर देता है। भोजन के पच जाने पर जब दोष अपने-अपने स्थान में रहते हों] अग्नि प्रदीप्त हो] भूख जागृत हो] स्रोतों के मुख खुले हों] डकार शुद्ध आती हो, हृदय शुद्ध रहता हो, वायु अनुलोम हो और अपान वायु] मूत्र और मल की ठीक प्रवृत्ति हो गयी हो तब ऐसी स्थिति में किया गया भोजन शरीर की धातुओं को दूषित न करता हुआ केवल आयु को ही बढ़ाता है] इसलिए पूर्व के किये गये आहार के पच जाने पर ही पुनः आहार करना चाहिए।
मूत्र एवं पुरीष का भलीभांति उत्सर्ग हो जाने पर, हृदय निर्मल-स्वच्छ होने पर] वातादि दोषों के स्वमार्ग गामी-अनुलोम होने पर] शुद्ध उद्गार आने पर] भूख लगने पर, अपने वायु का अनुरूप निःसरण होने पर] अग्नि प्रदीप्त होने पर इन्द्रियां निर्मल होने पर तथा शरीर लघु होने पर – आहार का सेवन करें और वही आहार का शास्त्रोक्त समय है। अथवा – विधिनियमित अर्थात् विधिपूर्वक आहार करें क्योंकि वही आहार का समय है।
One should only eat when a. the previous meal has been digested, as this helps maintain Doshas in their own locations; b. an Agni stimulated appetite has arisen; c. the srotas (channels of eating and distribution) are open; d. eructation is pure; e. the heart is normal; f. previously eaten food is only promoting life span, and not afflicting any dhatu. If, on the other hand, new food is eaten when indigestion from the previous meal has not been resolved, the additional food will mix with the toxic products of the previous meal and all the doshas will quickly be vitiated. (Sharma PV, Charak Samhita part 1, Prameha Nidanadhyayah, p543 v8, Chowkamba Sanskrit Pratishthan, New Delhi, 1998.)
अतिषायत यामास्तु क्षपा येष्वृतुषु स्मृताः।
तेषु तत् प्रत्यनिकाढ्य भुञ्जीत प्रातरेव तु ।।
येषु चापि भवेयुष्च दिवसा भषमायताः। तेषु तत्कालविहितमपरान्हे प्रषस्यते ।।
रजन्यो दिवसाष्चैव येषु चापि समाः स्मृताः। कृत्वा सममहोरात्रं तेषु भुञ्जीत भोजनं।।
सुश्रुत संहिता के अनुसार योग्य भोजन काल- हेमन्त – शिशिरादि जिन ऋतुओं में अधिक लम्बे आयाम (प्रहर) वाली रात्रियाँ होती है उन ऋतुओं में तत्काल – बल प्रवृत्त दोषों के प्रतीकार के अनुसार स्निग्ध और उष्ण भोजन प्रातःकाल ही कर लेना चाहिये तथा जिन ऋतुओं (ग्रीष्म तथा प्रावृट्) में दिन अस्यन्त लम्बे (मोटे) हैं उनमें उस काल के अनुसार द्रव] लघु तथा शीतल भोजन उपराहृ में खाना चाहिये। जिन ऋतुओं (शरद् और वसन्त) में रात्रि और दिन समान होते हैं उन ऋतुओं में अहोरात्र का समान भाग (विभाजन) करके मध्याह्न में भोजन कर लेना चाहिये।
In winters when nights are long, one should eat heavy food in early hours of day, in summers one should eat light food in late hours. When the length of day and night remains same, one should eat exactly at mid-day. (Sushruta Samhita Sutra sthanam, p220, v404-406)
काले मुक्तं प्रीणयति सात्म्यमन्नं न बाघते।
लघु शीघ्रं व्रजेत् पाकं स्निग्घोष्णं बलवाह्निदम्।।
योग्य समय में किया हुआ भोजन-देह, इन्द्रिष्यां तथा आत्मा और मन को तृप्त करता है। सात्म्य अन्न चाहे कैसा भी हो वह मनुष्य को बाधा नहीं पहुँचाता है।
अतीतकाले भु वायुनोपहतेऽनले।।
कृच्छाद्विपच्यते भुक्तं द्वितीयष्च न काक्षति।
अप्राप्त काल में भोजन करने वाला मनुष्य शरीर के हल्के नहीं होने से भिन्न-भिन्न अजीर्ण, विसूचिकादि रोगों को प्राप्त करता है अथवा कभी-कभी मृत्यु तक को प्राप्त करता है। अतीत काल में भोजन करने वाले का अन्न वायु-वृद्धि से पाचकाग्नि के नष्ट होने के कारण कष्ट से पचता है।
अष्टांग संग्रह के अनुसार योग्य भोजन काल-
नातिसायं नातिप्रगे
सायंकाल के तथा प्रातःकाल के आरंभ में भोजन नहीं करना चाहिये।
one should not eat meals immediately after sun rise or immediately after sun set. (Ashtanga Sangrahah, Sutra Sthanam, Trans. Chhangani G., Chapter 10, p 123-124, Chaukhambha Samskrit Samsthanam, New Delhi, 2005)
सही आहार नियमों के अनुसार दिनचर्या:
इस प्रकार के आहार और जल सेवन नियमों को अपनाने से शरीर स्वस्थ बना रह सकता है और कई रोगों से बचा जा सकता है।
By adopting these dietary and water intake rules, the body can remain healthy and free from many diseases.
