मकर संक्रांति की सभी को हार्दिक शुभकामनाएं। आज से सूर्य उत्तरायण की ओर जा रहा है। यह परिवर्तन काल है। हम एक दूसरे को शुभकामनाएं इसलिए देते हैं ताकि जब सूर्य की किरणें इतनी तेज होने वाली हैं कि, धरती का रस सोखने लगे, तब हमारे शरीर की जीवन शक्ति भी साथ ही साथ कम होने लगती है। इस कम जीवन शक्ति के साथ हम स्वस्थ रहें यही शुभकामनाएं हैं। भारत तीनों ऋतुओं का देश है। कर्क रेखा लगभग भारत के मध्य से और भोपाल के बिल्कुल पास से गुजरती है। इसीलिए तीनों ऋतुओं के परिवर्तन मध्य प्रदेश और विशेष कर भोपाल में सभी को स्पष्ट रूप से अनुभव होते हैं। भारत के तटवर्ती राज्यों में ऋतुओं का इतना स्पष्ट विभाजन फिर भी नहीं है, परंतु हमारे यहां तो गर्मियों में हीटर स्वेटर बंद ही रहते हैं, शीत ऋतु में कूलर पंखे बंद रहते हैं। बरसात भी लगभग वर्षा ऋतु और शीत ऋतु में मावठे में ही होती है।

उत्तरायण शब्द उत्तर एवं अयन, इन दो पदों से बना है। इसका भाव है- सूर्य की उत्तर की ओर गति। चैत्र से भाद्रपद तक के माह उत्तरायण में आते हैं। यह आदान काल भी कहलाता है, क्योंकि इस समय प्रचण्ड सूर्य रस (जलीय तत्त्व) का आदान (ग्रहण) करता है। सूर्य की किरणें प्रखर और हवाएँ तीव्र, गर्म और रुक्ष होती हैं, ये पृथ्वी के जलीय अंश को सोख लेती हैं। इसका प्रभाव सभी औषधियों के साथ-साथ मनुष्य के शरीर पर भी पड़ता है। इससे शारीरिक शक्ति में कमी होने लगती है और व्यक्ति दुर्बलता का अनुभव करता है। इस अवधि में शिशिर, बसन्त और ग्रीष्म ऋतुएँ आती हैं।

मकर संक्रान्ति भारत का प्रमुख पर्व है। मकर संक्रांति (संक्रान्ति) पूरे भारत और नेपाल में किसी न किसी रूप में मनाया जाता है। पौष मास में जब सूर्य मकर राशि पर आता है तभी इस पर्व को मनाया जाता है। वर्तमान शताब्दी में यह त्योहार जनवरी माह के चौदहवें या पन्द्रहवें दिन ही पड़ता है, इस दिन सूर्य धनु राशि को छोड़ मकर राशि में प्रवेश करता है। नेपाल के थारू समुदाय का यह सबसे प्रमुख त्यैाहार है। नेपाल के बाकी समुदाय भी तीर्थस्थल में स्नान करके दान-धर्मादि करते हैं और तिल, घी, शर्करा और कन्दमूल खाकर धूमधाम से मनाते हैं। तमिलनाडु में इसे पोंगल नामक उत्सव के रूप में मनाते हैं जबकि कर्नाटक, केरल तथा आंध्र प्रदेश में इसे केवल संक्रांति ही कहते हैं। मकर संक्रान्ति पर्व को कहीं-कहीं उत्तरायण भी कहते हैं, यह भ्रान्ति है कि उत्तरायण भी इसी दिन होता है। किन्तु मकर संक्रान्ति उत्तरायण से भिन्न है। बिहार में इस व्रत को खिचड़ी के नाम से जाना जाता है तथा इस दिन खिचड़ी खाने एवं खिचड़ी दान देने का अत्यधिक महत्व होता है। महाराष्ट्र में इस दिन महिलाएँ आपस में तिल, गुड़, रोली और हल्दी बाँटती हैं। तमिलनाडु में इस त्योहार को पोंगल के रूप में चार दिन तक मनाते हैं। प्रथम दिन भोगी-पोंगल, द्वितीय दिन सूर्य-पोंगल, तृतीय दिन मट्टू-पोंगल अथवा केनू-पोंगल और चौथे व अन्तिम दिन कन्या-पोंगल। इस प्रकार पहले दिन कूड़ा करकट इकठ्ठा कर जलाया जाता है, दूसरे दिन लक्ष्मी जी की पूजा की जाती है और तीसरे दिन पशुधन की पूजा की जाती है। पोंगल मनाने के लिये स्नान करके खुले आँगन में मिट्टी के बर्तन में खीर बनायी जाती है, जिसे पोंगल कहते हैं। इसके बाद सूर्य देव को नैवैद्य चढ़ाया जाता है। उसके बाद खीर को प्रसाद के रूप में सभी ग्रहण करते हैं।

वसंत ऋतु में त्वचा रोग होने की संभावना अधिक रहती है, इसलिए आज के दिन उबटन का भी महत्व है। तिल हल्दी और नारियल का तेल मिलकर बिल्कुल महीन पीसें और उसे त्वचा पर लगाकर अच्छी तरह रगड़कर पूरा मैल निकालें। कहने का अर्थ है, आज से त्वचा की देखभाल करना शुरू कर दें।

आज से रथ सप्तमी तक भरपूर तिल गुड और खिचड़ी का दान भी करें और सेवन भी करें। तात्पर्य यह है कि, हाई प्रोटीन और भरपूर पोषक पदार्थ अभी ले लें। उस दौरान भोजन हल्का करें, ताकि तिल का पाचन हो जाए। ऐसा सब लोग करें इसलिए दान का भी महत्व है। जैसे-जैसे गर्मी बढ़ती जाएगी आपको भोजन हल्का और हल्का करते जाना है।

Leave a Reply

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

Theme: Overlay by Kaira
Bhopal, India
%d bloggers like this: