आयुर्वेदिक दिनचर्या पालन, योग, रसाहार एवं घरेलू उपचार से मधुमेह एवं सम्बंधित शारीरिक समस्याओं का निराकरण- एक केस स्टडी

आयुर्वेदिक दिनचर्या पालन, योग, रसाहार एवं घरेलू उपचार से मधुमेह एवं सम्बंधित शारीरिक समस्याओं का निराकरण- एक केस स्टडी

Ayurvedic Routine, Yoga, Diet, and Home Remedies for Diabetes and Related Health Issues: A Case Study

प्रस्तावना

आरोग्य योग एवं रसाहार शोध समिति के माध्यम से गत 18 वर्षों से सतत् दिए जा रहे ताजा रसों के प्रभाव अनेक मधुमेह रोगियों पर देखे गए हैं। उनके अनुभव के फीडबैक भी सतत् मिलते रहे हैं। किडनी प्रभावित हो चुके मधुमेह रोगी का उपचार ताजा रसों से करना अभी तक कल्पना से परे था। किंतु इस अध्ययन के कारण ताज़ा रसों की विश्वसनीयता एक बार और स्थापित हुई है। यूं तो सभी शोध अध्ययन साइंटिफिक जर्नल में प्रकाशित होते हैं, परंतु रसाहार सम्बन्धी अध्ययन का शोध पत्र मैंने पब्लिक डोमेन में डालना अधिक आवश्यक समझा। ताकि सामान्य जन रसाहार के महत्व को समझ सकें और रोग की कठिनतम अवस्था में भी आत्मनिर्भर रह सकें। नियमित जांचों के माध्यम से रोग की अवस्था पर कड़ी निगरानी रखी जा सकती है। रोगी का दृढ़ निश्चय, ईश्वर पर पूर्ण आस्था, दिनचर्या एवं ऋतुचर्या पालन आहार नियमों का पालन तथा नियमित योग के कारण उत्पन्न सकारात्मक रोग को विकृत होने ही नहीं देते।  

Preface

Through the Aarogya Yoga and Rasahara Shodha Samiti, the effects of fresh juice therapy (Rasahara) have been continuously observed on many diabetes patients for the past 18 years. Feedback from these patients has also been consistently received. Until now, treating diabetic patients with kidney complications using fresh juices was beyond imagination. However, this study has once again established the reliability of fresh juices (Rasahara). While most research studies are published in scientific journals, I deemed it essential to place this research on juice therapy in the public domain to allow people to understand its importance and self-manage their health even in severe conditions. Regular monitoring of the disease can help keep its progression under control. The patient’s determination, complete faith in God, adherence to daily routines and seasonal guidelines, dietary discipline, and regular yoga help prevent the disease from worsening.

उद्देश्य

अध्ययन से यह सुनिश्चित करना है कि, मधुमेह रोगी के लिए शर्करा वृद्धि को रोकने हेतु आयुर्वेद अनुसार बताई गई दिनचर्या आहार नियम ऋतुचर्या तथा सोने और जागने का समय आदि का ध्यान रखना अत्यंत आवश्यक है। अर्थात भोजन निश्चित समय पर निश्चित मात्रा में हो निद्रा न तो बहुत अधिक हो न ही बहुत कम हो। उसका समय भी सही हो, सूर्योदय पर उठ जाएं, और रात को भी जल्दी सोएं, दोपहर निद्रा न करें। भोजन टुकड़ों में न करके सही समय पर दिन में 2 बार करना चाहिए।

Objective

The objective of this study is to demonstrate that, according to Ayurveda, maintaining routines, dietary rules, seasonal guidelines, and fixed sleep and wake times are crucial for diabetes patients to control blood sugar levels. Meals should be at fixed times and in fixed quantities, sleep should neither be excessive nor insufficient, and the timing of sleep should align with nature. The patient should wake up at sunrise and sleep early at night, avoiding daytime naps. Meals should be limited to two proper sittings during the day rather than eating in fragments.

पृष्ठभूमि

बढ़ते भोग वाद एवं श्रम रहित जीवन के कारण पिछले कुछ वर्षों से मधुमेह तीव्र गति से संसार में अपने पांव जमा रहा है (3)। कोविड-19 महामारी के प्रारंभ में अत्यंत तनावग्रस्त स्थितियां (4) तथा कोरोना हेतु दी जाने वाली औषधि के कारण भी अनेक रोगियों की शर्करा बढ़ने की स्थितियां बनी हैं (5)। कोविड महामारी में अस्पतालों और चिकित्सा कर्मियों पर बढ़ते बोझ, समय की कमी और कार्यकर्ताओं की कमी को देखते हुए चिकित्सा के क्षेत्र में अन्य उपचार पद्धतियों को बढ़ावा देना अत्यधिक आवश्यक हो गया है। संसार के प्रत्येक व्यक्ति को स्वास्थ्य संबंधी विषयों पर स्वावलंबी होना भी अति आवश्यक हो गया है। इस हेतु आयुर्वेद एवं भारतीय चिकित्सा पद्धतियों का ज्ञान सबको होना चाहिए। योग को अपने दैनिक जीवन की दिनचर्या में स्थान देने से मनुष्य तनाव से मुक्त एवं रोग रहित रह सकते हैं (6)। 

आयुर्वेद में दिनचर्या पालन का महत्व सबसे अधिक है। स्वस्थ वृत्त (7) आयुर्वेद का वह भाग है, जिसमें मनुष्य को प्रातः उठने से लेकर रात्रि सोने तक की पूरी दिनचर्या को किस प्रकार रखा जाए, यह सिखाया जाता है। इसी प्रकार ऋतुचर्या में किस ऋतु में कैसे रहना चाहिए, क्या खाना पीना चाहिए, क्या नहीं खाना पीना चाहिए, यह सब बताया जाता है। साथ ही आयुर्वेद में रात्रिचर्या का भी वर्णन मिलता है, जिसमें सोने का स्थान, दिशा समय इत्यादि अनेक बातों का विस्तार से वर्णन है। दिनचर्या में भोजन के समय भी निश्चित करके बताए गए हैं। योगरत्नाकर में दिए गए 1 श्लोक के अनुसार (8) व्यक्ति का दोपहर भोजन सूर्योदय के 3 घंटे बाद से लेकर 6 घंटे बाद तक के बीच में होना चाहिए। इससे पूर्व किसी को अन्न नहीं लेना चाहिए। रसाहार उपचार के अंतर्गत विभिन्न वनस्पतियों के पेड़ों के पत्तियां तने, फूल, फल अथवा जड़ों का ताजा रस बनाकर उपचार हेतु उपयोग में लाया जाता है। इसके उपयोग का समय प्रातः काल अर्थात दिन का पहला पहर होता है (9)। भारत के भोपाल शहर में चार रसाहार केंद्रों के माध्यम से पिछले 18 वर्षों से सफलतापूर्वक रसाहार उपचार का उपयोग 10000 से अधिक लोगों पर किया जा चुका है। रोग की अवस्था में रोगी अथवा स्वस्थ अवस्था में कोई भी इसके नियमित सेवन से शरीर के सभी अंगों को पोषण मिलता है, साथ ही यह रस एंटीऑक्सीडेंट होने के कारण तथा विभिन्न प्रकार के मलों का शोधन करने का गुण रखने के कारण शरीर को शुद्ध भी बनाते हैं।

Background

Due to an increasingly indulgent and sedentary lifestyle, diabetes has rapidly spread worldwide in recent years. The stress and medications during the COVID-19 pandemic have further exacerbated this issue for many patients. With the rising burden on hospitals and healthcare workers during the pandemic, promoting alternative treatment methods became a necessity. Self-reliance in health management has become essential for everyone. Knowledge of Ayurveda and Indian medical practices can aid in this. Including yoga in daily life helps relieve stress and maintain health.

In Ayurveda, the importance of daily routines is paramount. The “Swasthavritta” (code of health) teaches how to manage one’s daily activities from morning to night. Seasonal routines (“Ritucharya”) guide what to eat and avoid during specific seasons. Additionally, the night routine (“Ratricharya”) provides guidance on sleeping arrangements, directions, and times. Specific meal timings are recommended. For example, “Yogaratnakar” suggests lunch should be taken three to six hours after sunrise, and no food should be consumed before that.

Juice therapy (Rasahara) uses fresh juices from various plants’ leaves, stems, flowers, fruits, or roots for treatment. The ideal time for consuming these juices is the early morning. Over the past 18 years, juice therapy has been successfully administered to over 10,000 individuals at four centers in Bhopal, India. Regular intake of these juices nourishes all body parts, purifies the body due to their antioxidant properties, and removes toxins.

महर्षि पतंजलि के बताए अनुसार यह 4 सूत्र (10, 11, 12, 13) अत्यंत महत्वपूर्ण एवं ध्यान रखने योग्य हैं-

According to Maharishi Patanjali, these 4 sutras (10, 11, 12, 13) are very important and worth keeping in mind-

अविद्याक्षेत्रमुत्तरेषां प्रसुप्ततनुविच्छिन्नोदाराणाम् (PYS 2.4)

Ignorance is the breeding ground for the others (asmita, raga, dvesha, abhinivesah). Whether they are dormant, attenuated, overpowered or active.

अविद्या सब क्लेशों की जननी है। सबके मूल में अविद्या ही उपस्थित है। अविद्या के होने मात्र से सारे बंधन और दुख हैं, क्लेश हैं।

अनित्याशुचिदुःखानात्मसु नित्यशुचिसुखात्मख्यातिरविद्या (PYS 2.5)

अनित्य पदार्थों में नित्यता देखना, अशुद्ध पदार्थों में शुद्धता देखना, दुःख को सुख समझना और जड़ पदार्थों को चेतन जानना यही अविद्या का प्रमुख लक्षण है। यदि कोई शरीर को अनित्य समझकर तदनुरूप भावनात्मक एवं क्रियात्मक आचरण नहीं करता है, वह तो अत्यंत घनघोर अविद्या रूपी क्लेश से ग्रसित है, ऐसा समझना चाहिए।

Ignorance is taking the non-eternal, the impure, the painful, and the non-Self, as the eternal, the pure, the pleasant, and the Atman or Self respectively.

सुखानुशयी रागः (PYS 2.7)

Attachment is that which dwells upon pleasure.

जब कभी भी हम किसी भी सुख को भोगते हैं तो भोगने के बाद हमारे अंतःकरण (मन-बुद्धि-चित्त-अहंकार) में उस सुख और जिन साधनों से हमें सुख प्राप्त हुआ था उनके प्रति पुनः भोग करने की जो इच्छा है, वह इच्छा विशेष या लोभ विशेष को राग नाम का क्लेश कहते हैं।

ततः क्षीयते प्रकाशावरणम् (PYS 2.52)

From that, the covering over the inner light is removed.

प्राणायाम के सतत अभ्यास से एक ओर शरीर की शुद्धि होती है वहीँ दूसरी ओर मन का की मलिनता भी धुलती जाती है । तन और मन के सभी विकारों का नाश होने से बुद्धि में भी निर्मलता आती है । बुद्धि में स्वयं को अलग और पुरुष (जीवात्मा) को अलग देखने की क्षमता बढ़ती जाती है । पुरुष और बुद्धि का पृथक पृथक ज्ञान न हो पाना ही आवरण है और इसी आवरण का नाश प्राणायाम के द्वारा होता है ।

 अतः केवल आसन प्राणायाम को ही योग न समझकर योग का वास्तविक अर्थ समझ कर उसे व्यवहार में लाना ही मनुष्य को तनाव रहित तथा उसके शरीर को रोग रहित बनाता है। प्रस्तुत अध्ययन में बताए गए रोगी के उपचार की दिशा इन्हीं बिंदुओं को ध्यान में रखकर की गई।

Continuous practice of Pranayama on one hand purifies the body and on the other hand the impurities of the mind are also washed away. The destruction of all the disorders of body and mind also brings purity in the intellect. The ability to see oneself as separate and the Purusha (soul) as separate increases in the intellect. Not being able to have separate knowledge of Purusha and intellect is the covering and this covering is destroyed by Pranayama.

अध्ययन विधि

रसाहार केंद्र में आने से पूर्व रोगी की स्थिति

27 वर्षों से मधुमेह रोगी; फैटी लीवर; गर्भाशय का आकार बढ़ा हुआ, मासिक अधिक; 2 वर्ष से उच्च रक्तचाप, किडनी की समस्याएं; दो माह से कीटो एसिडोसिस, उंगलियों में दर्द, कब्जियत, मल या मूत्र खुलकर नहीं आना, पेट में भारीपन, रात को नींद न आना, सुबह उठने की इच्छा न होना, खर्राटे, गैस, सुस्ती अधिक।

Diabetic patient for 27 years; fatty liver; Enlargement of uterus, heavy menstruation; High blood pressure, kidney problems from 2 years; Keto acidosis since two months, pain in fingers, constipation, inability to pass stool or urine, heaviness in the stomach, sleeplessness at night, not willing to get up in the morning, snoring, gas, lethargy, etc.
Initial Condition of the Patient

मधुमेह एवं उच्च रक्तचाप के अतिरिक्त 17 टैबलेट चार बार इंसुलिन (5+5+5+10)
In addition to diabetes and high blood pressure, 17 tablets of insulin four times a day (5+5+5+10)

सुबह 9:00 बजे नाश्ता, दोपहर 2:00 बजे भोजन, रात 9:00 बजे दूसरा भोजन

Breakfast at 9:00 am, Lunch at 2:00 pm, Second meal at 9:00 pm

प्रातः 5:00 बजे जागरण रात्रि जब नींद आए 11 या 12:00 बजे के बाद निद्रा

Waking up at 5:00 in the morning if had sound sleep at night after 11 or 12:00 o'clock

प्रतिदिन आधे से एक घंटा आसन एवं कुछ मात्रा में प्राणायाम

Half to one hour of asana and a little of of pranayama every day.

ध्यान का प्रयास करने पर नींद आना

Falling asleep while trying to meditate.

रोग की विकृति के कारण उत्पन्न अत्यधिक तनाव पूर्ण स्थिति

Excessive stressful condition caused by the pathology of the disease.

रोगी ने जब अध्ययन कर्ता को अपनी समस्याओं की जानकारी दी, तब उन्हें कम से कम 20 दिनों के लिए रसाहार केन्द्र में आने को कहा गया। जिस दिन वह रसाहार केन्द्र में आई उनकी सभी सामान्य और आवश्यक चिकित्सकीय जांचें की गईं।

When the subject informed the Rasahara consultant about her problems, she was asked to come to the Rasahara Center for at least 20 days. All her usual and necessary medical check-ups were done on the day, she came to the Rasahara Kendra.

उन्हें प्रातः उठने से लेकर रात्रि सोने तक की एक दिनचर्या बना कर दी गई, जो तालिका क्रमांक तीन में दिखाई गई है। प्रातः योग के अंतर्गत उन्हें वही योग करते रहने के लिए कहा गया, जो वह पूर्व से करती आई हैं। लेकिन पूर्व में वे नियमित नहीं थे, अब उन्हें नियमित रूप से करने को कहा गया। तालिका क्रमांक 4 में उनके द्वारा किए जाने वाले योग, आसन तथा प्राणायाम बताए गए हैं।

She was given a daily routine from waking up in the morning till sleeping at night, which is shown in table number 3. In morning yoga, she was asked to continue doing the same yoga which she had been doing earlier. But earlier it was not regular, now she was asked to do it regularly.

तालिका क्रमांक 4 (Table No. 4):

क्रमांकआसन/प्राणायाम (Asana/Pranayama)स्थिरता का समय या चक्र (Time of maintaining or cycle)
 1सूक्ष्म व्यायाम (Sukshma Vyayama)10 मिनट (10 min)
 2कपालभाति (Kapalabhati)360
 3विपरीतकरणी (20 दीर्घश्वास के साथ) (Viparitakarani)10 मिनट (10 min)
 4सूर्य नमस्कार (Suryanamskara)2 चक्र (2 Cycles)
 5पवनमुक्तासन (Pavanamuktasana)1 मिनट (1 min)
 6भुजंगासन (Bhujangasana)1 मिनट (1 min)
 7शलभासन (Shalabhasana)1 मिनट (1 min)
 8मर्कटासन (Markatasana)1 मिनट (1 min)
 9वक्रासन (Vakrasana)1 मिनट (1 min)
 10उष्ट्रासन (Ushtrasana)1 मिनट (1 min)
 11ताड़ासन (Tadasana)1 मिनट (1 min)
 12तिर्यक ताड़ासन1 मिनट (1 min)
 13कटिचक्रासन1 मिनट (1 min)
 14शवासन5 मिनट (5 min)
 15अनुलोम-विलोम20 चक्र (20 Cycles)
 16ओंकार20 चक्र (20 Cycles)

आवर्तन ध्यान (Cyclic meditation)

इसके अतिरिक्त उन्हें प्रतिदिन दोपहर भोजन के 2 घंटे बाद तथा रात्रि भोजन के 2 घंटे बाद अथवा सोने से पूर्व आवर्तन ध्यान (14) करने के लिए कहा गया। आवर्तन ध्यान एक 35 मिनट का शिथिलीकरण योगाभ्यास है, जो तालिका क्रमांक 5 में दिया गया है। अत्यधिक तनाव पूर्ण स्थिति का स्वप्रबंधन, यह विशिष्ट योगाभ्यास स्वामी विवेकानंद योग अनुसंधान संस्थान बेंगलुरु द्वारा तैयार  किया गया है। जब तनाव अत्यधिक बढ़ जाता है, तो वह हमारे दैनिक कार्यों को प्रभावित करता है। इसमें तनाव की स्थिति से स्वयं को बाहर निकालने का प्रयास किया जाता है।

Apart from this, she was asked to do Cyclic meditation (14); 2 hours after lunch and 2 hours after dinner or before sleeping. Cyclic Meditation is a 35 minute relaxation yoga practice, which is given in Table No. 5. It is self-management of highly stressful situations, This specific yoga practice has been prepared by Swami Vivekananda Yoga Research Institute, Bengaluru. When stress becomes excessive, it affects our daily activities. In this practice, an attempt is made to get oneself out of the situation of stress.

आवर्तन ध्यान का योगाभ्यास एक श्लोक से प्रारंभ होता है। जिसे आदि शंकराचार्य द्वारा लिखी गई मांडूक्य उपनिषद् की टीका में लिखित एक कारिका से लिया गया है-

The yoga practice of Cyclic meditation starts with a verse. Which is taken from a Karika written in the commentary of Mandukya Upanishad written by Adi Shankaracharya.

लये संबोधयेत् चित्तं विक्षिप्तं शमयेत् पुनः।
सकषायं विजानीयात् समः प्राप्तं न चालयेत्।।

अर्थ – शरीर की संपूर्ण स्थिर अवस्था में, जब चित्त की की गहराइयों में पड़े विकार बाहर आकर हमें विचलित करने का प्रयास करते हैं। तब ईश्वर से प्रार्थना है कि, ऐसी स्थिति में हम उन विकारों को समझ कर शांत कर सकें। ताकि वह हमें पुनः विचलित न करें।

In the state of oblivion, awaken the mind. When agitated, pacify it; in between the mind. If the mind has reached the state of perfect equilibrium, then do not disturb it again.

तालिका क्रमांक 5 (Table No. 5): आवर्तन ध्यान (Cyclic meditation)

क्रमांकअभ्यासस्थिति
1क्षणिक शिथिलीकरण IRT (Instant relaxation technique)शवासन में (In Shavasana)
2‘अ’कार के साथ वामकुक्षी (Horizontal awareness with ‘A’ kara)लेट कर (Horizontal state)
3धरती से पैरों के स्पर्श की अनुभूति (CENTRING)खड़े हो कर (Standing Posture)
4अर्ध चक्रासन (Ardha Chakrasana- Standing Postures –  Sthiti: Tadasana)खड़े हो कर (Standing Posture)
5अर्ध कटि चक्रासन (Ardha Kati chakrasana- Standing Postures –  Sthiti: Tadasana)खड़े हो कर (Standing Posture)
6पाद हस्तासन (Padahastasana)खड़े हो कर (Standing Posture)
 शीघ्र शिथिलीकरण QRT-(Quick relaxation technique)लेट कर (In Shavasana)
7अर्ध उष्ट्रासन (Ardha Ushtrasana)बैठ कर (Sitting Posture)
8शशांकासन (Shashankasana)बैठ कर (Sitting Posture)
9दीर्घ शिथिलीकरण 6 मिनिट, विभागीय (DRT Deep relaxation technique)लेट कर (In Shavasana)
10शांति मंत्र (Closing prayer)बैठ कर (Sitting Posture)

भोजन (Lunch and Dinner)

उन्हें दोनों समय भोजन के अंतर्गत दोपहर भोजन सामान्य ही रखा गया, परंतु तले हुए पदार्थ सामिष अथवा मीठे पदार्थ प्रतिबंधित रखे गए। रात्रि भोजन थोड़ा प्रतिबंधित रखा गया जिसके अंतर्गत किसी एक अनाज के साथ सब्जियां अथवा सूप दिया गया। दूध पीने की उनकी स्वयं की इच्छा नहीं होने के कारण उन्हें दूध नहीं दिया गया।

Lunch was kept as normal during both the meals, but fried foods, sweets or Non-veg were banned. Dinner was somewhat restricted, consisting of vegetables or soup along with one grain. She was not given milk because she was not willing to drink it.

रसाहार (Rasahara)

रसाहार के अंतर्गत प्रातः काल उठते ही सबसे पहले नींबू पानी दो चम्मच शहद एवं सेंधा नमक के साथ सोंठ भी डाल कर दिया गया (15)। इसके साथ उन्हें एक चम्मच अजवाइन चूर्ण (16) प्रतिदिन खाने को कहा गया। दूसरे रस के रूप में उन्हें गोखरू (17), पुनर्नवा(18), अपामार्ग(19), अश्वगंधा(20) एवं गिलोय(21) का रस दिया गया। दूसरे रस के बाद अल्पाहार के रूप में उन्हें प्रतिदिन दो अंजीर (22) एवं 20 मुनक्के के दाने (23) जो कि रात्रि में भिगोकर रखे जाते थे, दिये गये। सायंकाल 5:00 बजे उन्हें तीसरे रस के रूप में मधुनाशक अर्थात अडूसा (24), गिलोय, गुड़मार (25), बेलपत्र (26), मीठी नीम (27), ग्वारपाठा (28) तथा हल्दी (29) का रस दिया गया। तीसरे  रस के रूप में उन्हें रात्रि सोने से पूर्व गोखरू पुनर्नवा अपामार्ग अमलतास (29) तथा गिलोय का रस दिया गया। रसाहार केंद्र में आने के चौथे दिन उन्हें प्रातः काल भी मधुनाशक रस दिया जाने लगा लेकिन उसमें हल्दी एवं ग्वारपाठा के स्थान पर भुई आंवला (30) दिया जाता था। तालिका क्रमांक छह में उनके द्वारा बताई गई शारीरिक एवं मानसिक समस्याओं का वर्णन है किंतु 16 में दिन उन्हें बहुत सर्दी जुकाम होने के कारण प्रातः के रस में भी हल्दी डालकर दी जाने लगी। साथ ही उन्हें दिन में छह सात बार पिप्पली चटनी की प्रत्येक बार दो ग्राम मात्रा दिन में अथवा आवश्यकता पड़ने पर एक या दो बार रात्रि में भी दी गई। इस हेतु उन्हें कोई भी अन्य एलोपैथिक दवा नहीं दी गई। कोरोना सुरक्षा हेतु उन्हें प्रतिदिन प्रातः काल काढ़ा दिया जाता था। इसमें पिप्पली (31), मुलेठी (32), अजवाइन, दालचीनी (33) और बड़ी इलायची (34) मिलाकर काढ़ा बनाया जाता था। पिप्पली चटनी, पिप्पली काली मिर्च शहद और मुलेठी मिलाकर बनाई गई है। दोपहर भोजन के 1 घंटे पश्चात उन्हें पानी के साथ पुनः एक चम्मच अजवाइन चूर्ण दिया जाता था। उन्होंने हमेशा की तरह दिन में दो बार बिना शक्कर की कम दूध वाली चाय ली। भोजन की मात्रा का उन पर कोई बंधन नहीं था, परंतु पहले उन्हें भोजन में अरुचि थी। 2 दिन रसाहार केंद्र में रहने के पश्चात उन्हें थोड़ी अधिक भूख लगने लगी, इसलिए भोजन में उन्होंने आधी चपाती की मात्रा बढ़ा दी। साथ थोड़ा सा चावल भी लेना प्रारंभ किया इन 20 दिनों में 5 या 6 बार उन्हें दोपहर भोजन के साथ मिठाई भी खाने को दी गई। दूसरा मधुनाशक रस शुरू करने के बाद उनकी भूख फिर कम हो गई, इसलिए उन्होंने चावल या चपाती की मात्रा थोड़ी कम कर दी।  

Rasahara

As part of the diet plan, at first after waking in the morning, a glass of lemon water was given with two teaspoons of honey, rock salt, and dry ginger powder (15). Along with this, she was advised to consume one teaspoon of carom seed powder (16) daily.

For the second juice, she was provided with juice made from Gokhru (17), Punarnava (18), Apamarg (19), Ashwagandha (20), and Giloy (21). After this juice, as a light breakfast, she was given two figs (22) and 20 soaked raisins (23) every day, which were soaked overnight.

At 5:00 PM, the third juice, known as a diabetes-control juice, included Adusa (24), Giloy, Gudmar (25), Bel leaves (26), sweet neem (27), aloe vera (28), and turmeric (29).

As the third juice before bedtime, they were given a combination of Gokhru, Punarnava, Apamarg, Amaltas (29), and Giloy juice.

On the fourth day of their stay at the juice therapy center, they were also given the diabetes-control juice in the morning. However, turmeric and aloe vera were replaced with Bhumiamla (30). A table (not included here) lists their physical and mental issues, but on the 16th day, due to severe cold and congestion, turmeric was added back to the morning juice. Additionally, they were given Pippali chutney six to seven times a day, 2 grams per serving, or one to two times at night as needed. No allopathic medicines were provided for this purpose.

For COVID-19 protection, a herbal decoction was given daily in the morning, prepared with Pippali (31), licorice (32), carom seeds, cinnamon (33), and large cardamom (34). Pippali chutney was made from Pippali, black pepper, honey, and licorice.

One hour after lunch, they were given one teaspoon of carom seed powder with water. They consumed tea with less milk and no sugar twice a day. There were no restrictions on the quantity of food, but initially, they had a lack of appetite. After two days at the juice therapy center, they began feeling slightly hungrier, increasing their intake by half a chapati and starting to consume small portions of rice. During these 20 days, sweets were provided with lunch on five or six occasions.

After starting the second diabetes-control juice, their appetite decreased again, leading them to slightly reduce their rice and chapati intake

तालिका क्रमांक 6: आहार तथा रसाहार-

क्रमांकआहार तथा रसाहारलगभग समयखाद्य सामग्री/रसाहार सामग्री (food items) कुल मात्रा (total quantity)मात्रा (amount)
1नींबू पानी (Lemon water)6:00अजवाइन एवं नींबू, पानी, शहद, सेंधा नमक, सोंठ Carom seeds (Ajwain), lemon, water, honey, rock salt (sendha namak), and dry ginger (sonth)150 मि.ली. (ml) + 4 ग्राम चूर्ण (4 gm. Dried powder)½ चम्मच 4 ग्राम चूर्ण (1/2 tea spoon or 4 gm. Dried powder)
2रसाहार (Rasahara)प्रातः 8:00गोखरू, पुनर्नवा, अपामार्ग, अश्वगंधा एवं गिलोय Gokhru, Punarnava, Apamarg, Ashwagandha, and Giloy150 मि.ली. (ml)प्रत्येक 8 ग्राम चूर्ण या ताजी गिलोय 15 ग्राम का पानी में पीस कर बना रस अन्य सभी ताजा पंचांग 6 ग्राम का पानी में भिगो कर बना रस (8 gm. Dried powder of Guduchi or fresh juice of 15 gm. stem) including with all other dried powders 8 gm. each taken after socking them in water for 12 hours)
3रसाहार (Rasahara)प्रातः 8:30मधुनाशक (अडूसा गिलोय गुड़मार मीठी नीम बेलपत्र भुई आंवला) Madhunashak (Adusa, Giloy, Gudmar, Meethi Neem, Belpatra, Bhumi Amla)200 मि.ली. (ml)प्रत्येक 8 ग्राम चूर्ण या ताजी गिलोय 15 ग्राम, अन्य सभी ताजी पत्तियाँ 4 ग्राम, आंवला रस 50 मि.ली. (8 gm. Dried powder of Guduchi or fresh juice of 15 gm. stem) including with all other leaves of fresh herbs 4 gm. each)
4चाय (Tea)प्रातः 9:00 AM 50 मि.ली. (ml)एक कप (1 cup)
5अल्पाहार (Breakfast)प्रातः 9:30 AMअंजीर एवं मुनक्के (Figs and Raisins) दो अंजीर एवं 20 मुनक्के (Two figs and 20 raisins)
6काढ़ा (Herbal Decoction)प्रातः 10:00 AM  एक कप
7भोजन (Lunch)दोपहर 11:30दाल, चावल, सब्जी, चपाती, सलाद, हरी चटनी, सूप, मिठाई (Dal, Rice, Vegetable, Chapati, Salad, Green Chutney, Soup, Sweets)150 ग्राम+150 मि.ली. (ml)एक कटोरी दाल, दो या डेढ़ चपाती, एक कटोरी सूप, सलाद (One bowl of dal, two or one and a half chapattis, one bowl of soup, salad)
8अजवाइन एवं पानी दोपहर 1:00 PM   
9चाय (Tea)दोपहर 3:00 PM 50 मि.ली. (ml)एक कप (1 cup)
10रसाहार (Rasahara)सायंकाल 5:00 PMमधुनाशक (ग्वारपाठा अडूसा गिलोय गुड़मार मीठी नीम बेलपत्र हल्दी) Madhunashak- (Guarpatha Adusa Giloy Gudmar Sweet Neem Belpatra Turmeric)200 मि.ली. (ml)ग्वारपाठा रस 50 मि.ली., हल्दी गांठ का रस 25 मि.ली., अन्य सभी ताजी पत्तियाँ 4 ग्राम, 15 ग्राम गिलोय का पानी में पीस कर बना रस Aloe vera (Gwarpatha) juice 50 ml, turmeric root juice 25 ml, juice of all other fresh leaves 4 grams, and juice made by grinding 15 grams of Giloy in water.
11रात्रि भोजन (Dinner)सायंकाल 7:00 PMपोहा/उपमा/दलिया/दाल के साथ उबली हुई सब्जियां/ सूप Poha/Upma/Dalia/Dal with boiled vegetables/soup100 ग्राम+150 मि.ली. (ml)लगभग 100 ग्राम अनाज एवं उतनी ही सब्जियां एक कटोरी सूप Approximately 100 grams of grains and an equal amount of vegetables with one bowl of soup.
12रसाहार (Rasahara)रात्रि 9:00 PMगोखरू पुनर्नवा अपामार्ग अमलतास तथा गिलोय का रस Juice of Gokhru, Punarnava, Apamarg, Amaltas, and Giloy.150 मि.ली. (ml)प्रत्येक 8 ग्राम चूर्ण या ताजी गिलोय 15 ग्राम का पानी में पीस कर बना रस अन्य सभी ताजा पंचांग 6 ग्राम का पानी में भिगो कर बना रस Each 8 grams of powder or 15 grams of fresh Giloy, ground in water to make juice. Juice of all other fresh plant parts (panchang) of 6 grams, soaked in water to make juice.

आगे 6 माह तक विषय में अपना स्वयं का उपचार अपने ही घर पर किया, जिसमें उन्होंने रस के स्थान पर चूर्ण का उपयोग किया। सभी आयुर्वेदिक ग्रंथों के अनुसार रसाहार वनस्पति का सर्वश्रेष्ठ रूप है।

स्वरस आदि पंच कषाय के शरीर पर प्रभाव – यहाँ स्वरस, कल्क, क्वाथ हिम तथा फाण्ट – ये पाँच प्रकार के कषाय हैं और ये उत्तरोत्तर लघु होते हैं। अर्थात स्वरस से कल्क, कल्क से कषाय, कषाय से हिम तथा हिम से फाण्ट लघु होता है। यहां पर लघु होने का अर्थ है, उसके गुण कम हो जाना। अर्थात स्वरस से कल्क के गुण कम हैं, कल्क से कषाय के गुण कम हैं, कषाय से हिम के गुण कम हैं, हिम से फाण्ट के गुण कम हैं।

अथान्न स्वरस: कल्क: क्वाथश्व हिमफाण्टकौ। ज्ञेया: कवाया: पञ्चैते लघव: स्युर्यथोत्तरम्॥॥ १  स्वरसादय: ,

(Y. R. Swarsadaya V 93/1)

तालिका क्रमांक 8: रोगी की स्थिति- नैदानिक परिक्षण

S.No.MedicineSupposed to be taken forContinuityDuring medication without Rasahara and YogaAfter stopping medicine with Rasahara and Yoga
1Neurosafewheezing; chest tightness; fever; itching; bad cough; blue or gray skin color; seizures; or swelling of face, lips, tongue, or throat. Very upset stomach or throwing up. Any rash.ODCreatinine increased to 2.5Creatinine reduced to 2.1
2DytorHeadache, dizziness and muscle pain.Nausea, vomiting, diarrhoea, constipation and stomach pain.Fatigue, loss of energy and loss of appetite.Body fluid and electrolyte imbalance like low levels of sodium.ODSwelling on legs and eyesNo Swelling
3Soboisis 500Increases the free bicarbonate ions in urine hence effectively raise the urinary pH.ODBody was feeling acidicNow body is feeling less acidic
4GlynaseIt belongs to a group of medicines called sulfonylureas and helps control blood sugar levels in people with diabetes. This helps to prevent serious complications of diabetes like kidney damage and blindness.TDSSugar controlledMedicine stopped, Sugar controlled
5Moxovas 0.3High BPBDBP Controlled, palpitationBP Controlled with medicine, No palpitation
6Cilacar 20calcium channel blocker, High BP, heart attack, or kidney problems½ TabBP ControlledBP Controlled without medicine, No palpitation
7NiftasAntibiotic, infections of the urinary tract, viral infectionOD5-6 pus cells detected in urine testMedicine stopped, 2-3 pus cells detected in urine test
8Ondero .5mgDiabetes, kidney damage and blindness.ODSugar ControlledControlled sugar with alternative Ayurveda medicine
9Meconerve plusPeripheral neuropathy, Diabetic neuropathy, alcoholism, and drug consumption, and hyperhomocysteinemia, activity of damaged neurons, and reduces homocysteine levels.ODTickling sensation, numbness in legsNo complications without medicine
10CelofeProphylaxis of megaloblastic anemia in pregnancy, Supplement for women of child-bearing potential, Folate-deficient megaloblastic anemia, Prophylaxis of neural tube defect in pregnancy.ODHB 11Increased HB from 12.9 to 13.1 without medicine
11Rebletacid reflux, peptic ulcer diseaseODBloating in stomachNo bloating without medicine
12Prothiyadan 50anxiety disorder and depressionODSleepless nightsCalm sleep without medicine
13Clonafit .5Anxiety, Sleep disorderODSleepless nightsRelaxed and calm sleep without medicine
14Deniz 50mgDepression, anxiety, tension, sleeplessnessODAlways was in fear of futureNo fear feeling at all
15MacpeeDiureticBDUrination was interruptedProper urination without medicine
16IluzuDiuretic, Enlarged prostateODIncreased CreatinineProper urination without medicine
17Insulin Short actingDiabetes5 unit TDSControlledControlled sugar with reduced dose to 5 OD
18Insulin Long actingDiabetes10 unit ODControlledControlled sugar with reduced dose to 8 OD

परिणाम:

उपचार के पहले 20 दिन बाद के परिणाम

तालिका क्रमांक 7 रोगी की स्थिति- भौतिक परिक्षण

भौतिक परिक्षण (Physical tests)भौतिक परिक्षण- पूर्व स्थिति (Pre)भौतिक परिक्षण- पश्चात् स्थिति (Post)
वजन Weight7674
शरीर की सूजन (Swelling on body)अधिक (Increased)कम (Decreased)
त्वचा का रूखापन (Dryness of skin)अधिक (Increased)कम (Decreased)
आंखों की सूजन (Swelling on eyes)अधिक (Increased)कम (Decreased)
बाल झड़ना (Hair fall)अधिक (Increased)कम (Decreased)
   
   

आयुर्वेदिक दिनचर्या पालन, योग, रसाहार एवं घरेलू उपचार को 20 दिन अपना कर रोगी ने कुल मिलाकर अच्छा स्वास्थ्य अनुभव किया।

भोजन के पूर्व और भोजन के पश्चात दोनों शर्करा स्तर में सुधार है जिसे तालिका क्रमांक 9-1 में देखा जा सकता है। ग्राफ क्रमांक 1 एवं 2 में यह स्थिति और भी अधिक स्पष्ट है।

By following Ayurvedic routine, yoga, vegetarian diet and home remedies for 20 days, the patient experienced overall good health.

There is improvement in both pre-meal and post-meal sugar levels which can be seen in Table 9-1. This situation is even more clear in graph numbers 1 and 2.

20 दिन की समय अवधि में कुछ रिपोर्ट में सुधार है तो कुछ में सामान्य से कुछ गिरावट है।

आगे 6 माह तक विषय में अपना स्वयं का उपचार अपने ही घर पर किया, जिसमें उन्होंने रस के स्थान पर चूर्ण का उपयोग किया। तालिका 9-2 में उसके बाद की रिपोर्ट दिखाई गई है।

In the 20 day time period, some reports are an improvement and some are a decline from normal.
For further 6 months, the subject treated himself at her own home, in which she used powder instead of juice. Table 9-2 shows the subsequent report.

तालिका 9-1 एवं तालिका 9-2 को देखकर दोनों का तुलनात्मक अध्ययन किया जा सकता है ग्राफ क्रमांक 3 एवं 4 में यह स्थिति और भी अधिक स्पष्ट है।

तालिका 9-1 एवं 9-2 भी में सुधरी हुई एवं गिरावट वाली रिपोर्ट दी गई है।

A comparative study of both can be done by looking at Table 9-1 and Table 9-2. This situation is even more clear in graph numbers 3 and 4.
Tables 9-1 and 9-2 also report improvements and declines.
तालिका 9-1

शर्करा स्तर में कमी एवं इंसुलिन में कमी-

Table 9-1
Decrease in sugar level and decrease in insulin-

DateInsulin doseFBSPPBS
23-03-215+5+5+10135125
24-03-215+10141121
25-03-215+7109259
26-03-215+7135317
27-03-215+7180245
28-03-215+7153292
29-03-215+8195205
30-03-215+8155200
31-03-215+8155214
01-04-215+8
02-04-215+8200230
03-04-215+8180217
04-04-215+8160202
05-04-215+8158

ग्राफ क्रमांक 1-

प्रतिदिन का शर्करा स्तर

Graph number 1-

daily sugar level

ग्राफ क्रमांक 2-

प्रतिदिन इंसुलिन की मात्रा-

Graph number 2-

Daily amount of insulin-

तालिका क्रमांक 9-2: 20 दिन के उपचार के पूर्व एवं पश्चात प्रमुख रिपोर्ट

Table No. 9-2: Major reports before and after 20 days of treatment.
S. No.ParameterPrePostMedication statusसुधार एवं गिरावट
1HB12.913.0Stoppedसुधार
2WBC12.539.20Stoppedसुधार
3Chloride104106Stopped
4Eosinophil4.52.5Stoppedसुधार
5Sodium136145.7Stoppedसुधार
6Potassium3.84.8Stoppedसुधार
7Urea31.818.79Stoppedसुधार
8Uric acid6.64.9Stoppedसुधार
9Pus cells40-503-4Stoppedसुधार
10Creatinine1.92.5Stoppedगिरावट
11HbA1c8.68.6Insulin 13 unitसुधार
12GFR2929Stopped

20 दिन के बाद से आगे 6 माह तक के परिणाम:

तालिका क्रमांक 9-3 माह के उपचार के पूर्व एवं पश्चात प्रमुख रिपोर्ट 16-10-2021

Results after 20 days and up to 6 months:

Table No. 9-Main report before and after 3 months of treatment 16-10-2021
S. No.ParameterPre (After 20 days)Post (After 6 months)Medication statusसुधार एवं गिरावट
1HB12.913.1Stoppedसुधार
2WBC9.2010.35Stopped
3Chloride106104Stopped
4Eosinophil2.54Stoppedगिरावट
5Sodium145.7138Stoppedगिरावट
6Potassium4.84.2Stoppedगिरावट
7Urea18.7928.36Stoppedगिरावट
8Uric acid4.96.1Stoppedगिरावट
9Pus cells3-44-5Stoppedगिरावट
10Creatinine2.51.79Stoppedसुधार
11HbA1c8.67Insulin 2 unitसुधार
12GFR2935Stoppedसुधार

ग्राफ क्रमांक 3-

20 दिन के उपचार के पूर्व एवं पश्चात प्रमुख रिपोर्ट

Graph number 3-

Key reports before and after 20 days of treatment.

ग्राफ क्रमांक 4-

20 दिन के उपचार के पूर्व एवं पश्चात प्रमुख रिपोर्ट

Graph number 4-

Key reports before and after 20 days of treatment

रोगी (विषय) की मनः स्थिति सकारात्मक है

उपचार का उत्साह बना हुआ है।

आसन प्राणायाम की नियमितता बनी हुई है, परंतु प्रवास के कारण कभी-कभी योग छूट जाता है।

ताजा रसों के स्थान पर चूर्ण का उपयोग होता है।

कभी-कभी रसाहार उपचार छूट जाता है।

The subject's state of mind is positive.

She has an enthusiasm to have treatment.

The regularity of Asana Pranayama is maintained, but sometimes Yoga is missed due to travel.

Powder is used in place of fresh juices.

Sometimes Rasahara treatment is missed.

रोगी (विषय) का स्वकथन

Statement of the subject

Statement of the patient (subject) Reached Bhopal here on 16 March 2021. At that time she was taking a total of 15 pills 17 times and three insulins. Anxiety, BP both were increased. BP and sugar remained normal with medicines, but the medicines were very high.

16 मार्च 2021 को यहां भोपाल पहुंची। उस समय कुल 15 गोलियां 17 बार और तीन इंसुलिन ले रही थी। एंग्जाइटी बीपी दोनों बढ़ा हुआ था। दवाओं के साथ बीपी और शुगर नॉर्मल रहती थी, परंतु दवाइयां बहुत अधिक थीं। मैं पहले मूत्र की मात्रा बढ़ाने के लिए, पांव में सुन्नपन के लिए, एसिडिटी के लिए यूरिया एवं यूरिक एसिड अधिकता के लिए यूरिन इन्फेक्शन के लिए मूत्र मार्ग के शिथिलीकरण के लिए पिछले 2 वर्ष से दवाई ले रही थी। यह सभी दवाएं अब बंद कर दी गई हैं। 20 दिन के योग एवं रसाहार के उपचार के बाद मैं बहुत हल्कापन और आत्मविश्वास अनुभव कर रही हूं। अब मुझे शरीर में कहीं भी दर्द नहीं है। कुल मिलाकर बहुत सुख और शांति का अनुभव कर रही हूं। इससे पूर्व मैं आए दिन क्रोधित, बेचैन, असुरक्षित और अवसादग्रस्त हो जाया करती थी। मैं सभी उपचारकर्ताओं को बहुत धन्यवाद देती हूं।

Earlier, I was taking medicines for the last 2 years to increase the amount of urine, for numbness in feet, for acidity, for excess urea and uric acid, for urine infection, for relaxation of urinary tract. All these medicines have now been discontinued. After 20 days of yoga and Rasahara treatment, I am feeling very light and confident. Now I have no pain anywhere in my body. Overall, I am feeling very happy and peaceful. Before this, I used to become angry, restless, insecure and depressed every day. I am very thankful to all the healers.

निष्कर्ष (Conclusion)

अध्ययन के आधार पर यह माना जा सकता है कि मधुमेह रोगी को स्वयं का शर्करा नियंत्रण करने में तथा मधुमेह की अवस्था में अन्य संबद्ध रोगों के उपचार हेतु आयुर्वेदिक दिनचर्या पालन, आहार नियम घरेलू उपचार तथा रसाहार एक प्रभावशाली उपचार पद्धति है।

Conclusion

The study demonstrates that adherence to Ayurvedic routines, dietary rules, and juice therapy (Rasahara) can effectively manage diabetes and related complications. The case highlights the potential of traditional Indian medical practices in improving overall health and well-being

विचार विमर्श

रोगी जब रसाहार केन्द्र में आई तब उनकी मन: स्थिति अत्यंत असुरक्षा की थी। उन्हें हमेशा संदेह रहता था कि, न जाने किस खाद्य पदार्थ से उनकी कौन सी रिपोर्ट बिगड़ जाएगी। ऐसा अनुभूत हुआ कि, आयुर्वेदिक वनस्पतियों के रसाहार, आयुर्वेदिक दिनचर्या और घरेलू उपचार रोगी के लिए सहज समझने योग्य होते हैं, अतः वह खाद्य-अखाद्य का निर्णय स्वयं भी करने की योग्यता प्राप्त कर लेते हैं।

आयुर्वेद के अतिरिक्त किसी अन्य उपचार पद्धति में ऋतु अनुसार पथ्य अपथ्य का विचार नहीं किया जाता। साथ ही आदान काल एवं विसर्ग काल के अनुसार रोगी की जीवन शक्ति का भी विचार नहीं किया जाता। किसी भी रोग की दुरावस्था, विकृति, वृद्धि या कमी  का अध्ययन करते समय इस महत्वपूर्ण बिंदु को न देखते हुए उपचार चलता रहे तो रोगी तथा उपचारकर्ता का भी विश्वास उपचार पद्धति या औषधियों पर से डिग सकता है। विसर्ग काल में उपचार के परिणाम की धैर्य पूर्वक प्रतीक्षा करना एवं आदान काल में उपचार से शीघ्र लाभ होने पर अति प्रसन्न न होना दोनों बातें दूरगामी विचार का आधार है।

उपचारकर्ता द्वारा 17 वर्षों में यह अनुभव किया गया था कि, रासायनिक औषधियों से जांच रिपोर्ट तो सही आ सकती है, परंतु शरीर के आमवात या विजातीय द्रव्य कम नहीं हो सकते। रस शोधन क्रिया करते हैं, इस अध्ययन में भी यह बात सुनिश्चित हुई।

प्रारंभिक पूछताछ के आधार पर रोगी कफ तत्व की अधिकता के कारण निष्क्रियता से प्रभावित दिखाई दी। इसलिए कपालभाति भस्त्रिका नियमित करने पर अधिक ध्यान दिया गया, ताकि विकृत कफ का शोधन हो सके।

रात को देर तक नींद नहीं आना एवं अपने रोग का विचार करके तनाव होना यह स्थिति बदली है स्वयं विषय ने स्वीकार किया इसका संभावित कारण आवर्तन ध्यान एवं दिनभर की छुटपुट समस्याओं से मुक्ति है। जैसे मल मूत्र खुलकर आना शरीर में कहीं कहीं होने वाले दर्द से मुक्ति कमजोरी थकान सुस्ती आदि दूर होना इत्यादि।

Discussion

When the patient arrived, she was skeptical about dietary choices affecting her reports. Ayurvedic treatments, being simple to understand, empowered her to make informed food decisions. Unlike other treatments, Ayurveda considers seasonal changes and the body’s natural rhythms. It focuses on cleansing toxins, which chemical medicines often fail to achieve.

This study reaffirms that consistent yoga practice, proper dietary discipline, and juice therapy(Rasahara) can help patients achieve self-reliance and long-term health benefits.

Treatment Methodology

Treatment Plan

The patient was advised to stay at the juice therapy centre for at least 20 days. Upon arrival, routine and essential medical examinations were conducted. A day’s schedule was provided, which included regular yoga and pranayama practices. She was instructed to practice the same yoga she had been doing earlier but with regularity.

Specific Recommendations

  1. Yoga and Exercises: Regular yoga, including Kapalabhati (360 breaths), Surya Namaskar (2 cycles), and other asanas like Bhujangasana and Shavasana.
  2. Meditation: Cyclic meditation (Awartan Dhyan) was practiced twice daily for 35 minutes.
  3. Diet: Restricted diet included light meals without fried, sweet, or non-vegetarian foods. Dinner comprised a single grain with vegetables or soup.
  4. Juice Therapy: A detailed schedule of juices was implemented, including lemon water with honey, fresh juices from Giloy, Ashwagandha, and other medicinal plants.
  5. Lifestyle Changes: Sleeping and waking times were regulated, with emphasis on avoiding late nights and daytime naps.

Results

Within 20 days, the patient showed significant improvement:

  • Weight reduced from 76 kg to 74 kg.
  • Swelling and dryness of skin decreased.
  • Insulin dosage was reduced from 25 units to 13 units daily.
  • Blood sugar levels stabilized.

After six months of continued practice at home:

  • Hemoglobin increased from 12.9 to 13.1.
  • Uric acid levels dropped.
  • Creatinine levels improved from 2.5 to 1.79.
  • Stress levels significantly reduced, leading to better mental health and sleep.

17 गोलियां जो बंद की गई वह एवं उनके बंद करने के कारण:

17 tablets that were discontinued and the reasons for their discontinuation:

मूत्र प्रवाह बढ़ाने के लिए 2: जैसे मल मूत्र खुलकर आना शरीर में कहीं कहीं होने वाले दर्द से मुक्ति कमजोरी थकान सुस्ती आदि दूर होना इत्यादि।

To increase urine flow (2 Tablets): To release stool and urine freely, getting relief from pain occurring anywhere in the body, getting rid of weakness, fatigue, lethargy etc. Stress subjection to depression or insomnia.

तनाव अधीरता अवसाद या अनिद्रा के लिए 3: रात को देर तक नींद नहीं आना एवं अपने रोग का विचार करके तनाव होना यह स्थिति बदली है स्वयं विषय में स्वीकार किया इसका संभावित कारण आवर्तन ध्यान एवं दिनभर की छुटपुट समस्याओं से मुक्ति है।

For stress, impatience, depression or insomnia (3 Tablets): Previously subject was not being able to sleep till late at night and was getting stressed by thinking about her illness. This situation has changed. The subject herself admitted that the possible reason for this is the Avartana Dhyana (Cyclic meditation) to get relief from minor problems of the day.
अम्लता के लिए 1: रसों का सेवन एवं सादा भोजन लेते हुए अन्य सभी गोलियां बंद करने के बाद अम्लता होने की संभावना नहीं थी, अतः गोली की आवश्यकता नहीं।
For Acidity (1 Tablet): After stopping all other pills while consuming juices and eating simple food, there was no possibility of acidity, hence no need of pill.

गर्भाशय का आकार कम करने के लिए 1: अडूसा (36) ग्वारपाठा (37) गर्भ शोधन के रूप में तथा गिलोय (38) एंटीसेप्टिक एवं स्कैवेंजिंग गुण वाला होने के कारण गर्भाशय सूजन की संभावना नहीं दिखाई दी अतः इस गोली की आवश्यकता नहीं।

To reduce the size of the uterus (1 Tablet): Adusa (36), Alovera (37) as womb purification and Giloy (38) as having antiseptic and scavenging properties, there was no possibility of swelling of the uterus, hence there is no need for this pill.

डायबीटिक न्यूरोपैथी के लिए 1: मधुनाशक रस देते हुए शुगर नियंत्रण में आने की संभावना को देखते हुए इसकी आवश्यकता नहीं।

For Diabetic Neuropathy (1 Tablet): Subject has been given Madhunashaka Juice daily, so there was no possibility of increasing sugar and that’s why no need of this medicine.

डायबिटिक किडनी डैमेज के लिए 1: रस शोधन क्रिया करते हैं, इसलिए किडनी का बोझ कम होने की पूरी संभावना रहती है।

For Diabetic Kidney Damage (1 Tablet): Juices purify the body internally, hence there is every possibility of reducing the burden on the kidneys.

एंटीबायोटिक 1: गोलियां बंद करके रसों का सेवन शुरू करने पर यूरिन इन्फेक्शन की संभावना नहीं। हल्दी के एंटीबायोटिक गुण (39) के कारण इस गोली की आवश्यकता नहीं।

Antibiotic (1 Tablet): There is no possibility of urine infection if one stops taking pills and starts taking juices. There is no need for this pill due to the antibiotic properties of turmeric (39).

रक्तचाप (किडनी समस्या सहित) के लिए (1 Tablet): शोध अध्ययन बताते हैं कि, नियमित प्राणायाम एवं आवर्तन ध्यान से रक्तचाप बढ़ने की संभावना नहीं है। (40) अतः जिसके कारण किडनी पर होने वाले दुष्प्रभाव की संभावना भी नहीं रही और गोली की आवश्यकता भी नहीं रही।

For blood pressure (including kidney problems) (1 Tablet): Research studies show that regular pranayama and Avartana Dhyana can stop increasing blood pressure. (40) Hence, due to which there is no possibility of side effects on the kidneys and there is no need for the pill.

रक्तचाप के लिए 1: रक्तचाप बढ़ने की संभावना नहीं रही। गोली की आवश्यकता भी नहीं रही।

For blood pressure (1 Tablet): No increase in blood pressure. There was no need for the pill either.


मधुमेह एवं किडनी डैमेज के लिए 1: मधुनाशक रस देते हुए शुगर नियंत्रण में आने की संभावना को देखते हुए इसकी आवश्यकता नहीं।

For Diabetes and Kidney Damage (1 Tablet): There is full possibility of controlling sugar by giving Madhunashaka juice, so it is not required.

मूत्र की पीएच ठीक करने के लिए 1: उपचारकर्ता के पूर्व अनुभव बताते हैं कि नियमित रसाहार सेवन से मूत्र की पीएच सही रहती है।

To correct the pH of urine (1 Tablet): The previous experience of the Rasahara consultant shows that regular consumption of juice helps in maintaining correct pH of urine.

मूत्र निकासी के लिए 2: गिलोय रस का सेवन करते हुए इसकी आवश्यकता नहीं।

For urine evacuation (2 Tablets): No need while consuming Giloy juice.

सीने में जकड़न के लिए 1: मानसिक तनाव कम होने के बाद सीने में जकड़न की अनुभूति न होने के कारण इस गोली की आवश्यकता नहीं।

For chest Chest congestion (1 Tablet): This pill is not required as there is no feeling of chest congestion after mental stress is reduced.

पहले दिन 10 यूनिट इंसुलिन कम करने का कारण: रोगी रसाहार केंद्र में 24 घंटे निगरानी में थी। उपचारकर्ता के 17 वर्ष के अनुभव के आधार पर यह निर्णय लिया गया कि सुबह का नाश्ता नहीं देना है तो इंसुलिन भी नहीं देना है नाश्ते के स्थान पर रस देना है इसलिए इंसुलिन की मात्रा भी कम करनी है।

Reason for reducing insulin by 10 units on the first day: The subject was under 24-hour observation at Rasahara Centre. On the basis of 17 years of experience of the Rasahara consultant, it was decided that if breakfast is not to be given, then insulin is also not to be given, juice is to be given in place of breakfast, hence the amount of insulin also has to be reduced.

सोडियम बढ़ जाने का कारण: शारीरिक निष्क्रियता सोडियम कम होने का एक बड़ा कारण है। नियमित योग और रसों के सेवन से जीवन में आया उत्साह सोडियम बढ़ जाने का कारण हो सकता है।

Reason for increase in sodium: Physical inactivity is a major cause of low sodium. The enthusiasm in life brought by regular yoga and consumption of juices can be the reason for increase in sodium.

इलेक्ट्रोलाइट संतुलन: प्रथम 20 दिनों में पोटेशियम की मात्रा अवश्य बढ़ी है, परंतु आगे 6 माह बाद भी पोटैशियम सीमा से अधिक नहीं बढ़ा। यह इंगित करता है कि खाद्य पदार्थों में स्थित पोटेशियम शरीर में पोटेशियम की मात्रा को आवश्यकता से अधिक न बढ़ाते हुए मल मूत्र मार्ग से निकल जाता है।

Electrolyte balance: The amount of potassium definitely increased in the first 20 days, but even after 6 months the potassium did not increase beyond the limit. This indicates that the potassium in foods is eliminated through the feces and urine without increasing the amount of potassium in the body more than necessary.

उपचार हेतु उपयोग में लाई गई वनस्पतियों के वैज्ञानिक तथा सामान्य नाम (Scientific and common names of herbs used for treatment)

Hindi Name of Herb Deva NagariCommon Name of Herb Latin ScriptBotanical Name of Herb Dose
अमलतासAmaltasCassia fistula50 ml from 25gm Wheatgrass
आँवला AmlaEmblica Officinalis Gaertn50ml, 8 gm. powder
अडूसाAdusaAdhatoda Vasica50 ml from 10 leaves with wt. 4 gm
गिलोयGiloyeTinospora Cordifolia50 ml from 15 gm vine
भुई आँवलाBhui AmlaPhyllanthus Niruri50 ml. from 6 gm or 5 plants
अपामार्गApamargaAchyranthes Aspera50 ml. from 6 gm part of plant
गोखरूGokhruTribulus Terrestris50 ml. from 6 gm part of plant
पुनर्नवाPunarnavaBoerhavia Diffusa50 ml. from 6 gm part of plant
ग्वारपाठाAloe VeraBarbadensis Mill.50 ml. pulp of leaf
गुड़मारGudmarGymnema Sylvestris50 ml. from 4 gm leaves
बेलपत्रBelpatraAegle Marmelos50 ml. from 4 gm leaves
तुलसी TulsiOcimum Tenuiflorum50 ml. from 4 gm leaves
मीठी नीमMeethi NeemMurraya koenigii50 ml. from 4 gm leaves
हल्दीHaldiCurcuma Longa25 ml juice of 50 gm fresh root

सन्दर्भ

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सात्विक आहार- रसाहार (Satvik Aahar – Rasahara)

Thinking of using Rasahara for the treatment of diseases is also its lowest use. It yields results that go far beyond treatment. रसाहार का उपयोग रोगों के उपचार के लिए करने की सोचना भी उसका निम्नतम उपयोग है। यह उपचार से कहीं आगे के फल देता है।

पैथोलॉजिकल जांच- एक अंतर्दृष्टि (Pathological examination- an insight)

पैथोलॉजिकल जांच- एक अंतर्दृष्टि (Pathological examination- an insight)

आजकल के भौतिक युग में जहां जीवन मूल्यों का ह्रास हुआ है, वहीं स्वावलंबी बनने की इच्छा का विकास भी हुआ है। कारण सहज है। बाजारवाद के कारण कोई वस्तु बेचने में नैतिकता का ध्यान नहीं रखा जाता। पैथोलॉजी का क्षेत्र भी उससे अलग नहीं है। सारा पैथोलॉजी व्यवसाय अपनी उन्नति के लिए डॉक्टरों, अस्पतालों और प्रिसक्रिप्शन पर निर्भर होने लगा है, इस बात से संसार का कोई व्यक्ति अनभिज्ञ नहीं है। फिर भी पैथोलॉजी के क्षेत्र में विज्ञान ने इतनी उन्नति की है कि, विभिन्न जांच प्रक्रियाओं और उपकरणों के माध्यम से रोग की पूर्व अवस्था में ही हमें रोग की जानकारी मिल जाती है। जिसका लाभ उपचार में निश्चित ही मिलता है। यहां इस बात से नकारा नहीं जा सकता कि, यह काम पहले अनुभवी नाड़ी वैद्य किया करते थे, जो अब उंगलियों पर गिनने लायक ही बचे हैं। संसार का चक्र ही ऐसा है कि, चीजें समाप्त होती और नयी बनती जाती हैं। हमारे पास आज भी आयुर्वेदिक ग्रंथ उपलब्ध हैं, जिन्हें पढ़ कर समझ कर स्वयं के शरीर की स्थिति जानी जा सकती है। निःसंदेह आधुनिक चिकित्सा विज्ञान और आयुर्वेद का आपसी समन्वय आवश्यक है, जो जमीनी स्तर पर अभी नहीं हो पा रहा है। फिर भी प्रत्येक मानव शरीरधारी यदि इसकी समझ रखे, तो पैथोलॉजी क्षेत्र में हुई प्रगति एवं आयुर्वेद का गहन ज्ञान दोनों का लाभ उठा सकता है, स्वयं की शारीरिक स्थिति समझ भी सकता है।

आयुर्वेद में ऋतु अनुसार होने वाले शारीरिक परिवर्तनों की जानकारी बड़े विस्तार से दी जाती है। किस ऋतु में शरीर के कौन से अंग पर क्या प्रभाव पड़ता है, कब वह सक्रिय होते हैं, कब रोग ग्रस्त होते हैं, कब निष्क्रिय होते हैं, इत्यादि सब कुछ विस्तार से आयुर्वेद में बताया गया है। तदनुसार वर्ष के 6 महीने आदान काल के होते हैं, जिसमें स्वास्थ्य में निरंतर गिरावट होती है- माघ फाल्गुन चैत्र वैशाख जेष्ठ आषाढ़। बाद के 6 माह उत्तम स्वास्थ्य होते जाने के रहते हैं, श्रावण भाद्रपद अश्विन कार्तिक मार्गशीर्ष और पौष। परंतु सामान्य व्यक्ति को उसमें संदेह तब पनपता है, जब बरसात और उसके बाद होने वाली उमस वाली गर्मी में रोग अधिक होते हैं।

वास्तव में सावन में जब पानी धरती पर पड़ता है, तब शरीर का वात विकृत होने लगता है और वात रोग बढ़ाते हैं इसलिए सावन भादो, दो माह वात रोग बढ़ने के होते हैं। वात विकृति नाभी और उसके नीचे के अंगों को अर्थात हमारे पाचन तंत्र, किडनी तथा स्त्री पुरुष के जनन अंगों को प्रभावित करती है। इसके अतिरिक्त शरीर के सूक्ष्म तत्वों की कमी, दंत रोग, स्नायु तंत्र के रोग अर्थात हार्मोनल गड़बड़ियां, पार्किंसन, स्मरण शक्ति का ह्रास या किसी ऑटोइम्यून डिसऑर्डर का कारण भी वात विकृति है। क्योंकि वात विकृत होने से मनुष्य अधीर हो जाता है और अधीर होने से यह सब होता है। इसलिए सावन भादो में सबसे अधिक रोग होते हैं। उसके बाद कुँआर कार्तिक अर्थात शरद् ऋतु में पित्त रोग अर्थात लीवर, हृदय, गॉलब्लैडर, स्प्लीन, रक्त, त्वचा, आंखों आदि से संबंधित रोग होते हैं। इसी प्रकार वसंत ऋतु में कफ रोग अर्थात सर्दी खांसी मोटापा अस्थमा इत्यादि रोग हो सकते हैं।

इसके अतिरिक्त एक पक्ष यह भी है कि, आदान काल का अंत और विसर्ग काल की शुरुआत अर्थात आषाढ़ और सावन शरीर की सबसे कमजोर जीवन शक्ति के दो माह हैं। यदि ध्यान से समझा जाए तो इन्हीं दो माहों में हमारा सबसे अधिक स्वास्थ्य का नुकसान होने की संभावना है। भले ही जेष्ठ और आषाढ़ में हो चुका नुकसान सावन भादो और कुँआर कार्तिक में प्रकट होगा। इसीलिए कहा जाता है कि, हम दिनचर्या और खान-पान की गलतियां करते हैं, उसके तीन माह बाद उसके परिणाम हमें दिखाई देते हैं।