We prepare some raw powders to use it in off season of those herbs. We can provide them to people who can’t take fresh juices daily in any of our kendras. Some Gaushala products are there to sale. We provide some more home made preparations which supports Rasahara treatments. Here is the list.
वटजटा तेल 50 ग्राम ₹80
केशवर्धक चूर्ण 100 ग्राम ₹150
स्वदेशी दंत मंजन सौ ग्राम ₹80
चंदन उबटन सौ ग्राम ₹70
चंदन शरबत सौ ग्राम ₹100
जादू की मिट्टी 1 किलो ₹100
च्यवनप्राश ढाई सौ ग्राम ₹250
मेथी लड्डू ₹22 प्रति नग 1 किलो ₹ 1200
अर्जुन लड्डू 1 किलो ₹ 1000
गोंद लड्डू ₹25 प्रति नग 1 किलो ₹ 1500
शहद 1 किलो ₹300
शतावरी कल्प सौ ग्राम ₹60
मधुनाशक चूर्ण सौ ग्राम ₹70
अमृतधारा 50 ग्राम ₹70
पिप्पली चटनी 85 ग्राम ₹150
थाइरॉयड पोषक चूर्ण ( वर्षा शीत ऋतु ) 100 ग्राम ₹80
थाइरॉयड पोषक चूर्ण (ग्रीष्म शरद ऋतु ) 100 ग्राम ₹80
राल मलहम 85 ग्राम ₹150
अमलतास 100 ग्राम ₹100
इसके अतिरिक्त कुछ अन्य चूर्ण भी हैं जो परामर्श के साथ दे दिए जाते हैं उनके नाम निम्नलिखित हैं- अनंतमूल, भुई आंवला, भृंगराज, गोखरू, पुनर्नवा, अपामार्ग, आंवला, चोपचीनी, मंजिष्ठ, सोंठ, गिलोय, अर्जुन छाल, शतावर, अश्वगंधा, मकोय, नीम, अडूसा, हल्दी, मुलेठी, बेलपत्र, कालमेघ, लोध्र, संजीरा, हरसिंगार, मधुनाशक, गुड़मार, थायरॉइड पोषक, पलाश पुष्प चूर्ण .
रसाहार
भारत विविध जैव सम्पदा से भरपूर अनेक ऋतुओं का देश है। अन्य देशों में यदि गेंहू की 100 किस्में पायी जाती हैं तो भारत में 1000 प्रकार के गेंहू पाए जाते हैं, अकेले पुरी के जगन्नाथ मन्दिर में पूरे वर्ष, प्रतिदिन अलग अलग-अलग किस्म के चावल से भगवान को भोग लगाने की परम्परा है। यानि 365 किस्म के चावल। आँकडों की मानें तो आयुर्वेदिक फार्माकोपिया में 500 से अधिक भारतीय वनौषधि पेड़ पौधों को सूचिबद्ध किया है। ऐसा नहीं कि केवल सूचिबद्ध पेड़ पौधे ही औषधीय उपयोग के होते हैं, बल्की आयुर्वेद के अनुसार धरती पर कोई भी ऐसा पेडपौधा नहीं जिसमें कोई औषधीय गुण न हो। रुकावट अज्ञानता की है। पुरातन कालीन आयुर्वेदिक ग्रन्थों में हजारों वनौषधियों के बारे में सम्पूर्ण जानकारी विस्तार से उपलब्ध है। आगे भी अध्ययनकर्ताओं ने अनेक वनौषधिक पुस्तकों में इनके उपयोग, उगाने के तरीके समय और पहचान के बारे में विस्तृत से वर्णन किये हैं। भाव प्रकाश निघंटु में प्रत्येक वनस्पति के संस्कृत नाम उनके गुणों और शरीर पर होने वाले प्रभावों का सुन्दर वर्णन मिलता है। वर्णन मे उपयोग में लाई गई तकनीकी शब्दावली के अर्थ भी इस पुस्तक में बहुत अच्छी तरह समझाए गए हैं। उदाहरण के लिये यदि सोंठ का गुण ’ग्राही’ बेहड़े का गुण ‘रेचक’ अमलतास का गुण ‘भेदक’ अथवा शहद का गुण ’योगवाही’ बताया गया है तो ‘ग्राही’ रेचक’ ‘भेदक’ ‘योगवाही’ इन शब्दों के अर्थ जाने बिना पाठकों के लिये उनके बारे में किये गए वर्णनों को समझना कठिन हो जाएगा। पुस्तक के पहले अध्याय में यही परिभाषाएँ दी गई हैं। इन्हे समझकर पाठक कोई भी वनस्पतियों के बारे में जानकारी देने वाली पुस्तक को अच्छी तरह आत्मसात कर सकते हैं।
