वर्षा की बूंदे धरती पर पड़ते ही शरीर में वात वृद्धि होने लगती है। अतः सभी को वात से होने वाले रोगों का ज्ञान होना चाहिए।
As soon as the rain drops fall on the earth, Vata starts increasing in the body. Therefore, everyone should have knowledge about the diseases caused by Vata.
वात प्रकृति होने के कारण होने वाले 80 रोग: नाखूनों का फटना, पैरों में बिवाई, पैरों में दर्द, पैरों का सो जाना, घुटनों या जांघ की संधि में दर्द, गुल्फ ग्रह अर्थात गुल्फ में अकड़न, पिंडलियों में गठानें हो जाना, साइटिका पेन, घुटने दर्द, घुटने के जोड़ों का ढीला हो जाना, लकवा, बवासीर या गुदा के भाग में पीड़ा, अंडकोष का ऊपर चढ़ना, लिंग की जड़ता, कमर दर्द, मल का फूटना, लंगड़ापन, पीठ अकड़ना, शरीर के दाहिने या बाएं भाग में दर्द, पेट दर्द, कुबड़ा होना, बौना होना, त्रिक का जकड़ जाना, पेट में मरोड़, हृदय का अधिक धड़कना (पल्पिटेशन), छाती दर्द, छाती में भारीपन, फेफड़ों में चुभन, बाहें पतली हो जाना, गर्दन अकड़ना, गर्दन के पिछले भाग में दर्द, गला बैठना, ठुड्ढी अकड़ना, तालु का फटना, होंठ फटना, दांतो का टूटना, कमजोर होना एवं हिलना, प्रलाप करना, मुंह कसैला होना, गूंगा होना, किसी रस का ज्ञान न होना, सुगंध या दुर्गंध पता न पड़ना, कान में दर्द, ऊंचा सुनना, बहरापन, पलकें बंद होना, पलकों को न खोल सकना, आंखों के सामने अंधेरा आना, आंखें दर्द करना, आंखें चढ़ी रहना, भौहें चढ़ी रहना, कनपटी में दर्द, माथा दुखना, सिर दर्द, सिर में फोड़े फुंसी होना, मुंह टेढ़ा हो जाना, पैर निष्क्रिय हो जाना, सर्वांग रोग या सारे शरीर में दर्द होना, झटके आना, दंड की तरह गिर पड़ना, श्रम या थकावट, चक्कर आना, कंपन होना, जम्हाई आना, ग्लानि होना, विषाद रहना, देह का रुखा रहना, कठोरता, शरीर में कालापन आना, बहुत सपने आना, मन का स्थिर न रहना
80 diseases caused due to vata nature: cracking of nails, sowing in feet, pain in feet, numbness of legs, pain in knee or thigh joint, stiffness in calves, , lumps in calves, sciatica pain , Knee pain, Loosening of knee joint, Paralysis, Hemorrhoids or pain in anus, Elevation of testicles, Inertia of penis, Back pain, Erectile dysfunction, Lameness, Back stiffness, Right or left side of body pain, abdominal pain, humpback, dwarfism, sacral spasm, abdominal cramps, Palpitation, Chest pain, Heaviness in chest, Stinging in lungs, Thinning of arms, Stiff neck, Pain in back of neck, Hoarseness, Stiffness of chin, Cracked palate, Cracked lips, Cracked teeth Weakness and movement, delirium, astringent mouth, mute, not aware of any taste, not detecting aroma or foul smell, ear pain, hearing high, deafness, closing of the eyelids, unable to open the eyelids, Darkness before the eyes, Pain in the eyes, Heavy eyes, Swelled eyebrows, Pain in the temple, Pain in the forehead, Headache, Pimples in the head, Crooked mouth, Legs becoming inactive, Faint, whole body Pain, Tremor, Falling like a stump, Labor or exhaustion, Dizziness, Trembling, Yawning, Feeling guilty, Depression, Dryness of body, Stiffness, Blackness in body, Dreaming, Unstable mind.
टाइफाइड सामान्यतः वर्षा ऋतु में होने वाला रोग है। ऐसा माना जाता है और वैज्ञानिक तथ्यों से स्पष्ट होता है कि, यह पानी तथा पुरानी और सड़ी गली वस्तु में उत्पन्न बैक्टीरिया के माध्यम से हमारी आँतों में होता है। कुछ लोगों को यह ग्रीष्म ऋतु के अंत में ही हो जाता है। वास्तव में बैक्टीरिया हमारी आंतों में अपना स्थान तभी बना पाते हैं, जब वहां उन्हें उसके लिए उचित वातावरण मिले। उचित वातावरण दो कारणों से मिल सकता है।
Typhoid is a commonly occurring disease in the rainy season. It is believed and it is found in scientific studies that this happens in our intestines through impure water and bacteria produced in contaminated food. Some people get this disease at the end of summer season too. In fact, bacteria can find their place in our intestines only when they find there a suitable environment for them. The appropriate environment can be found for two reasons.