हमें स्वास्थ्य के मामले में स्वावलंबी बनना है तो इन सब बातों को ध्यान से समझ कर, याद रखकर, अपनी अंतर्दृष्टि विकसित करनी होगी। उदाहरण के लिए वसंत ऋतु के पूर्व हम अपने फेफड़े का एक्स-रे करके उसमें कुछ गड़बड़ियां हो तो उसे ठीक कर ले तो वसंत ऋतु में हम सर्दी खांसी से बच सकते हैं इसी प्रकार सावन से पहले सभी सूक्ष्म तत्वों की जांच हो जाए प्रोस्टेट, गर्भाशय इत्यादि की जांच हो जाए तो इनमें होने वाली समस्याएं पता चल सकती हैं। यदि शरद् ऋतु अर्थात कुँआर से पहले लीवर, गॉलब्लैडर, स्प्लीन, हृदय, रक्त आदि की जांच हो जाए तो उनके संभावित रोगों से बचाव का प्रयत्न भी शुरू किया जा सकता है।

एक बात यह भी ध्यान देने योग्य है कि, यदि सावन भादो कुँआर और कार्तिक में ही अधिक रोग होते हैं, यह पहले से पता हो तो उसके बाद रोग ठीक भी होने वाले हैं, यह भी समझ विकसित करनी होगी। तब हड़बड़ाहट में कोई ऑपरेशन कर डालना, कोई गोलियां खाना शुरू कर देना और जीवन भर उसी में फँसते चले जाना, इन दुर्घटनाओं से भी स्वयं को बचाया जा सकता है।

इसे एक उदाहरण से समझने का प्रयास करें मान लीजिए सावन शुरू होते ही आपको दांतों की तकलीफ शुरू हो जाती है। कभी यह मसूढ़ा सूजा, तो कभी उधर से रक्त, तो कभी इधर पस, तो कभी उधर दर्द, इन सबसे परेशान होकर आप रूट केनॉल करवा लेते हैं। आप अब सभी दर्दों से मुक्त हैं लेकिन आपको यह पता नहीं है कि कि दांत के रूट में कब इन्फेक्शन होगा क्योंकि इंफेक्शन होने पर दर्द तो आपको होगा नहीं; तो निश्चित ही अगले सावन में आपको इंफेक्शन हुआ तो पता नहीं चलेगा। पता तब चलेगा जब रूट कैनाल में काट दिए गए स्नायु के अतिरिक्त अन्य स्नायुओं को उसके अनुभूति होगी। तब तक दांत निकाल देने की स्थिति बन जाएगी। यदि पहले सावन में ही पता रहे कि, हमें दांतों की समस्या हो सकती है, तो पहले ही जांच करके मंजन आदि से उसकी सुरक्षा पहले से ही करना शुरू कर दें। रूट केनॉल या दांत निकालने की हड़बड़ी न करें। इसके विपरीत यदि मार्गशीर्ष माह में दांतों में तकलीफ है, तो वास्तव में दांत निकालना या किसी बड़े उपचार की आवश्यकता है। क्योंकि यह तो दांतों के अच्छे स्वास्थ्य की ऋतु है, फिर भी आपको दांतों का कष्ट हो रहा है।

एक अन्य उदाहरण से समझते हैं- मान लीजिए सावन में आपके सीने में दर्द हुआ यदि आपके अंतर्दृष्टि है, तो आपको ध्यान में आएगा कि पाचन तंत्र की कमजोरी से गैस बन रही है। वह डायफ्राम को ऊपर धकेल रही है, इसके कारण हृदय गुहा छोटी होने के कारण हृदय शूल हो रहा है, इसलिए पहले पाचन तंत्र की ओर ध्यान दें, गैस का उपचार करके देखें। इसके विपरीत यदि शरद् ऋतु में हृदय शूल हुआ तो पहले शीघ्र हृदय संबंधी जांच ही करना अनिवार्य है।    

हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए की स्वस्थ अवस्था में भी नियमित पैथोलॉजिकल जांचों की आवश्यकता होती है। विशेष कर 50 वर्ष की आयु के बाद हमें नियमित कौन-कौन सी जांच में करना चाहिए यह समझ भी हमें होनी चाहिए। इस हेतु सबसे पहले तो यह देखें कि आपके परिवार में माता-पिता को कौन-कौन से रोग हुए हैं। जैसे यदि उन्हें डायबीटीज है तो वसंत ऋतु और वर्षा ऋतु के पूर्व hba1c जांच करना उचित होगा। क्योंकि वर्षा ऋतु में सेल रेजिस्टेंस अधिक होने के कारण और शीत ऋतु के अंत में कफ की अधिकता के कारण उसमें विकृति हो सकती है और शुगर बढ़ सकती है। इसी प्रकार परिवार में हृदय रोग है, तो शरद् ऋतु के पूर्व लिपिड प्रोफाइल ईसीजी इत्यादि कर लेना उचित होगा। यदि परिवार में ऑस्टियोपोरोसिस के रोग हैं, तो नियमित रूप से हड्डियों की सघनता जांचते रहना चाहिए। यदि स्नायु तंत्र के रोग हैं, तो आपके हाथों और पैरों की उंगलियों तक सही रक्त संचार और गरम ठंडा स्पर्श, दर्द, जलन, आदि के अनुभूति है या नहीं इस और हमेशा ध्यान देना चाहिए। यदि आपकी दिनचर्या में कोई गड़बड़ी है, जैसे यदि आप दोपहर भोजन देर से करते हैं, तो आपको शरद ऋतु में अल्ट्रासाउंड करके लीवर, गॉलब्लैडर, स्प्लीन आदि की जाँच करना, लिपिड प्रोफाइल अति आवश्यक है।

यदि अधिक सिगरेट की आदत है तो वसंत ऋतु के पूर्व फेफड़ों की जांच अवश्य होनी चाहिए। यदि मद्यपान की आदत है तब भी लीवर की जांचें प्रतिवर्ष शरद् ऋतु से पूर्व नियमित होनी चाहिए। यदि आपकी नींद कम हो पाती है तो थायराइड की जांच सावन से पहले आवश्यक है।

संसार में हजारों लाखों रोग और हजारों पैथोलॉजिकल टेस्ट हैं। यहां पर सभी का विस्तार से वर्णन नहीं किया जा सकता। आवश्यक यह है कि, सभी अपनी अंतर्दृष्टि इस प्रकार विकसित करें कि अपनी-अपनी प्रकृति, परिवार, परिवेश और दिनचर्या के अनुसार कौन सी जांच कब करनी चाहिए, यह सीख समझ लें। यदि कुछ भी संभव नहीं है, तो 40 वर्ष की आयु के बाद प्रत्येक आषाढ़ या श्रावण माह में अपने शरीर की सारी जांच अवश्य कर लेनी चाहिए।

In today’s materialistic age, where the values ​​of life have declined, the desire to be self-reliant has also developed. The reason is simple. Due to commercialism, no one pays attention to ethics while selling any product. The field of pathology is also no different from it. No one in the world is unaware of the fact that the entire pathology business has started to depend on doctors, hospitals and prescriptions for its growth. Still, science has made so much progress in the field of pathology that, through various investigation procedures and equipment, we get to know about the disease in its pre-disease stage itself. Which is definitely beneficial in treatment. Here it cannot be denied that, earlier this work used to be done by experienced Nadi Vaidya (An Ayurveda doctor who can understand the disease by sensing pulses of an patient), who are now very few in number. The cycle of the world is such that, things end and new ones are created. Even today we have Ayurvedic texts available, by reading and understanding which, one can know the condition of one’s own body. Undoubtedly, mutual coordination between modern medical science and Ayurveda is necessary, which is not happening at the ground level right now. Still, if every human being understands this, then he can take advantage of both the progress made in the field of pathology and the deep knowledge of Ayurveda, and can also understand his own physical condition.

In Ayurveda, information about the physical changes that occur according to the seasons is given in great detail. What effect does which season have on which part of the body, when do they become active, when do they get sick, when do they become inactive, etc., everything has been explained in detail in Ayurveda. Accordingly, 6 months of the year are of Aadan Kaala, in which there is a continuous decline in health – Magh, Phalgun, Chaitra, Vaishakha, Jestha, Aashadha. The next 6 months are of good health, Shravan, Bhadrapada, Ashwin, Kartik, Margashirsha and Pausha. But a common man gets suspicious when there are more diseases in the rainy season and the humid summer that follows. Actually, when water falls on the ground in Sawan, that is rainy season,

 the Vata of the body starts getting vitiated and increases Vata diseases, therefore, Sawan Bhado (Rainy season) are the two months when Vata diseases increase. Vata vitiation affects the navel and the organs below it, i.e. our digestive system, kidneys and reproductive organs of men and women. Apart from this, deficiency of micro elements in the body, dental diseases, diseases of the nervous system, i.e. hormonal disorders, Parkinson’s, loss of memory or any autoimmune disorder is also caused by Vata vitiation. Because due to vitiation of Vata, a person becomes impatient and all this happens due to impatience. Therefore, the maximum number of diseases occur in Sawan Bhado. After that, in Kunwar Kartik i.e. Sharad Ritu (Autumn), there are Pitta diseases, i.e. diseases related to liver, heart, gallbladder, spleen, blood, skin, eyes etc. Similarly, in Vasant ritu (Spring), there can be Kapha diseases, i.e. cold, cough, obesity, asthma etc. Apart from this, there is another aspect that the end of Aadan Kaala and the beginning of Visarg Kaala i.e. Ashadha (The end of summer) and Sawan (Starting of rainy season) are the two months when the body has the weakest life force. If understood carefully, then the maximum damage to our health is likely to happen in these two months. Even if the damage done in Jyestha and Ashadh (Summers) will appear in Sawan-Bhado (Rainy season) and Kunwar-Kartik (Autumn). That is why it is said that we make mistakes in our daily routine and food habits, its results are visible to us after three months.

If we want to become self-reliant in matters of health, then we will have to develop our insight by understanding and remembering all these things carefully. For example, before the spring season, if we get our lungs X-rayed and if there are some problems in it, then we can avoid cold and cough in the spring season. Similarly, before Sawan, if all the micro elements are checked, prostate, uterus etc. are checked, then the problems occurring in them can be known. If the liver, gallbladder, spleen, heart, blood etc. are checked before Sharad Ritu i.e. Kwar-Kartika, then efforts can be made to prevent their possible diseases.

One thing is also worth noting that, if it is known in advance that more diseases occur in Sawan, Bhado, Kwar and Kartika, then one has to develop the understanding that the diseases will also be cured after that. Then one can save oneself from Health disaster like getting an operation done in a hurry, starting to take some pills and getting stuck in it for the whole life.

Try to understand this with an example, suppose you start having a toothache as soon as Sawan starts. Sometimes this gum is swollen, sometimes there is blood from there, sometimes pus here, sometimes pain there, troubled by all this you get a root canal done. Now you are free from all the pains but you do not know when the root of the tooth will get infected because you will not feel pain when there is an infection; So certainly, if you get an infection in the next Sawan, you will not know. You will know only when other nerves, apart from the nerves cut in the root canal, will feel it. By then, the situation will arise that you should remove the tooth. If you know in the first Sawan itself that you may have a dental problem, then start taking care of it by checking it beforehand with any medicated toothpowder etc. Do not rush for root canal or tooth extraction. On the contrary, if there is a problem in the teeth in the month of Margashirsha (Mid winters), then in reality, the tooth needs to be removed or some major treatment is required. Because this is the season of good dental health, still you are having a toothache.

Let us understand with another example- Suppose you have chest pain in the month of Sawan. If you have an insight, then you will realize that gas is being formed due to weakness of digestive system. It is pushing the diaphragm upwards, due to which heart pain is occurring due to reduced thoracic cavity. So first pay attention to digestive system, try treating gas. On the contrary, if heart pain occurs in Sharad Ritu, then it is necessary to do cardiac checkup immediately.

We should also not forget that regular pathological tests are required even in healthy condition. Especially after the age of 50, we should also understand which tests we should do regularly. For this, first of all see which diseases you get from your parents. For example, if they have diabetes, then it would be appropriate to do HbA1c test before spring and rainy season. Because due to high cell resistance in rainy season and excess of Kapha at the end of winter season, deformity can occur and sugar can increase. Similarly, if there is heart disease in the family, then it would be appropriate to get lipid profile ECG etc. done before autumn season. If there are diseases of osteoporosis in the family, then bone density should be checked regularly. If there are diseases of the nervous system, then you should always pay attention to whether there is proper blood circulation to the fingers of your hands and feet and whether there is sensation of hot cold touch, pain, burning, etc. or not. If there is any problem in your daily routine, like if you have lunch late, then it is very important to check the liver, gallbladder, spleen etc. by doing ultrasound in autumn, lipid profile.

If there is a habit of smoking more cigarettes, then lungs must be checked before spring season. If there is a habit of taking alcohol, then also liver tests should be done regularly every year before autumn season. If you are not able to sleep properly then thyroid test is necessary before Sawan.