किसी भी वृक्ष के पांच मुख्य अंग होते हैं। जड, तना, पत्ती, फूल और फल। सामान्यतः ये पाँचों अथवा इनमें से कुछ औषधीय उपयोग में लाए जाते हैं। भारत की जनसंख्या एवं रोग तथा रोगियों की संख्या का विचार किया जाए तो यह स्पष्ट है कि किसी भी पेड़ पौधे की जड़ से बनने वाली औषधियों के प्रचार-प्रसार तथा उपयोग को व्यावहारिक नहीं माना जा सकता क्योंकी प्रकृति महीनों वर्षों में एक पेड़ को पाल-पोस कर बड़ा करेगी और हम उसे 1-2 या 10 व्यक्तियों के उपयोग मात्र में समाप्त कर दें तो यह जैव सम्पदा कब तक हमारा साथ देगी? फूलों, पत्तियों और फलों या कभी कभी तने का विचार किया जाए तो यह समझा जा सकता है कि ये सब ऋतु अनुसार नए खिलते और मुरझाते रहते है। इनका उपयोग कर लेने पर ही नए आने की सम्भावनाएं भी बढ़ जाती है। रसाहार चिकित्सा का यही सबसे मजबूत पक्ष है। पत्तियों, फूलों, फलों तथा कभी कभी तने के ताजे रस का उपयोग भिन्न-भिन्न रोगों के निवारण हेतु करने का प्रचलन बहुत पुराना है। किन्तु इनके उपयोग की अनेक सावधानियाँ और सूक्ष्म बातों का ज्ञान साथ ही इन्हे तैयार करने की सही विधी मात्रा और निषेध का सम्पूर्ण ज्ञान होना आवश्यक है। स्वरस अथवा रसाहार चिकित्सा अपने आप में एक विस्तृत अकेला विषय है, जिसपर एक अलग से पाठ्यक्रम तैयार करना और उसे विश्व के लिये उपलब्ध कराने की एकमात्र जिम्मेदारी भारत पर है। विड़म्बना यह है कि भारत में सारी वनस्पतियाँ सहज उपलब्ध होते हुए भी अध्ययन, शोध एवं विश्वास की कमी होने के कारण इनके दैनिक उपयोग का प्रचलन अब तक लगातार कम होता आया है। आज की शहरी पीढ़ी बुखार के लिये कालमेघ के स्थान पर क्रोसिन, जल जाने पर ग्वारपाठे के स्थान पर बर्नोल, और चोट लग जाने पर हल्दी के स्थान पर डेटाल का उपयोग करती है। ऐसे में स्वयं की अज्ञानता पर शर्मिन्दा हो उससे मुक्ति के उपाय के रूप में पुरातन कालीन आयुर्वेदिक ग्रन्थों का अध्ययन करके शोध करना चाहिये और उनकी सच्चाई को साबित करना चाहिये। दवाओं पर निर्भरता का अर्थ है उनके दुष्प्रभावों को झेलना और भविष्य में अपने स्वास्थ्य को और भी अधिक बिगाड़ना है। इससे बेहतर है, कि रोग होने पर वनस्पति चिकित्सा करके आगे होने वाले रोगों की सम्भावनाओं से पहले ही मुक्त हो लिया जाए। साथ ही वर्तमान रोग को विकृत किये बिना कम से कम खर्च में स्वयं के संसाधन का उपयोग करते हुए ठीक किया जाए। न कोई गोली होगी न उसके प्लास्टिक के रैपर का प्रदूषण होगा न उसके साइड इफेक्ट होंगे और न ही अपने धन का एक तिहाई भाग दवा कम्पनियों बीमा कम्पनियों और अस्पतालों की जेब में जाएगा। प्रश्न यह है कि रसोपचार का ज्ञान कैसे प्राप्त हो, कैसे अध्ययन किया जाए और कैसे इनके उपयोग को व्यापक विश्वसनीय और व्यावहारिक बनाया जाए।