कारण: पहला कारण यह है कि, हम लगातार लंबे समय तक कुछ ऐसी वस्तुएं खाते रहते हैं जिनमें पहले से ही वे बैक्टीरिया विद्यमान हैं जैसे खराब हो चुकी सब्जियां फल दूध या खुले स्थान पर मक्खियों के बीच पड़ा हुआ खाद्य पदार्थ या ऐसे पदार्थ जो रेशा रहित और आंतों में आगे बढ़ने में कठिन हैं, इस कारण वह आंतों में पड़े रहते हैं और सड़न उत्पन्न करते हैं।
Reason: The first reason is that, for a long time, we continue to eat certain food as contaminated food, rotten fruit, milk, or food that already contain those bacteria. It can be transit through flies. It can be occur due to the food which is sticky and difficult to move in the intestines, because of this bacteria remain in the intestines and cause Typhoid.
दूसरा कारण यह है कि, जिस सड़न में बैक्टीरिया पनप सकते हैं वही सड़न भरा वातावरण हमारी आँतों में भी हो। ऐसा तब होता है, जब हम खानपान की भूलें करते हैं। इसे थोड़ा विस्तार से समझें। हम दोपहर भोजन दिन के दूसरे पर में करते हैं तो उसका पाचन होकर अगले दिन सूर्योदय या उससे पूर्व अर्थात उसी दिन के अंतिम पहर में हो जाता है। इतनी देर में खाया हुआ अन्न हमारे आमाशय से मलद्वार तक पहुंच जाता है। वैज्ञानिक तथ्यों से भी यह साबित हो चुका है कि, अन्न खाने के 16 से 20 घंटे बाद आहार नली में पूरी तरह उपयोग होकर पच जाता है। इस प्रकार दिन में 11:00 बजे किया गया भोजन प्रातः 4:00 से 8:00 के बीच पच कर बाहर निकल सकता है। यदि हम सायंकाल 6:00 भोजन करते हैं, तो उसे दोपहर 2:00 बजे तक पच कर बाहर निकल जाना चाहिए। परंतु दिन में हम विश्राम नहीं करते, इसलिए उसका पाचन 20 से अधिक घंटों में भी होता है। इस प्रकार दो समय भोजन करने वाले को दो समय मल त्याग करना पड़ता है।
The second reason is that the rot in which bacteria can thrive is available in our intestines. This happens when we make eating mistakes. This should be understand in a little detail. If we eat lunch on the second prahara of the day, that is between 3 to 6 hours after sun rise, then it gets digested and relieved at sunrise or before it, that is, in the last hour of the same day. The food eaten reaches from our stomach to the anus at this time. It has also been proved by scientific studies that, it takes 16 to 20 hours after the meal, to get digested completely the food in the food pipe. Thus, food served at 11:00 am in the day can be digested on next day, between 4:00 am to 8:00 am. If we eat at 6:00 pm, it should be digested by 2:00 pm in the afternoon. But we do not rest during the day, so its digestion takes place even in more than 20 hours. In this way, one who eats twice has to
relieved twice daily.
इसमें चूक तब हो जाती है, जब हम प्रातः 8:00 बजे नाश्ता करके दोपहर 2-3 बजे भोजन करते हैं। यह भोजन पाचन के बाद प्रातः 9-10 बजे निकलना चाहिए। परंतु जीवन की भागदौड़ दूसरे दिन काम पर लगने की हड़बड़ी के कारण हम वह भोजन पच कर निकलने से पूर्व ही पुनः प्रातः काल नाश्ता कर लेते हैं। कभी-कभी प्रातः चाय के साथ बिस्किट, नमकीन, ब्रेड, टोस्ट इत्यादि भी हो जाता है। कभी सायंकाल पकौड़ियाँ भी हो जाती हैं। इस प्रकार पेट में कुछ ना कुछ जाता तो रहता है, परंतु निकलता नहीं। 20 घंटे से अधिक आंतों में पड़ा हुआ वह भोजन वहां पर सड़ने लगता है और इन बैक्टीरिया के लिए अच्छा वातावरण उत्पन्न करता है। किसी कारणवश पानी अथवा खाद्य पदार्थों के माध्यम से यह बैक्टीरिया पेट में पहुंच जाएं तो वहां पर पनपने लगते हैं।
This is missed when we have breakfast at 8:00 am and eat lunch at 2-3 pm. This food should be left at 9-10 am after digestion. But due to the rush of life, and the rush to go to work on the second day, we eat breakfast again in the morning before passing the stool. Sometimes in the morning tea, biscuits, snacks, bread, toast etc. are also be taken. Sometimes dumplings (Pakaudees) are eaten in the evening. In this way, things goes on in the stomach, but does not come out. Food lying in the intestines for more than 20 hours starts to rot there and produces a good environment for these bacteria. If for some reason these bacteria reach the stomach through contaminated water or food, they start growing there.