There are thousands of diseases and thousands of pathological tests in the world. All of them cannot be described in detail here. It is necessary that everyone develops their insight in such a way that they learn and understand which test should be done when according to their nature, family, environment and routine. If nothing is possible then after the age of 40, one must get all the tests of his body done in every Ashadha or Shravana month.

वर्षा ऋतु में एलोपैथिक दवाइयां से बचने के उपाय (Ways to avoid allopathic medicines in rainy season)-

Say no to drugs.

भीषण गर्मी में होने वाले रोग और उनके सुरक्षा उपाय

भीषण गर्मी में होने वाले रोग और उनके सुरक्षा उपाय

ग्रीष्म ऋतु में होने वाले कुछ ऐसे रोग हैं जो तीव्र रोगों की श्रेणी में आते हैं। तीव्र रोग ऐसे रोगों को कहते हैं, जो तेजी से उभरते हैं और सही उपचार मिलने पर जल्दी से ठीक भी हो जाते हैं। ऐसे रोगों का सही उपचार न हो और उन्हें दबा दिया जाए तो वह विकृत होकर नए रोग का रूप धारण कर लेते हैं। इसलिए ऐसे रोगों को घरेलू उपचार से ठीक करना अधिक लाभदायक होता है।

ग्रीष्म ऋतु के कुछ तीव्र रोग एवं उनके घरेलू उपचार इस प्रकार हैं-

लू लगना- सर्वांग मिट्टी लेप करें, बेलफल का रस नींबू गुड पानी लें, कच्ची प्याज का सेवन करें, हाथों और पैरों के तलवों पर मेहंदी लगाएँ, गुलाब, तुलसी बीज, नारियल पानी, खरबूज, तरबूज, मौसंबी, कोकम शरबत आदि का अधिक सेवन करें, नियमित फलामृत का सेवन करें। ग्रीष्म ऋतु का फलामृत नारियल दूध में खरबूज, तरबूज, आम केला, चीकू इत्यादि फलों को मिलाकर बनाया जाता है। खाली पेट गन्ने का रस लें।

घमोरियाँ- कैरी को उबालकर उसके गूदे को पूरे शरीर पर रगड़कर स्नान करें, सर्वांग मिट्टी लेप करें, राल मलहम लगाएँ, बेलफल, नारियल दूध तुलसी बीज, आँवला, गिलोय, आदि रसों का सेवन करें।

आंखों में सूजन आना, पानी बहना, आंखें लाल हो जाना, जलन होना- आंखों पर जादू मिट्टी की लोई रखना अत्यंत लाभदायक होता है। लोई बनाने हेतु पानी के स्थान पर ग्वारपाठा रस का उपयोग किया जाए तो वह और भी अधिक लाभदायक है। गेहूं के जवारे का रस आंखों में डालने से भी उसके एंटीबायोटिक प्रभाव के कारण आंखें साफ हो जाती हैं और सूजन, कीचड़ या पानी बहने में आराम मिल जाता है।

सरद गरम होने के कारण होने वाला जुकाम- यदि बहुत नाक बह रही है, छींकें, आंखों, नाक और कान की खुजली होती हो तो अदरक का रस बराबरी से शहद मिलाकर प्रति 1 घंटे में एक-एक चम्मच लेते रहें। अनार रस काली मिर्च शहर से नमक डालकर लें।

गला दर्द- काली मिर्च और सेंधा नमक बराबरी से मिलाकर थोड़ी-थोड़ी देर में चाटते रहें। अडुसा गिलोय रस का सेवन करें, अनार रस काली मिर्च सेंधा नमक और शहद डालकर लें।

दस्त/ आँव- नींबू गुड पानी, बेल फल रस खाली पेट लें।

अधिक धूप लगने के कारण आने वाला ज्वर- कच्ची प्याज का अधिक सेवन करें और पूरे समय अपने पास रखें, गेहूं के जवारे, गिलोए, नागर मोथा का रस, नारियल दूध तुलसी बीज का रस सेवन करें, कैरी का पन्हा सेंधा नमक गुड और काली मिर्च डालकर पिएँ, कोकम शरबत का नियमित सेवन करें। सर्वांग मिट्टी लेप करें। इस हेतु जादू मिट्टी अपने पास उपलब्ध है।

नाक से रक्त आना- रोगी को पीठ के बल लेट कर सर बिस्तर से नीचे लटका दें और प्याज सुँघाएं।

गेहूं के जवारे आंवला और गिलोय रस, नारियल दूध कोकम रस नियमित दें।

बेलफल- एक चमत्कारी फल (Wood apple- a miraculous fruit)

वसंत ऋतु में बेल फल का मौसम होता है। यह मुश्किल से दो माह रहता है। जिन्हें बेल फल का सेवन करना है, वह स्वयं बेल फल का रस प्रतिदिन ले सकते हैं।
बेलफल का रस पेट की सभी समस्याओं के लिए एक उत्कृष्ट पाचन टॉनिक है। यह टैनिन से भरपूर है, जिसमें एंटी-बैक्टीरियल और एंटी-फंगल गुण होते हैं, जो इसे अपच और दस्त तथा कोलाइटिस की स्थिति में सेवन के लिए आदर्श बनाते हैं। इसमें फाइबर प्रचुर मात्रा में होता है, जो मल त्याग को सुचारू बनाने में सहायता करता है। ग्रीष्म ऋतु में जब पाचन क्रिया कमजोर हो जाती है, तो बेल का रस अपने वातहर गुण के कारण पाचन शक्ति सुधारता है। यह थकान दूर करता है और शरीर को ठंडक पहुंचाने में सहायता करता है।
भोपाल के सभी रसाहार केंन्द्रों में बेलफल की ऋतु में बेल फल का ताजा रस मिलता ही है, परंतु सामान्य जन के लिये सहज सम्भव प्रयोग ही अधिक प्रचलित होते हैं, अतः बेलफल के कुछ महत्वपूर्ण उपयोग नीचे दिए जा रहे हैं-
 बेल फल को पका हुआ तथा कच्चा दोनों रूपों में प्रयोग में लाया जाता है इन दोनों के प्रभाव अलग-अलग हैं। कुछ लोगों का मानना है कि बेलफल का गूदा बवासीर पैदा करता है, कुछ अंश में यह बात ठीक भी है परन्तु पका हुआ बेल का गूदा गुड़ या खांडसारी मिला कर शर्बत बना कर पीने से मल को ढीला करके पेट को साफ करता है तथा बवासीर को नष्ट कर देता है।
 बेल फल के गूदे का ताजा रस रक्त विकारों को दूर करके रक्त को शुध्द करता है।
 पके फल के गूदे को सूखा कर महीन चूर्ण बना कर रखें। थोड़ी मात्रा में इसका नित्य सेवन करने से शरीर पुष्ट होता है तथा दन्त रोग एवं आमाशय रोगों में वृध्दि नहीं हो पाती।
 आँव अर्थात संग्रहणी या कोलायटिस, विषेषकर रक्ति आँव, जिसमें भोजन करते ही मल त्याग करना पड़ता हो, पेट में मरोड़ के साथ मल अत्यन्त दुर्गन्धयुक्त, चिकना व रक्त के साथ आता हो तो पके हुए बेल का रस लेना अत्यन्त लाभकारी होता है।

आरोग्य योग एवं रसाहार शोध समिति द्वारा संचालित भोपाल के 6 रसाहार केंद्र-

आरोग्य रसाहार केंद्र- 286, 2 ए साकेत नगर, एम्स के पास, 9407515424, 8871112770

पमल रसाहार केंद्र- ए -39 आदर्श नगर, नहर के पास होशंगाबाद रोड, 7000856753

सरस्वती रसाहार केंद्र- H-12, मिनाल एन्क्लेव गुलमोहर, 8458955791, 8305423772

अमृत रसाहार केन्द्र- एम 139 ESSRG पूर्वांचल फेस 2 खजूरी कलां भोपाल, 9981424596

सजीव रसाहार केंद्र- जूनियर MIG, D-265, कोपल स्कूल के पास नेहरू नगर 8435733246

श्री सद्गुरु रसाहार केंद्र- 22 फेथकला एंपायर, मानसरोवर डेंटल कॉलेज के आगे कोलार 7489728625

Spring is the season of wood apple or Belphal. It lasts barely two months. Those who want to consume bael fruit can themselves take Bel fruit juice daily.
Belphal juice is an excellent digestive tonic for all stomach problems. It is rich in tannins, which have anti-bacterial and anti-fungal properties, making it ideal for consumption in case of indigestion and diarrhea and colitis. It is rich in fiber, which helps in smooth bowel movements. In summer, when the digestive system becomes weak, wood apple juice improves digestion due to its carminative properties. It removes fatigue and helps in cooling the body.
In all the Rasahara centers of Bhopal, fresh juice of Belphal is available in the season of Belphal, but for the general public only the easy possible uses are more popular, hence some important uses of Belphal are given below –
 Bael fruit is used in both ripe and raw forms, the effects of both are different. Although it can be given any time throughout the day, but some people believe that Bael fruit is more beneficial in colitis if taken on an empty stomach and is more beneficial in constipation if taken after meals.
Some people believe that the pulp of Belphal causes piles, to some extent this is true, but drinking ripe Belphal pulp mixed with jaggery or khandsari to make sherbet loosens the stool and cleans the stomach and cures piles.
 Fresh juice of the pulp of Bael fruit purifies the blood by removing blood disorders.
 Dry the pulp of ripe fruit and make a fine powder. Consuming it regularly in small quantities strengthens the body and prevents the increase in dental and stomach diseases.
 Colitis, especially in which one has to defecate immediately after eating food, the stool is very foul-smelling, greasy and comes with blood along with stomach cramps, then taking the juice of ripe wood apple is very beneficial.

6 Rasahara centers of Bhopal run by Arogya Yoga and Rasahara Shodh Samiti

Arogya Rasahara Kendra- 286, 2A Saket Nagar, Near AIIMS, 9407515424, 8871112770

Pamal Rasahara Center- A-39 Adarsh ​​Nagar, Near Canal Hoshangabad Road, 7000856753

Saraswati Rasahara Kendra- H-12, Minal Enclave Gulmohar, 8458955791, 8305423772

Amrit Rasahara Kendra- M 139 ESSRG Purvanchal Phase 2 Khajuri Kalan Bhopal, 9981424596

Sajeev Rasahara Center- Junior MIG, D-265, Near Kopal School Nehru Nagar 8435733246

Shri Sadhguru Rasahara Kendra- 22 Faithkala Empire, Next to Mansarovar Dental College Kolar 7489728625

🌷चैत्र शुक्ल प्रतिपदा नव वर्ष की आपको हार्दिक शुभकामनाएं 🌷

🌷चैत्र शुक्ल प्रतिपदा नव वर्ष की आपको हार्दिक शुभकामनाएं 🌷

Happy New Year (Chaitra Shukla Pratipada) to you

वर्ष की दोनों नवरात्र पर उपवास का बहुत अधिक महत्व है। ऋतु का शरीर पर प्रभाव भी अलग-अलग होता है, इसलिए ऋतु अनुसार दोनों नवरात्र में अलग-अलग प्रकार के उपवास किए जाते हैं।
उपवास अर्थात निकट जाकर रहना। अर्थात ईश्वर के निकट अधिक से अधिक रहने का प्रयास करना। प्रत्येक जीवात्मा ईश्वर का अंश होने के कारण वह ईश्वर के अधिक से अधिक निकट होने पर ही अधिक सुखी होता है। सांसारिक संताप से हटकर ईश्वर के निकट रहने का सर्वोत्तम अवसर यही दो नवरात्र हैं। इनका अधिक से अधिक लाभ उठाएं।

इस नवरात्र पर आप ऐसा उपवास कर सकते हैं-
प्रातः सबसे पहले आपको नींबू पानी शहद सेंधा नमक लेना चाहिए।
प्रतिदिन नियमित योग करें।
उसके बाद यदि आप प्रतिदिन आपकी प्रकृति के अनुसार आपको बताया गया रस लेते हैं तो वह लें।

नहीं तो किसी विटामिन सी युक्त फल का रस जैसे मौसम्बी, संतरा इत्यादि लेना है।
आधे घंटे बाद फलामृत लेना चाहिए, इसके लिए 50 ग्राम ताजा नारियल को एक कप पानी में पीसकर छानकर उसमें ऋतु अनुसार अभी मिलने वाले 150 ग्राम फल डालें।
दोपहर भोजन के स्थान पर अनार रस
सायंकाल भोजन के स्थान पर बेलफल का रस लें।

इसमें से जो आप नहीं बना सकते, यदि आप भोपाल में है तो हमें सूचित कीजिए, हम आपके निकटवर्ती रसाहार केंद्र से बनाकर आपको भेज सकते हैं।