पहला प्रश्न है ज्ञान प्राप्त करना और अध्ययन जन सामान्य व्यक्ति जिनका कोई आयुर्वेदिक ज्ञान पूर्व मे नहीं है उन्हे सबसे पहले भाव प्रकाश निघंटु अथवा द्रव्यगुण विज्ञान जैसी पुस्तकें पढ़ कर वनस्पतियों के गुणों एवं तकनीकी भाषा को समझ लेना चाहिये। इसके बाद वनस्पतियों के व्यावहारिक उपयोग से सम्बन्धी अनगिनत उपलब्ध पुस्तकों में से कुछ अच्छी अनुभवी चिकित्सा शास्त्रियों की पुस्तकें छाँट कर अपने रोग से सम्बन्धित जानकारियाँ एकत्र करें। मान लीजिये आप धूल की एलर्जी के शिकार हैं, तो आप पहले ऐसी वनस्पतियों को छाँट कर अलग करें, जो कफ नाशक गुण रखती हों। क्योंकी आपको एलर्जी से सर्दी जुकाम खाँसी और कफ होता है। अब उन वनस्पतियों में से ऐसी वनस्पतियों छाँटे जिनकी पत्तियों/फूलों/फलों का उपयोग आपके काम का है। यह भी देख लें कि आपको वे ही वनस्पतियाँ चुनना है, जो आपके आस-पास उपलब्ध हो। फिर इन वनस्पतियों के उपयोगों को 4-5 या 8-10 पुस्तकों में ढूंढें। सभी में थोडे बहुत अन्तर से उपयोग की समानता हो तो बताई गई विधी से उनका उपयोग करें। अध्ययन और उपयोग के साथ व्यावहारिकता और विश्वास का प्रश्न भी जुड़ा है। जहाँ तक व्यावहारिकता का प्रश्न है, किसी भी पेड़ के पत्तों को मिक्सर में पीसकर ताजा रस आसानी से बना कर पिया जा सकता है। यह आपकी नैतिक जिम्मेदारी है, कि यदि आपने तुलसी के एक पौधें की पत्तियों का उपयोग स्वंय के लिये किया है तो कम से कम 5 पौधों को रोपकर उनका रक्षण पोषण करने की जिम्मेदारी तब तक आपकी है, जब तक वे पांच पौधे अन्य पांच लोगों के उपयोग के योग्य न हो जाएं। विश्वास का प्रश्न हल करना हमारी सबसे बड़ी चुनौती है। इसके लिये रसाहार के व्यावहारिक उपयोग करके लोगों पर होने वाले रसाहार सेवन के परिणामों का पहले दस्तावेजीकरण करके उन्हें प्रकाशित करके प्रसिद्ध किया जाना चाहिये। अधिकाधिक ऐसे सफल प्रयोगों के शोध पत्र प्रकाशित होने पर एक ओर तो वैज्ञानिक विश्व में वनौषधियों और रसाहार उपचार पर विश्वास बढ़ेगा तो दूसरी ओर शासन भी इनके उपयोग को बढ़ावा देने, इनको उगाने, बढ़ाने और इनके व्यावसायिक उपयोग को बढ़ावा देने के लिये बाध्य होगा। भारत में आज 12 एम्स अस्पताल, 460 मेडिकल कालेज और 35416 सरकारी अस्पताल हैं, जिनमें एलोपैथी से उपचार होता है। इसकी तुलना में आयुर्वेद अस्पतालों की संख्या मात्र 2393 है। इनमें भी उपचार सीधे पेड़ पौधों से नहीं बल्की उनसे बनी औषधियों से होता है। सीधे पेड़-पौधों से उपचार को बढ़ावा देना जन-जन के लिये कल्याणकारी और स्वावलम्बन देने वाला तो होगा ही, साथ ही अधिकाधिक पेड़-पौधे लगाने की आवश्यकता बढ़ जाना इस धरती और पर्यावरण के लिये भी हितकर होगा।