ऋतु चक्र: आयुर्वेद अनुसार बताए गए ऋतु चक्र को जानना भी अत्यंत आवश्यक है। ग्रीष्म ऋतु अर्थात आदान काल का अंतिम समय न्यूनतम जीवन शक्ति का समय होता है यदि इसी समय रोग हो जाए तो ठीक होने में लंबा समय लगता है।
Ritu Chakra: According to Ayurveda, it is also very important to know the Ritu Chakra. Summer is the time of minimum vitality, if the disease occurs at this time, it takes a long time to recover.
लक्षण: शरीर में हल्का बुखार हमेशा बना रहे कुछ खाने की इच्छा न हो, पेट दर्द और उल्टियां हो, तो टाइफाइड की जांच हेतु विडाल टेस्ट करना चाहिए इसकी रिपोर्ट 1:160 से अधिक आने पर टाइफाइड होता है।
Symptoms: Nausea, distaste, mild fever, stomach pain and vomiting, are the symptoms which needs Vidal test to check for typhoid.
उपचार: जहां तक एलोपैथी औषधियों का प्रश्न है, कुछ टीके टाइफाइड न हो इसलिए बच्चों को लगाए जाते हैं। टाइफाइड होने के बाद कुछ एंटीबायोटिक दवाएं दी जाती हैं, जिनमें Ciprofloxacin (Cipro) से बैक्टीरिया इम्यून हो चुके हैं, इस कारण अब उससे लाभ नहीं होता, ऐसा अब शोधकर्ताओं का मानना है। यद्यपि एंटीबायोटिक का कोर्स करने पर रिपोर्ट ठीक आ जाती है। परंतु आंतों में सड़न होने की प्रक्रिया लगातार चलती रहे तो पुनः टाइफाइड हो जाता है। इसलिए आंतों की शुद्धि अति आवश्यक है।
Treatment: As far as allopathy drugs are concerned, some vaccines are their for typhoid, to be injected childhood. Some antibiotics are given after having typhoid, it is said by researchers that, bacteria have been immunized with Ciprofloxacin (Cipro). For this reason, it no longer benefits.
पथ्य अपथ्य: पूरे दिन आहार नियम का कठोरता से पालन करना चाहिए। कोई भी रेशेदार वस्तुएं अधिक तेल या तीखा और मसालेदार अन्न नहीं खाना चाहिए। नॉनवेज मैदा मावा कोल्ड ड्रिंक आइसक्रीम अथवा बेकरी पदार्थ बिल्कुल नहीं खाने चाहिए। इसी प्रकार पाचन में कठिन कुछ अन्य पदार्थ जैसे मूंगफली राजमा तुवर दाल कटहल फूलगोभी इत्यादि भी नहीं खाना चाहिए।
Dietary planing (Pathya-Apathya) : The dietary rule should be strictly followed throughout the day. No fibrous things, excess oil or spicy and spicy grains
should be eaten. Non-wheat flour (Maida) mawa cold drink ice cream or bakery items should not be eaten at all. Similarly, some other substances difficult to digest like groundnut, kidney beans, jackfruit, cauliflower, etc. should also not be eaten.
आयुर्वेद या प्राकृतिक उपचार: बड़ी आँत की शुद्धि हेतु प्रतिदिन नींबू या कड़वी नीम के पानी से एनिमा लेना चाहिये। अमलतास का सेवन उस स्थिति में करना चाहिए जब कब्जियत हो। आमाशय और छोटी आँत की शुद्धि के लिए प्रतिदिन खाली पेट नींबू पानी शहद सेंधा नमक और अदरक लेना चाहिए।
Ayurveda or natural remedy: Enema should be taken daily with lemon or Neem water for purification of the large intestine. Amalatas should be consumed in case of constipation. For the purification of stomach and small intestine, lemon water, honey rock salt and ginger should be taken on an empty stomach daily.
टाइफाइड हेतु विशिष्ट रसाहार: गेहूं के जवारे का रस, गिलोय, ग्वारपाठा, अडूसा, नागरमोथा का प्रतिदिन प्रातः नाश्ते के स्थान पर सेवन करना चाहिये। बीज रहित मुलायम, अच्छे पके हुए, गूदेदार फल भी खाए जा सकते हैं।
Special Rasahara for Typhoid: Wheat grass juice, Giloy, Alovera, Adusa, Nagarmotha juice is prescribed in the morning instead of breakfast. Seedless soft, well ripened, pulpy fruits can also be eaten.
यदि पथ्य अपथ्य का ध्यान ठीक से न रखा जाए तो रोग विकृत होता जाता है। यदि पूरी तरह ठीक होने के पूर्व ही अपथ्य कर लिया जाए, तो भी रोग पलट कर बढ़ जाता है।
If the diet is not taken care of properly, the disease gets distorted. It may increases by reversing.
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