हो सके तो स्नान के पूर्व आधा घंटा सर्वांग मिट्टी लेप करें। सर्वांग मिट्टी लेप हेतु कोई भी साफ सुथरी मिट्टी को पानी में भिगोकर उसका गाढ़ा घोल बनाकर बारीक छलनी से छान कर उपयोग करें या जादू मिट्टी हमारी वेबसाइट rasahara.com पर उपलब्ध है, उसका उपयोग करें।

धूप, तनाव, विवाद और अधिक श्रम से बचें। अधिक से अधिक ईश्वर प्रणिधान हो।

अभी अपना वजन कीजिए और 9 दिन बाद भी कीजिए।

जो भी वजन कम होगा वह शरीर का कचरा ही साफ होगा।

मजे की बात है कि एक बूंद भी पसीना बहा बिना यह होगा। 🙂🙂

फलामृत (Falamrut)

फलामृत बनाने की विधि:
50 ग्राम नारियल की गिरी 100 मिली पानी डालकर पीसकर छान लें। अब आपका नारियल दूध तैयार है।

अब कोई भी तीन प्रकार के फल जो गूदेदार हों, उस ऋतु में मिलते हों और बढ़िया पके हुए हों, उन्हें छीलकर साफ करके टुकड़े करके थोड़ा पीस लें, नारियल दूध में मिलाएँ। आपका फलामृत तैयार है। इसमें स्वाद अनुसार मिश्री या मेवे डाले जा सकते हैं। इसे बिना फ्रिज के गर्मी में भी चार घंटे आराम से रखा जा सकता है।
भोपाल के सभी छः रसाहार केन्द्रों में यह उपलब्ध है। रसाहार कार्यकर्ता इसे आपके घर पर लाकर भी दे सकते हैं।

इसे रस पीने के पहले या बाद में कभी भी ले सकते हैं।
आजकल जो स्मूदी का चलन है, वह दूध में फलों को पीसकर बनाई जाती है। आयुर्वेद के अनुसार दूध और फलों का संयोग नहीं होना चाहिए, साथ ही प्रातः काल दूध नहीं लिया जाना चाहिए। इस दृष्टि से फलामृत सर्वश्रेष्ठ है, क्योंकि इसमें फल पर्याप्त मात्रा में मिल जाते हैं और दूध के स्थान पर नारियल दूध का प्रयोग होता है। नारियल दूध के अपने लाभ हैं। यह शरीर में रक्त की कमी को दूर करता है, त्वचा आंखों और बालों के लिए पोषक है। इसमें सेलेनियम है जो मन को प्रसन्न रखता है। इसमें जीरो फैट और कोलेस्ट्रॉल है, इसलिए इसे लेने से वजन भी नहीं बढ़ता। हृदय को भी यह सुरक्षित और स्वस्थ बनाए रखता है।
इसे बच्चे युवा वृद्ध सभी ले सकते हैं रसाहार केन्द्रों में इसका मूल्य ₹70 होगा। प्रतिदिन आप चाहेंं तो इसकी आधी मात्रा भी आप मंगवा सकते हैं।

जिन्हें एसिडिटी है, जिन्हें वजन कम करने हेतु डाइटिंग करना है, जिन्हें सभी विटामिन और सूक्ष्म तत्व सही मात्रा में अपने शरीर में बनाए रखना है जो सात्विक आहार पसंद करते हैं जो सुबह अल्पाहार में कुछ पेट भर खाना चाहते हैं परंतु शुगर ना बड़े और आहार भी पौष्टिक रहे खाने में देर न लगे, पचाने में सरल हो, साथ ही भूख भी न लगे ऐसा कुछ खाना चाहते हैं और जिन्हें कोई दूसरे रस पसंद नहीं आते, उन्हें यही रस लेकर दोपहर भोजन तक कुछ नहीं खाना चाहिए। तब वजन और एसिडिटी दोनों ठीक होंगे।

Falamrut

Add 50 grams coconut kernel to 100 ml water, grind it and filter it. Now your coconut milk is ready.

Now, any three types of fruits which are pulpy, available in that season and are ripe, peel them, clean them, cut them into pieces, grind them a little and mix them in coconut milk. Your Falamrit is ready. Sugar candy or dry fruits can be added as per taste. It can be kept comfortably for four hours even in summer without refrigerator.
It is available in all the six Rasahar centers of Bhopal. Rasahar workers can also deliver it to your home.

It can be taken anytime before or after drinking any other juice.
The smoothie that is in trend these days is made by grinding fruits in milk. According to Ayurveda, there should not be a combination of milk and fruits, and milk should not be taken in the morning. From this point of view, Falamrit is the best, because fruits are found in sufficient quantity in it and coconut milk is used instead of milk. Coconut milk has its own benefits. It improves Hemoglobin, is nutritious for the skin, eyes and hair. It contains selenium which keeps the mind happy. It has zero fat and cholesterol, hence taking it does not increase weight. It also keeps the heart safe and healthy.
Children, young and old alike can take it. Its price will be ₹ 70 in all 6 Rasahara centers. If you want, you can order half its quantity every day.

Those who have acidity, those who have to diet to lose weight, can take Falamrut round the year, Then both weight and acidity will be fine. Those who have to maintain all the vitamins and trace elements in the right quantity in their body, those who like Satvik diet, those who want to eat something filling in the morning snack but are not big on sugar and diet, those who want to eat something that is nutritious, does not take long to eat, is easy to digest and does not feel hungry, and those who do not like any other juice, should take this juice and not eat anything till lunch.

मकर संक्रांति

मकर संक्रांति

मकर संक्रांति की सभी को हार्दिक शुभकामनाएं। आज से सूर्य उत्तरायण की ओर जा रहा है। यह परिवर्तन काल है। हम एक दूसरे को शुभकामनाएं इसलिए देते हैं ताकि जब सूर्य की किरणें इतनी तेज होने वाली हैं कि, धरती का रस सोखने लगे, तब हमारे शरीर की जीवन शक्ति भी साथ ही साथ कम होने लगती है। इस कम जीवन शक्ति के साथ हम स्वस्थ रहें यही शुभकामनाएं हैं। भारत तीनों ऋतुओं का देश है। कर्क रेखा लगभग भारत के मध्य से और भोपाल के बिल्कुल पास से गुजरती है। इसीलिए तीनों ऋतुओं के परिवर्तन मध्य प्रदेश और विशेष कर भोपाल में सभी को स्पष्ट रूप से अनुभव होते हैं। भारत के तटवर्ती राज्यों में ऋतुओं का इतना स्पष्ट विभाजन फिर भी नहीं है, परंतु हमारे यहां तो गर्मियों में हीटर स्वेटर बंद ही रहते हैं, शीत ऋतु में कूलर पंखे बंद रहते हैं। बरसात भी लगभग वर्षा ऋतु और शीत ऋतु में मावठे में ही होती है।

उत्तरायण शब्द उत्तर एवं अयन, इन दो पदों से बना है। इसका भाव है- सूर्य की उत्तर की ओर गति। चैत्र से भाद्रपद तक के माह उत्तरायण में आते हैं। यह आदान काल भी कहलाता है, क्योंकि इस समय प्रचण्ड सूर्य रस (जलीय तत्त्व) का आदान (ग्रहण) करता है। सूर्य की किरणें प्रखर और हवाएँ तीव्र, गर्म और रुक्ष होती हैं, ये पृथ्वी के जलीय अंश को सोख लेती हैं। इसका प्रभाव सभी औषधियों के साथ-साथ मनुष्य के शरीर पर भी पड़ता है। इससे शारीरिक शक्ति में कमी होने लगती है और व्यक्ति दुर्बलता का अनुभव करता है। इस अवधि में शिशिर, बसन्त और ग्रीष्म ऋतुएँ आती हैं।

मकर संक्रान्ति भारत का प्रमुख पर्व है। मकर संक्रांति (संक्रान्ति) पूरे भारत और नेपाल में किसी न किसी रूप में मनाया जाता है। पौष मास में जब सूर्य मकर राशि पर आता है तभी इस पर्व को मनाया जाता है। वर्तमान शताब्दी में यह त्योहार जनवरी माह के चौदहवें या पन्द्रहवें दिन ही पड़ता है, इस दिन सूर्य धनु राशि को छोड़ मकर राशि में प्रवेश करता है। नेपाल के थारू समुदाय का यह सबसे प्रमुख त्यैाहार है। नेपाल के बाकी समुदाय भी तीर्थस्थल में स्नान करके दान-धर्मादि करते हैं और तिल, घी, शर्करा और कन्दमूल खाकर धूमधाम से मनाते हैं। तमिलनाडु में इसे पोंगल नामक उत्सव के रूप में मनाते हैं जबकि कर्नाटक, केरल तथा आंध्र प्रदेश में इसे केवल संक्रांति ही कहते हैं। मकर संक्रान्ति पर्व को कहीं-कहीं उत्तरायण भी कहते हैं, यह भ्रान्ति है कि उत्तरायण भी इसी दिन होता है। किन्तु मकर संक्रान्ति उत्तरायण से भिन्न है। बिहार में इस व्रत को खिचड़ी के नाम से जाना जाता है तथा इस दिन खिचड़ी खाने एवं खिचड़ी दान देने का अत्यधिक महत्व होता है। महाराष्ट्र में इस दिन महिलाएँ आपस में तिल, गुड़, रोली और हल्दी बाँटती हैं। तमिलनाडु में इस त्योहार को पोंगल के रूप में चार दिन तक मनाते हैं। प्रथम दिन भोगी-पोंगल, द्वितीय दिन सूर्य-पोंगल, तृतीय दिन मट्टू-पोंगल अथवा केनू-पोंगल और चौथे व अन्तिम दिन कन्या-पोंगल। इस प्रकार पहले दिन कूड़ा करकट इकठ्ठा कर जलाया जाता है, दूसरे दिन लक्ष्मी जी की पूजा की जाती है और तीसरे दिन पशुधन की पूजा की जाती है। पोंगल मनाने के लिये स्नान करके खुले आँगन में मिट्टी के बर्तन में खीर बनायी जाती है, जिसे पोंगल कहते हैं। इसके बाद सूर्य देव को नैवैद्य चढ़ाया जाता है। उसके बाद खीर को प्रसाद के रूप में सभी ग्रहण करते हैं।

वसंत ऋतु में त्वचा रोग होने की संभावना अधिक रहती है, इसलिए आज के दिन उबटन का भी महत्व है। तिल हल्दी और नारियल का तेल मिलकर बिल्कुल महीन पीसें और उसे त्वचा पर लगाकर अच्छी तरह रगड़कर पूरा मैल निकालें। कहने का अर्थ है, आज से त्वचा की देखभाल करना शुरू कर दें।

आज से रथ सप्तमी तक भरपूर तिल गुड और खिचड़ी का दान भी करें और सेवन भी करें। तात्पर्य यह है कि, हाई प्रोटीन और भरपूर पोषक पदार्थ अभी ले लें। उस दौरान भोजन हल्का करें, ताकि तिल का पाचन हो जाए। ऐसा सब लोग करें इसलिए दान का भी महत्व है। जैसे-जैसे गर्मी बढ़ती जाएगी आपको भोजन हल्का और हल्का करते जाना है।

<strong><u>रसाहार कोर्स</u></strong>

रसाहार कोर्स

जड़ी बूटियों से उपचार सीखने हेतु, संपर्क- 9425027273

मानसरोवर विश्वविद्यालय एवं आरोग्य भारती के सहयोग से आरोग्य योग एवं रसाहार शोध समिति द्वारा संचालित 3 माह का रसाहार कोर्स प्रवेश प्रारंभ।

कोर्स का नाम- रसाहार सर्टिफिकेट कोर्स, कोर्स अवधि- 3 माह, फीस- ₹7000, माध्यम- हिंदी, आयु सीमा- कोई नहीं

अध्ययन प्रारंभ- दिनांक 9 जनवरी 2024

अध्ययन अवधि- कुल 3 माह में 30 कक्षाएँ।

कक्षाओं का स्थान और समय- 286, 2 ए साकेत नगर, एम्स के सामने, प्रति मंगलवार एवं शुक्रवार दोपहर 1:00 से 2:00

कोर्स उत्तीर्ण करने के बाद- प्रत्येक सत्र से एक विद्यार्थी को ₹7000 की नौकरी संभावित, इस कोर्स को उत्तीर्ण करके कोई भी व्यक्ति स्वयं रसाहार केंद्र का संचालन कर सकता है, रसाहार केंद्र में नौकरी पा सकता है, स्वयं स्वस्थ रहने के उपाय जान सकता है, अनेक घरेलू उपचार की वस्तुएं स्वयं बना सकता है, आने वाले समय में प्रारंभ होने वाले 1 वर्षीय रसाहार कोर्स को पास करके रसाहार परामर्शदाता भी बन सकता है, सत्र के विद्यार्थियों को नया रसाहार केंद्र खोलने हेतु सहयोग निश्चित। उपरोक्त फीस में कोर्स की अध्ययन सामग्री भी प्राप्त होगी, जिसका उपयोग आगे जीवन भर आवश्यक है।

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Bhopal, India